संसद सेशन शोरगुल-हंगामे में बाईस दिन यूं ही बीत गया
मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में पार्लियामेंट के आठ सेशन हुए हैं. इस बार विंटर सेशन बाईस दिन चला लेकिन प्रोडक्टिवीटी सबसे कम रही. यह अंदेशा तो उसी समय से था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ अक्टूबर को नोटबंदी का ऐलान किया. सब कुछ शायद ठीक चलता यदि सरकार नोटबंदी से पूर्व तैयारी करके चलती. इस निर्णय को लेने के पूर्व सरकार ने शायद यह सोचा भी नहीं कि इसके रिफरकेशन उसके लिये मुसीबतें खड़ी कर देंगी. एटीएम व बैंक तक नये नोट नहीं पहुंचने से लगी लम्बी लाइन और उसमें खड़े होने वाले लोगों की मौत के सिलसिले ने विपक्ष को इतना मौका दिया कि संसद चलने ही नही दी इस बीच और भी ऐसे मामले हो गये जो विपक्ष को एक के बाद एक आक्रामक बनाने में मददगार बनते चले गये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नोटबंदी की घोषणा के बाद विदेश चले गये आौर इधर अपना पैसा वापस निकालने के लिये लोग लाइन में लगकर जूझते रहे वहीं कालाधन जमा करने वालों ने एक तरह से बैंकों पर कब्जा जमा लिया. बैंक के कतिपय अधिकारियों व कर्मचारियेां ने मिलकर ऐसी स्थिति निर्मित कर दी जिससे मार्केट में त्राही त्राही मच गई और सड़क पर लाइन में लोग धक्के खाने लगे. विपक्ष ने इसको खूब भुनाया. नोटबंदी पर हंगामे की वजह से जरूरी काम काफी कम हुआ है, पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक 16 नवंबर से 9 दिसंबर के बीच लोकसभा में 15प्रतिशत तो राज्यसभा में 19 पतिशत ही प्रोडक्टिविटी रही है अर्थात औसतन 17 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया. यह मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में लोकसभा की सबसे कम प्रोडक्टिविटी है.अपोजीशन शुरू में यह मांग करता रहा कि पीएम मोदी सदन में आये और नोटबंदी पर अपना पक्ष प्रस्तुत करें लेकिन मोदी नहीं आये जब आये तो विपक्ष दूसरेी मांगों को लेकर अड़ गया. विपक्ष ने जहां सदन का बायकाट किया वहीं राष्ट्रपति से मिलने भी पहुंंचेॅ.पंश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी नोटबंदी के मामले पर ज्यादा उद्वेलित थी उनके कहने पर विपक्ष राष्ट्रपति से भी मिला लेकिन यहां भी कोई बात नहीं बनी. विपक्ष के हंगामे पर जहां वरिष्ठ राजनीतिज्ञ लालकृष्ण आड़वाणी व्यथित व क्रोधित हुए वहीं राष्ट्रपति को भी यह कहना पड़ा कि भगवान के लिये संसद को चलने दे. इस अपील का भी असर विपक्ष पर नहीं पड़ा जब नरेन्द्र मोदी सदन में पहुंचे तो विपक्ष का हल्ला फिर बढ़ गया और वे सदन से बिना बोले ही चले गये फिर जब आये तो विपक्ष का हल्ला बरकरार रहा. नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी दोनों ही यह बोलते रहे कि मुझे सदन में बोलने ही नहीं दिया जा रहा. इस बीच एक गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू के किस्से ने पूरे माहौल को नोटबंदी के साथ-साथ इस मामले को गर्म कर दिया और लोकसभा चलने की थोड़ी बहुत संभावना थी वह भी खत्म हो गई.रिजिजू मोदी सरकार के पहले मंत्री हैं जिनपर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगा. कांग्रेस ने वोटिंग के तहत सदन में चर्चा की मांग की जबकि सरकार इस पर राजी नहीं हुआ. दोनों पक्ष एक-दूसरे पर चर्चा न करने का आरोप लगाते रहे.16 नवंबर को पार्लियामेंट का विंटर सेशन शुरू हुआ था। यह आज16 दिसंबर तक चला.सेशन शुरू होने से करीब एक हफ्ते पहले ही पीएम ने नोटबंदी का एलान किया था, लिहाजा सरकार अपोजिशन के निशाने पर रहा, मंत्री किरण रिजीजू पर '50 करोड़ रुपए के अरुणाचल बिजली घोटालेÓ में शामिल होने के आरोप ने सदन की कार्रवाही को ठप्प कर दिया. इस सेशन में कई जरूरी बिल पेश होने थे लेकिन हंगामे की वजह से यह मुमकिन नहीं हो सका। सिर्फ दो ही बिल पास हो सके. इनमें एक टैक्सेशन अमेंडमेंट बिल था, दूसरा राइट्स ऑफ पर्सन्स डिसएबिलिटी बिल-2014. टैक्सेशन अमेंडमेंट बिल भी इसलिए पास हुआ, क्योंकि यह फाइनेंस बिल था, जिसे राज्यसभा से पास होना जरूरी नहीं था। संसद के इस सेशन में बाईस बैठके होनी थीं इनमें जीएसटी पर तीन बिल पास होने थे एक सेंटर का जीएसटी बिल, दूसरा इंटीग्रेटेड जीएसटी बिल और तीसरा जीएसटी से राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई तय करने वाला बिल. कुल 9 बिल पेश होने थे, इनमें सरोगेसी (रेग्युलेशन), नेवी ट्रिब्यूनल बिल-2016, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बिल, डिवोर्स अमेंडमेंट बिल-2016 और स्टेटिस्टिक्स एग्रगेशन अमेंडमेंट बिल-2016 भी शामिल थे सेशन के दौरान दो बिल पर लोकसभा में चर्चा होने के आसार थे, जो राज्यसभा से पास हो चुके हैं इन बिल्स में मेंटल हेल्थ केयर बिल-2016 और मेटरनिटी बेनीफिट्स अमेंडमेंट बिल-2016 शामिल था सरकार की मंशा 15 नए बिल भी पेश होने की भी थी जो पेश नहीं कर सकी.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें