डिजिटल तो हम हो गये लेकिन चुनौतियां भी तो कम नहीं!
डिजिटल तो हम हो गये लेकिन चुनौतियां भी तो कम नहीं!
अगस्त 2014 में नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल ने डिजिटल इंडिया का फैसला कर लिया था, करीब एक साल की गहन तैयारी के बाद जुलाई 2015 में इसे धूमधाम के साथ लांच किया गया. देश में आज भी नेटवर्क इतना स्लो है कि हमारा स्थान दुनिया में 115 वां हैं ऐसी परिस्थिति में यह हमारी पहली चुनौती है कि हम अपने इंटरनेट नेटवर्क को इतना फास्ट करें कि डिजिटल इंडिया का सपना साकार हो. जाहिर है सरकार एक दिन में इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती मगर सरकार डिजिटल इंडिया के लिये कटिबंद्व है.देश में नब्बे करोड़ से ज्यादा लोगों के पास फोन हैं जिसमें से मात्र 14 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्ट फोन है. स्मार्ट फोन और गैर स्मार्ट फोन को लेकर भी अमीर- गरीब की तरह बांटकर देखा जा सकता हैं,जिनके पास स्मार्ट फोन हैं उनमें से बहुत से लोग साधारण हैं जिसके आधार पर उम्मीद की जा सकती हैं कि उन लोगों को इंटरनेट मिलने भर की देर है.भले ही नोटबंदी के बाद देश के सारे एटीएम के बाहर लम्बी -लम्बी कतारे लगी है लोग पैसा जल्दी लेने के लिये लड़ रहे कट रहे हैं और कुचलर भी मर रहे हैंं ओर तो ओर पैसा नही मिलने के कारण आत्महत्या भी कर रहे हैं मगर केशलेस डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को गति मिली है सरकार की मंशा है कि डिजिटल इंडिया के मार्फ़त लोगों को रोजमर्रा की सहूलियतें दिलाई जाए
लेकिन डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के अंदर होने वाली बाते पहले भी हो रही थी- यह उन लोगों तक सीमित था जो कम्पयूटर से लेकर फोन तक चलाने में एक्सपर्ट थे -अब सरकार इसमें बदलाव लाने की कोशिश कर रही है उन लोगों को पहले ट्रेडं करना होगा जो मोबाइल रखते तो है किन्तु उसे सही ढंग से यूस नहीं कर पाते उन्हें भी जिन्हें मोबाइल में सिर्फ नम्बर मिलाना और काल अटेड़ करना ही आता है. एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस देश में आधार कार्ड की तरह अब आम लोगों को डिजिटल बनाना होगा. क्या यह इतना आसान है? नई पीढ़ी की बात हम नहीं करते लेकिन पुरानी पीढ़ी का एक वर्ग आज भी ऐसा है जो मोबाइल से पहले शुरू हुए कम्पयूटर के माउस को तक हिला नहीं सकता ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को डिजिटल करना बहुत बड़ी चुनौती है. नरेन्द्र मोदी मे आत्मविश्वास है मगर यह उनसे ज्यादा उनकी टीम को व नौकरशाहों में लाना है.साथ ही जनता का सहयोग भी जरूरी है लाइन में थक चुकी जनता को ही सरकार ने यह चुनौती दी है,यह कहकर कि तुम आगे बढो, हम तुम्हारे पीछे हैं. दूसरी ओर सरकार का पहला लक्ष्य होना चाहिये -ब्रॉडबैंड हाइवे. इसके तहत देश के आखरी छोर तक हर घर में ब्रॉडबैंड के ज़रिए इंटरनेट पहुंचाना होगा.डिजिटल इंडिया और कैशलेस सिस्टम के लिये यह जरूरी है कि सबके पास फोन की उपलब्धता हो जिसके लिए ज़रूरी है कि लोगों के पास फ़ोन खरीदने की क्षमता हो. आज कंपनियां सस्ते फोन लेकर आ गई है लेकिन इसे भी खरीदने की क्षमता नहीं होने वाले लोग भी देश में मौजूद हैं.हर किसी के लिए इंटरनेट अच्छी बात है. इसके लिए पूर्व में स्थापित पीसीओ की तर्ज पर पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्वाइंट बनाए जा सकते हैं. ये पीसीओ आसानी से समस्या हल कर सकते हैं, लेकिन हर पंचायत के स्तर पर इसको लगाना और चलाना भी कोई आसान काम नहीं है. इधर ई-गवर्नेंस. के मामले में हमने कुछ प्रगति जरूर कर है लेकिन सरकारी कामकाज में डिजीटल की घुसपैठ अब भी शतप्रतिशत नहीं है.हर सेवा को इंटरनेट से जोडऩे का.लक्ष्य रखकर आगे बढऩे की जरूरत है. इसे लागू करने का पिछला अनुभव बताता है कि दफ्तर डिजिटल होने के बाद भी उनमें काम करने वाले लोग डिजिटल नहीं हो पा रहे हैं. इसका तोड़ निकालने का कोई नया तरीका ढूंढने की जरूरत है. सरकार की मंशा इंटरनेट के ज़रिए विकास गांव-गांव तक पहुंचाने की होना चाहिये.केशलेस सिस्टम ओर नई व्यापारिक अथवा आर्थिक क्रांति के लिए जरूरी है कि हमारा दिमाग, हमारी सोच, हमारा प्रशिक्षण और उपकरण सब कुछ डिजिटल हो.अगर हमने सरकार के ढांचे को इंटरनेट से नहीं जोड़ा तो फिर इसके तहत डिलीवरी कैसे करेंगे?और अगर कर भी दी, तो सही में इसका फायदा लोगों तक नहीं पहुंचता है. इसमें बड़ी धांधली होती है.दुकानों व्यापारिक संस्थानों में चलने वाली स्वाइप मशीन के लिये चौबीस घंटे इंटरनेट सर्वर का काम करना जरूरी है चूंकि पूरी व्यवस्था इसी से जुड़ी है. अगर डेबिट, रूपे कार्ड हाथ में लेकर चले और व्यापारी तथा बैेक से लिंक न जुड़े तो कैसे चलेगा.जेब में डेबिट कार्ड के साथ में बिना अवरोध के चलने वाला एक अच्छा इंटरनेट सिस्टम में जरूरी है जो फि लहाल देश में नहीं है.
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