आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई!

आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई!


कहतेे है न 'बेटर लेट देन नेवरÓ अर्थात देर आये दुरूस्त आये- सरकार ने देर से ही सही  डिब्बा बंद सामग्रियों के बारे में संज्ञान तो लिया. डिब्बा बंद सामग्रियों की मनमर्जी अब बंद होनी चाहिये यह आम लोगों की मांग है. जिस प्रकार खाद्य सामग्रियों व अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर कं पनिया मनमर्जी चलाती है उसपर रोक लागने के लिये सरकार ने अब अपना पंजा फैला दिया है. डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों पर ब्योरा पढऩे लायक हो- पहली बार इसपर गौर किया गया है. दूसरा और तीसरा कदम इसके बाद उठ सकता है, जिसमें डिब्बा बंद सामग्रियों की  क्वालिटी कैसी है, सही बजन है या नहीं इसको बनाने में कौन कौन सी  सामग्रियों का उपयोग किया गया है. इसकी कीमत अन्य प्रोडक्टस की  तुलना में कितना बेहतर है आदि तय करने की जिम्मेदारी भी सरकार को तय करना है.फिलहाल सरकार की योजना है कि 2011 के पैकेजिंग नियमों में संशोधन किया जाये इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का पूरा ब्योरा स्पष्ट और पढऩे लायक हो साथ ही सरकार नकली सामानों से ग्राहकों के हितों के संरक्षण के लिये बारकोड जैसी प्रणाली शामिल करने जा रही है. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ग्राहकों के हित में विधिक माप विज्ञान (डिब्बा बंद वस्तुएं), नियम 2011 में संशोधन के लिये कई दौर की चर्चा की है.उद्योग तथा नियमों में बदलाव की मांग उपभोक्ता लगातार करते आ रहे हैं. वर्तमान स्थितियो में से किन किन बातो ंपर गौर किया जायेगा  यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन हम मानते है पैक वस्तुओं के मूल्यों में कंपनियां अपने हिसाब से कभी भी किसी समय में बदलाव कर देते हैं पहले प्रोडक्ट को कई स्कीम और कम दामों में अच्छी क्वालिटी के साथ निकाल देते हैं उसके बाद देखते हैं कि ग्राहकों का झुकाब इस ओर काफी  हैं तो वे इन वस्तुओं की कीमतों में न केवल भारी इजाफा करते हैं बल्कि इसे बाजार से कुछ दिनों के लिये गायब भी कर देते हैं ताकि इस ग्राहक को इसके पीछे दौड़ते देखे और मजा ले. दूसरी महत्वपूर्र्ण बात है पैकेड वस्तुओं में भरी हुई मात्रा का सही हिसाब किताब नहीं होना, विशेषकर टूथ पेस्ट, षेविंग क्र ीम डयूरेंट, साबुन जैसी वस्तुओं में लिखा हुआ बजन दिखाने के लिये कई टेक्रीक अपनाते हैं ताकि प्रोडक्ट को कम कर मुनाफा कमाया जाये. साबुन के मामले में छोटा बड़ा कर दिया जाता है साथ ही कोई न कोई स्कीम चालू कर जनता को बेवकूफ बना दिया जाय. ठीक इसी प्रकार टूथ पेस्ट का बहुत हिस्सा हवा भरा होता है. कुछ थोड़ी ही मात्रा में प्रोडक्ट होता है इससे ग्राहक को बहुत नुकसान होता है. फेस पावडर और बेबी फूड और अन्य कई मामलों में भी कुछ ऐसा ही होता है चिप्स बगैरह को फूला दिखाने के लिये उसमें हवा भर दी जाती है बाकी माल थोड़ा सा रहता है कीमत ज्यादा सब बड़े मजे से खाते हैं किसी को कोई आपत्ति नहीं. सरकार भी यह मानती है-उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय में  एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ''नियम-7 उत्पाद के ब्योरे के संदर्भ में शब्दों के आकार को बताता है लेकिन अधिकतर कंपनियां इसका कड़ाई से पालन नहीं करती छोटे पैकेट में फोंट का आकार इतना छोटा होता है कि ग्राहकों के लिये उसे पढऩा मुश्किल होता है इसीलिए हमने फोंट के आकार के बारे में अमेरिकी मानक को अपनाने का फैसला किया हैÓÓइस अधिकारी के अनुसार फिलहाल नाम, पता, विनिर्माण तिथि, खुदरा मूल्य जैसी घोषणाओं के लिये फोंट आकार एक एमएम से कम है अमेरिका 1.6 एमएम के आकार का पालन करता है, लेकिन अब सरकार 200 ग्राम: एमएल के लिये 1.5 एमएम रखने की योजना बना रही हैं. 200 ग्राम (एमएल से 500 ग्राम) एमएल तक के डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों पर फोंट आकार दो से बढ़ाकर चार एमएम तथा 500 ग्राम: एमएल से ऊपर के डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के लिये फोंट आकार दोगुना आठ एमएम करने का विचार है इसके अलावा,  बार-कोड या इस प्रकार के चिन्ह पेश करने की योजना बना रहा है ताकि यह चिन्हित हो सके कि खाद्य उत्पाद भारत या अन्य देश में बने हैं और नकली नहीं है साथ ही मंत्रालय डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की अधिकतम मात्रा मौजूदा 25 किलो (लीटर से बढ़ाकर 50 किलो) लीटर करने पर विचार कर रहा है, ''छोटे पैकों के लिये उपभोक्ताओं को अधिक देना पड़ता है इसीलिए चावल, आटा जैसे अन्य सामान 50 किलो लीटर के पैकेट में आएंगे इससे ग्राहकों के लिये लागत कम होगीÓÓ इससे पहले, मंत्रालय ने 2015 में नियम संशोधित किये थे.



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