ओलंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति..साई कितना सही?
ओलंंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति के लिये आखिर हम किसे दोष दें.?खिलाडिय़ों को, व्यवस्था को हमारी परंपरा को,हमारी राजनीतिक व्यवस्था को या खेलों के प्रति युवाओं में उत्साह की कमी को? कारण इससे भी ज्यादा हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर जो कारण दिखाई देते हैं वह यह ही है जिसके चलते हम अपने दावे पर खरे नहीं उतर सके. 19 मेडल जीतने का था दावा, दस दिनों बाद भी खाली हाथ हाकी की टीम सहित 37 से ज्यादा एथलीटस बाहर हो गये हैं. रही सही उम्मीद जिमनास्ट दीपा की पराजय के साथ पूरी हो गई. मेडल जीतने में वह भी कामयाब नहीं रही.भारतीय हाकी टीम बेलजियम के हाथो पराजित होने के बाद ओलंपिक खेलों से बाहर हो गई. भारत से 119 प्लेयर्स 15 गेम्स में हिस्सा लेने गए थे आधे से ज्यादा का सफर बिना मेडल जीते खत्म हो गया,जबकि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) ने ओलिंपिक की शुरुआत से पहले सरकार को भेजी रिपोर्ट में दावा किया था कि 19 मेडल जीते जा सकते हैं. भारत के खराब परफॉर्मेंस पर हालकि अधिकारिक तौर पर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन चीन ने हमारी आलंपिक खेलों में शर्मनाक स्थिति पर अपने सरकारी मीडिया के जरिए जो वजहें गिनाई हैं उसे भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. इसमें दावा किया गया है कि खेलों में फंडिंग की कमी, स्पोर्ट्स ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार, शाकाहारी खान-पान और नागरिकों के ज्यादा धार्मिक होने की वजह से भारतीय एथलीट्स का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.चीन की मीडिया के अनुसार ज्यादातर भारतीय शाकाहारी हैं और इससे खेलों में नुकसान होता है,साथ ही यह भी लिखा कि भारतीय परिवार बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं वे अपने बच्चों को डॉक्टर और अकाउंटेंट बनाना चाहते हैं, खिलाड़ी नहीं. रिपोर्ट में 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स का हवाला देते हुए बताया गया है कि उसमें हुई धांधलियों ने भविष्य में किसी खेल आयोजन की उम्मीद को धूमिल कर दिया है. क्रिकेट के दबदबे को भी अन्य खेलों के लिए नुकसानदायक बताया गया है, रिपोर्ट में भारतीय सरकार का खेल को लेकर क्लियर विजन न रखने की बात भी कही गई है,चीन अपनी बातों के तर्क में कहता है कि चीनी सरकार ने 2001 में एथलेटिक्स, स्वीमिंग और अन्य वाटर स्पोर्ट्स में सुधार के लिए कैसी पॉलिसी बनाई वहीं भारत सरकार ने अब तक इस तरह की कोई पहल नहीं की है.विश्व ओलंपिक में चीन,जापान, अमरीका का सदैव जलवा रहता है लेकिन हमारा राष्ट्र इतना बड़ा और अच्छे खिलाड़ी होने के बाद भी दूसरे देशों के खिलाडिय़ों का किसी स्तर पर मुकाबला नहीं कर पाते.यह नहीं कि सरकार ने खेलों को प्रोत्साहित करने में ढिलाई बरती है-सरकार की तरफ से अच्छे खिलाडियों को प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन हमारी खेल राजनीति और अच्छे खिलाडिय़ों को पहुंच वाले खिलाडिय़ों के सामने अनदेखा करने की बहुत पुरानी सोच ने खेल में प्रतिष्ठावान खिलाडियों को पीछे छोड़ दिया है. दीपा का ही उदाहरण ले जिम्रास्टिक में ले देकर यह खिलाड़ी आगे बढ़ी थी जिसपर अपेक्षाकृत घ्यान नहीं दिया गया बल्कि उसकी जरूरतों को तक पूरा नहीं किया गया.हां हम बैडमिंटन के क्षेत्र में कुछ जलवा दिखा पाये हैं यहां श्रीकांत और सिंधू से पदक की उम्मीद जागी है. दोनों क्वार्टर फायनल में पहुंच गये हैं जबकि कुश्ती में विकास से भी आशा टूट गई है वह भी हार गया है. बहरहाल हम साई के उस दावे पर भी सवाल उठाना चाहेंगे कि उसने वर्तमान परिस्थियों में चयन की गई टीम से किस तरह ओलंपिक में 19 मेडल जीतने का दावा किया था? उसने खेल मंत्रालय को सौंपी 240 पन्नों की रिपोर्ट में कहा था कि इसमें सबसे ज्यादा चार मेडल शूटिंग में मिलेंगे लेकिन ओलंपिक में सब ठाय ठाय फिस्स हो गया. कुश्ती में तीन और एथलीटिक्स, बैडमिंटन, बॉक्सिंग, तीरंदाजी और टेनिस में दो-दो मेडल का दावा किया था.जिम्नास्टिक और हॉकी में एक-एक पदक की बात कही गई यह सब ऐसे कहा गया जैसे बाजार में मेडल रखा है और वहां पहुंचे खरीदकर ले आयेंगे.शर्मसार करने वाली बात तो यह भी है कि एक मंत्री महोदय ने वहां जाकर जो शर्मनाक हरकत की उसने भी देश को शर्मसार किया. क्यों ऐसे लोगों को किरकरी कराने के लिये भेजा जाता है? साई की रिपोर्ट इंडियन प्लेयर्स के हालिया प्रदर्शन और उनके इवेंट में विदेशी खिलाडियों के परफॉर्मेंस के आधार पर बनाई थी अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या साई ने भारतीय संभावनाओं को बढ़ाकर पेश किया?
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