पर्यावरण पर तो चर्चा हुई लेकिन काली धूल से कैसे निपटें?
पर्यावरण पर तो चर्चा हुई लेकिन काली धूल से कैसे निपटे ?
राजधानी रायपुर के लिये शनिवार को यह खुशी का मौका था जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने निवास कार्यालय से नवा रायपुर स्थित नंदनवन जंगलसफारी एवं जू में वन्य प्राणियों के लिए नवनिर्मित 7 बाड़ों का ई-लोकार्पण किया: नंदनवन जंगल सफारी के नवनिर्मित सात बाड़ों में लोमड़ी, सियार, चैसिंगा, काला हिरण, कोटरी, नीलगाय तथा लकड़बग्गा का बाड़ा शामिल है: इसे मिलाकर वर्तमान में वहां जंगल सफारी में कुल बाड़ों की संख्या 18 हो गई है: वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें वन मंत्री मोहम्मद अकबर, कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चैबे, संसदीय सचिव, शिशुपाल सोरी, संसदीय सचिव चन्द्रदेव राय उपस्थित थे:मुख्यमंत्री ने नवीन बाड़ों का लोकार्पण करते हुए नंदनवन जंगल सफारी जू नवा रायपुर को पर्यटकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाने की दिशा में वन विभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की: उन्होंने पर्यावरण और प्रकृति के सम्मान के साथ विकास को प्राथमिकता बताया: छत्तीसगढ़ राज्य की विलक्षण जैव-विविधता हमारी पहचान बताया: इसमें दो मत नहीं कि छत्तीसगढ में पर्यावरण को बढावा देने के लिये राज्य बनने के बाद से लेकर अबतक की सरकारों ने प्राथमिकता से कार्य किया किन्तु रायपुर और आसपास के क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण समस्या की दिशा में कार्य न कर पाना न केवल रहस्यमय है बल्कि चिंताजनक भी: कुछ साल पहले तक रायपुर में केडिया डिस्टलरी की बदबू सबसे बडी समस्या थी जो अकेले रायपुर नगर नहीं बल्कि आसपास के गांवों तक फैलते हुए चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई थी इसे किसी प्रकार दूर किया तो शहर के आसपास मौजूद स्पंजं आयरन से निकलने वालें घुएं और उससे निकलने वाले काले धूल ने रायपुर को अपनी चपेट में ले लिया:यह नहीं कि सरकारों ने इसके खिलाफ कार्यवाही नहीं की: कुछ समय तक और लाकडाउन के दौरान रायपुर जितना स्वच्छ और सुन्दर वातावरण से था यह फैक्ट्रियां खुलते ही लोगों के लिये फिर मुसीबत की बन गई: अब यह समस्या हमारे संपूर्ण प्रयास पर पानी फैरती नजर आ रही है: धूल इस कदर शहर की व्यवस्था को बिगाड रही है कि आगे आने वाले समय में सारी मेहनत पर पानी फेर देगा तथा इससे भारी आर्थिक नुकसान भी सरकार व जनता दोनों को सहन करना पडेगा: मुख्यमंत्री के पर्यावरण पर आयोजित इस कार्यक्रम में राजधानी रायपुर के एक महत्वपूर्ण पहलू और यहां की गंभीर समस्या पर किसी का ध्यान न जाना चिंताजनक हैं: पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे काले धूल की समस्या पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया? क्या यह जानबूझकर किया गया?:रायपुर के पर्यावरण को स्पंजं आयरन से उठने वाले काले धुएं और उससे उठने वाली धूल पर किसी सरकारी संस्थान का ध्यान क्यों नहीं जा रहा?जबकि यह इस समय रायपुर शहर व आसपास के गांवों के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सबसे बडी समस्या है: जब छत्तीसगढ मध्यप्रदेश के अंतर्गत था तभी से यह समस्या रायपुर में बनी हुई है: जो सर्दी के दिनों में एक खास तरह से पर्यावरण को नुकासान पहुंचाती है तथा लोगों के जीवन के साथ भी खिलवाड करती है रायपुर के आसपास स्पंजं आयरन के अनेक कारखाने हैं जो काली धूल उगलते हें राज्य बनने के बाद आई कांग्रेस व उसके बाद आई भाजपा सरकार दोनों ने ही इस दिशा में रायपुर वासियों को राहत देने थोडा बहुत प्रयास इस दिशा में जरूर किया लेकिन इसका कोई स्थाई हल अब तक नहीं निकल पाया है: रायपुर में सर्दी पडते ही काले धूल की परते इन कारखानो से निकलकर घरों में पहुंचने लगती हैं तथा पूरे वातावरण को एक विचित्र तरह के प्रदूषण से दूषित कर देते है: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी स्वयं इससे भली भांति परिचित है लेकिन जब तक उनका घ्यान इस ओर आकर्षित नहीं किया जायेगा तब तक इन काले धूल को उगलने वाले राक्ष्ासो से कैसे निपटा जा सकता है? लोगों के स्वास्थ्य और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाला यह वायरस लगभग आज मौजूद करोना और अन्य वायरस की तरह है जिससे निपटना सरकार की जिम्मेदारी है: लोगों के शरीर में तो यह काला जहर घुसता ही है घरों में भी पूरे सामान व टाइल्स को खराब कर देता है:चूंकि इस धूल में कई खतरनाक जहरीले रसायन मिलते है इसलिये यह धूल जमने के बाद निकलते भी नहीं इसके अलावा जब सवेरे लोग उठकर मुहं धोते हैं तब यह धूल उनकी नाक से निकलते हुए भी देखा जा सकता है: इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि कितनी मात्रा मे जहर लोगों के फेफडों में भर जाता है:हम यह नहीं कहते कि इस काली धूल के चलते स्पंज आइरन की फैक्ट्रियों को बंद कर दें लेकिन इस धूल से शहरवासियों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है:धूल से बचाने के उपकरण लगाकर भी लोगों को बचाया जा सकता है:जो कारखाने उपकरण लगाने के बाद भी काली धूल उगलते हैं उन्हें बंद कराने के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं है: मंदिर हसौद में लगे एक काले घूल की फैक्ट्री उस क्षेत्र के लोगेों की फसल व वहां का जनजीवन यहां तक की पशुओं का भी स्वास्थ्य बरबाद कर चुकी है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है: सुन्दर व स्वस्थ रायपुर को बचाने के लिये यह जरूरी र्है कि तत्काल काली धूल उगल रहे इन राक्षसों पर कार्रवाही की जाये:
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