छेडछाड़ करने वाला अधमरा,रोकने वाले को पीट पीटकर मार डाला!

रायपुर दिनांक 26 दिसंबर 2010

छेडछाड़ करने वाला अधमरा,रोकने
वाले को पीट पीटकर मार डाला!
छेड़छाड़ करने वालों के साथ क्या सलूक किया जाये? क्या वही जो छत्तीसगढ़ में रायपुर के जलविहार कालोनी के एक परिवार ने किया जिसमें एक स्कूली बच्ची के साथ छेड़छाड़ करने वाले को एक बार मना करने के बाद भी नहीं माना तो पीट पीट पीटकर अधमरा कर दिया। दूसरी घटना बलौदाबाजार के पलारी की है जिसमें एक शिक्षक को सिर्फ इसलिये पीट पीटकर मार डाला चूंकि उसने छेडख़ानी का विरोध किया था। अब बताइये कौन आज के जमाने में किसी की मदद के लिये तैयार होगा? मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इस घटना के बाद छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का आदेश पुलिस को दिया है। पुलिस इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में मजनुओं के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है यह आने वाला समय बतायेगा लेकिन पलारी की घटना के बाद यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसी की परेशानियों में हम कितना भागीदार बन सकते हैं? शिक्षक वाली घटना के संदर्भ में सड़क पर किसी के साथ छीना झपटी, लूट, छेडख़ानी या कोई दुर्घटना में घायल व्यक्ति भी पड़ा है तो उसे उठाकर न अस्पताल पहुंचाया जा सकता है और न ही पुलिस को सूचना दे सकते हैं। पुलिस में जानकारी देने पहुंचें तो घायल के बारे में कुछ बतान से पहले पूछा जाता है कि तुम कौन? तुम्हारे बाप का नाम क्या?कहां रहते हो? आदि । अगर अस्पताल ले जाओ तो डाक्टर एक्सीडेंट केस बताकर इलाज करने तैयार नहीं होता। यहां भी पुलिस का लफड़ा। अगर इसके बाद भी हमने हिम्मत कर किसी को अस्पताल में दाख्रिल करा दिया और वह मर गया तो कानून हमारा यहां भी पीछा नहीं छोड़ता। बलौदाबाजार के शिक्षक का कसूर बस इतना था कि उसने राह चलती छात्राओं से छेडख़ानी करने वाले मजनुओं को ऐसा करने से मना किया। इसके लिये उसे तो जान से हाथ धोना पड़ा वह अलग बात है लेकिन उसके पीछे उसपर आश्रित एक पूरा परिवार भी अपने मुखिया को खो बैठा। इस घटना के बाद शायद पलारी के लोग तो कम से कम अब कोई किसी लड़की को छेड़ रहा है तो भी आंख मूंदकर चले जायेगें।कै सी स्थिति निर्मित हो गई ह,ै हमारे समाज में? यह भी दुर्भाग्यजनक है कि कई इस तरह के मामले है जिनमें अगर सड़क पर किसी नाजायज बात का कोई विरोध कर रहा हो तो भी आसपास खड़े लोग तमाशा देखते खड़े रह जाते हैं। बलौदा बाजार शिक्षक हत्याकांड वाले मामले में अगर कुछ लोग सामने आते तो संभव है शिक्षक की जान बचाई जा सकती थी। वैसे इस पूरे मामले में शिक्षक की मौत का कारण हार्ट अटैक बताकर अपराधियों को बचाने का प्रयास पहले से ही कर लिया गया है। सार्वजनिक अपराध के ऐसे मामलों में तत्काल सजा का प्रावधान होना चाहिये। अपराध कई लोगों के सामने हुआ है। अपराधी तुरंत पकड़े गये है। चश्मदीद गवाह भी हैं अत: पीडि़त पक्ष को न्याय देने में किसी प्रकार की देरी नहीं करनी चाहिये। अगर देर हुई तो साक्ष्य प्रभावित होंगे-अपराधी छूटकर आ जायेंगे और समाज में एक गलत संदेश जायेगा।बहुत से ऐसे मामले उदाहरण के तौर पर दिये जा सकते हैं जिसमें न्याय प्रक्रिया मे देरी के कारण साक्ष्य को पलटा दिया गया और अपराधी पतले रास्ते से निकल भागे।

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