फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर कब तक?
फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर कब तक?
सोमवार को दिनभर चले घटनाक्रम के बाद अब यह लगभग निश्चित हो चला है कि उरी हमला भी पिछले अन्य हमलों की ही तरह जुबानी जंग के बाद भुला दी जाएगी लेकिन 17 जवानों की शहादत को देश सदैव याद रखेगा.जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के ब्रिगेड कैंप पर हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है. 17 जवानों के एक साथ शहीदी हो जाने की खबर ने चारों तरफ दुख और सनसनी फैला दी लेकिन यह खबर भी अब पूर्व की घटनाओं की तरह अतीत की बात लगने लगी. वैसे इस बार का आक्रोश इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला चूंकि इतना बड़ा संहार एकसाथ दुश्मन इससे पहले एक ही दिन में चंद घंटो में शायद इससे पूर्व (मुम्बई हमलों को छोड़कर) कभी नहीं कर पाया. राजनेता से लेकर अभिनेता, सांसद से लेकर आम आदमी तक, सबने एक सुर में सैनिकों की शहादत को सलाम किया और आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जरूरत बताई, इन बयानों में से ज्यादातर बयान पुरानी लीक पर थे, कोई नई बात नहीं -आजादी के बाद से ही आतंकवाद का नासूर लेकर पल रहे हमारे देश में हर आतंकी हमले के बाद कमोबेश एक जैसे बयान आते हैं 'हम हमलों की कड़ी निंदा करते हैं, आतंकियों को बख्शा नहीं जाएगा.Ó-'हम अपने जवानों की शहादत का बदला लेंगे, आतंक फैलाने वाले देश को बेनकाब किया जाएगाÓ जैसे बयानों से अखबार और टीवी पट जाते हैं. देश पर आतंकी हमलों के बाद एक तरह की जुबानी जंग शुरू होती है ठीक वैसे ही जैसे छत्तीसगढ़ मेंं माओवादी हमलों के बाद शुरू होती है मगर कभी मुकम्मल नहीं होती, हर बार देश की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले जवानों की शहादत भुला दी जाती है.शहादत का अंतिम संस्कार भी ऐसे कि कभी कभी तो उसमें भी रोंगटे खड़े कर देने वाली खबर आ जाती है जैसा हाल ही में शहीद हुए एक जवान के शहीदी पर उसके संस्कार के लिये लकड़ी कम पड़ गई तो उसके पार्थिव शरीर के साथ जो कृत्य किया गया उसने वास्तव में यह सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि हम किस गलतफहमी के मंजर में फंसे हुए हैं. इस रविवार को फिर एक हमला हुआ है, फिर वैसे ही बयान आए हैं, जैसे पहले आते थे, मगर ये बातें कुछ ही दिन में थम जाएंगी ... आज की सुबह आते आते थम भी गई....हां उन जवानों की शहादत भ्ी भुला दी जाएगी.उनके परिवार के लोग परेशानियों के जंजाल में फंस जायेंगे जैसे कुछ दिन पूर्व बंगलूरू में एक शहीद केपरिवार का घर ही सड़क बनाने के लिये तोड़ दिया गया. रविवार को उरी में हुआ आतंकी हमला सेना पर बीते 26 सालों का सबसे घातक हमला साबित हुआ. 17 जवानों की शहादत पर भारत गमगीन है. हम यूं ही नहीं कह रहे कि उनकी शहादत भुला दी जाएगी, पिछले उदाहरणों के साथ यह बात अपने आप स्पष्ट है. हम छत्तीसगढ़ के लोग तो यह बराबर देखते आ रहे हैं कि पिछले वर्षो के दौरान नक्सलियों ने कितने ही घर उजाड़ दिये. कितने ही परिवारों को उनके अपनों से छीन लिया यहां तक कि कई नेताओं को भी मार डाला गया लेकिन सबमें वहीं निंदा, श्रंद्वाजंलि और मुआवजे का खेल होता रहा. कोई ठोस एक्षन कहीं भी नहीं उठे कि समस्या का निदान सदा सदा के लिये कर दिया जाये. घटना के बाद विशेषकर शहीदी के बाद घडिय़ाली आंसू ऐसे फंू टते हैं जैसे कोई तूफान आ गया हो लेकिन वह जो थमता है उसका भी हश्र उसी रूके झरने की तरह होता है.नक्सलियों को तो हम अपना बताते हैं उन्हें कोई नेता अपना भाई बताता है तो कोई भटके हुए लोग-खून करदे या देश की संपत्ति को तबाह कर दे तो कोई बात नहीं लेकिन जो आंतकी देश में 26 नवंबर, 2008 को मुंबई का आतंकी हमला कर रहा है उसमें से एक कसाब को फांसी दिलाकर ही हम खुश हो जाते हैं बाकी जो लगातार हम पर हमारेे घर में घुसकर मारके जाते हेैं उनके आंकाओं को खोजकर मारने की बाते सब चंद दिनों में ही फुर्र हो जाती है. मुम्बई हमले में कुल 166 लोग मारे गए और 293 घायल हुए। भारत पर हुआ यह सबसे बड़ा आतंकी हमला था जिसके बाद बड़े-बड़े बयान आए, डॉजियर भी पाकिस्तान को सौंपे गए मगर आज भी भारत सरकार पाकिस्तान से तेज ट्रायल कराने को कहती है कोई ठोस कार्रवाई अभी तक नहीं हुई. 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ, 2 जवान शहीद हुए, जबकि 3 घायलों नेे अस्पताल में दम तोड़ा. भारतीय सुरक्षा बलों ने सभी आतंकियों को मार गिराया. देश के सैन्य ठिकानों पर इसे सबसे बड़े हमलों में गिना जाता है. एक बार फिर, हमले के बाद बयानों की बाढ़ आई, पाकिस्तान की एक टीम भी दौरा करने पठानकोट आई क्या हुआ? ऑटोमटिक हथियारों और हैंड ग्रेनेड्स से लैस दो आतंकी अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर में घुसे, घुसते ही उन्होंने अंधाधुध गोलियां बरसायी हमले में 31 नागरिक मारे गए थे और 80 घायल हुए थे.क्या हुआ? 13 मई 2008,के जयपुर धमाके में 15 मिनट के भीतर 9 धमाकों से जयपुर समेत पूरा देश दहल गया था. इन हमलों में 63 लोग मारे गए और 210 घायल हुए.1 अक्टूबर, 2001 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा कॉम्प्लेक्स पर हमला हुआं 38 लोग मारे गए. इसके बाद कश्मीर में आतंकवाद की समस्या को खत्म करने के लिए कई बैठकें की गईं, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात.यह सिलसिला चला आ रहा है पता नहीं कब तक ?
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