कानून बदला किन्तु लोग नहीं बदले!


इंटरनेट पर पोर्न साइट देखते हैदराबाद के पैसठ बच्चो को पकड़कर पुलिस ने उनके पालकों के सिपुर्द किया. यह उस दिन से एक दिन पहले की बात है जब दिल्ली के निर्भया कांड ने चार साल पूरे किये.इसी   दिन चार वर्ष पूर्व निर्भया बलात्कार और निर्मम हत्याकांड ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया था ,इसी बर्सी के दिन दिल्ली में नोएड़ा से साक्षात्कार के लिये पहुंची एक बीस साल की लड़की को लिफट देने के बहाने कार में चढाया और उसके साथ रेप किया. कार में ग्रह मंत्रालय की स्लिप लगी थी. इसी दिन अर्थात निर्भया रेप कांड के चार साल होने के दिन ही झारखंड की राजधानी रांची में इंजीनियरिंग कालेज की उन्नीस वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तथा उसकी गला घोटकर हत्या कर दी गई तथा उसके शव को जलाने का प्रयास किया गया. निर्भया के बाद कानून में बहुत कुछ बदला होगा लेकिन समाज कतई नहीं बदला ,राजधानी दिल्ली में हर रोज छह बलात्कार और देश के विभिन्न राज्यों में पता नहीं कितने? इन मामलों को रोकने की व्यवस्था बनाने के लिए दायर कई पीआईएल पर चार साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट को फाइनल सुनवाई का अवसर नहीं मिला. अभी कुछ माह पूर्व ही यूपी के बुलंदशहर,केरल के तिरूवन्तपुरम में भी जो $कुछ हुआ वह भी समाज में बढ़ रहे ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने कठोर कदम उठाने का संकेत दे गये लेकिन कानून को कठोर बनाने की जिम्मेदारी जिनपर है वे या तो खामोश है या आंख मीचकर बैठे हैं तथा आरोप प्रत्यारोप में लगे हैं. उत्तर प्रदेश की एक जुझारू महिला आईएएस अधिकारी प्रोमिला शंकर की पीआईएल पर बहस में इस बात का आग्रह किया गया कि अपराध के बाद दंड देने पर जोर देने की बजाय, अपराध को रोकने की व्यवस्था की जाये. कानून की थकाऊ प्रक्रिया और सरकार द्वारा ऐसे मामलों में विलम्ब पर जवाबदेही कैसे तय की जाये अब इसपर भी बहस की आवश्यकता बन गई है.निर्भया कांड के बाद तीन माह में कानून तो कुछ कड़ा हो गया मगर उसके अपराधियों को न तो उनके असल मुकाम तक पहुंचाया गया और न ही समाज को ऐसा कोई संदेश हमारी व्यवस्था दे पाई ताकि निर्भया की तरह क्रूरता से खत्म की जा रही बच्चियों के भावी जीवन को सुरक्षित कर सकें. निर्भया के बाद उपजे सोशल मीडिया का आंदोलन इतना वृहद, तनावपूर्ण व आक्रोशित था कि उससे कानून और सरकार तो बदल गए पर चार साल बाद भी व्यवस्था जस की तस बनी हुई है जबकि इस दौरान अन्य कई मामलों में कठोर कानून बन गये किन्तु देश में सामाजिक स्तर पर उतर आई इस गंभीर समस्या पर न महिलाओ की ही तरफ से कोई ठोस पहल हुई और न हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के सबसे बड़े स्तभं की तरफ से. हां होने वाले यौन हमलों पर हर समय चिंता ही प्रकट की जाती रही जो रहरहकर उठती और शांत हो जाती, फिर  तब उठती जब किसी  की आबरू तार तार होकर इस  दुनिया से ही उठ जाती. आखिर कब तक यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा.? मासूम बच्चियो पर लगातार यौन हमले से  चिंतित मलयालम फिल्मो की अभिनेत्री मीरा जास्मिन ने  सलाह दी थी कि ऐसे पुरूषों को नपुसंक बना दिया जाये. ऐसा सुझाव और भी  कई तरह के सम्मानित लोगों की तरफ से आये हैं.इस दिशा में कदम उठाया जाये तो यह भी  समाज हित मे ही होगा. एक अरब बीस करोड़ की  आबादी में ऐसी विािक्षप्त मानकिसकता वालों की संख्या समाज में एक-दो प्रतिशत से भी कम है आगर इन्हें वाकई में नपुसंक बना  दिया जाये या सर्जिकल आपरेशन कर छोड़ दिया जाये तो समाज को एक कठोर संदेश ही मिलेगा दूसरी बात इतनी बड़ी आबादी और समाज पर कोई असर नहीं पडऩे वाला. हां कानून के प्रति लोगो का विश्वास बढ़ेगा. पीआईएल में छह प्रमुख मांगे शामिल हैं जिन पर भी जल्द निर्णय लिया जाना चाहिये.  देश में 31 प्रतिशत से अधिक सांसद, विधायक और जनप्रतिनिधि दागी हैं, जिनमें से कई के विरुद्ध रेप और अन्य गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. कतिपय माननीयों द्वारा समाज में अपराध बढ़ाने के साथ आपराधिक लोगों को संरक्षण भी दिया जाता है. इनके विरुद्ध मुकदमों पर फास्ट ट्रैक ट्रायल से इन्हें शीघ्र दंडित करने की जरूरत है.न्याय में देरी अपराधियों को मोहलत देती है.










टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ANTONY JOSEPH'S FAMILY INDX

बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्‍य

गरीबी हटाने का लक्ष्य अभी कोसो दूर!