सरकारी कामों में पब्लिक दखल,क्या कर्मचारी सुरक्षित हैं?
अक्सर सरकारी दफतरों में यह आम बात हो गई है कि किसी न किसी बात को लेकर कर्मचारियों से बाहरी लोग आकर उलझ पड़ते हैं. इसमें दो मत नहीं कि कतिपय सरकारी कर्मचारी भी अपने रवैये से लोगों को उत्तेजित कर देते हैं किन्तु सभी इस तरह के नहीं होते. सरकारी काम लेकर पहुंचने वाले प्राय: हर व्यक्ति में सरकारी सेवक से गलत व्यवहार करने का ट्रेण्ड चल पड़ा है. देरी से होने वाले काम, सरकारी तोडफ़ोड, सरकार के बिलो केे भुगतान में देरी, रेलवे में बिना टिकिट के दौरान टी ई से झगड़ा और ऐसे ही कई किस्म के मामले उस समय कठिन स्थिति में पहुंच जाते हैं जब सरकारी सेवक अकेला पड़ जाता है और मांग करने वाले या सेवा लने वाले ज्यादा हो जाते हैं फील्ड में काम करने वाला पुलिस वाला भी कभी कभी ऐसे जाल में फंस जाता है कि कभी कभी तो उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. मुठभेड़ या फिर अन्य आपराधिक मामलों को छोड़ भी दिया जाये तो आंदोलन के दौरान कई निर्दोष सिपाही या उनके अफसर भीड़ की चपेट में आकर अपनी जान से हाथ धो बैठते है जिसका खामियाजा उनके परिवार को भुगतना पड़ता है.सरकारी काम को लोग ने उन कर्मचारियों का व्यक्तिगत मामला समझने की भूल कर डाली है शायद इसके पीछे एक कारण सरकारी कामों में भारी ढिलावट और पैसे कमाने का लालच है इसके चलते लोग कर्मचारियों से भिड़ जाते हैं. काम के दौरान सरकारी कर्मचारियों से दुव्र्यवहार या उनपर हाथ उठाना दोनों गैर कानूनी है तथा इसपर कठोर सजा का भी प्रावधान है लेकिन कानून की परवाह न करने वालों की तादात बढती जा रही है.दफतरों में काम लेकर पहुंचने वाला हर व्यक्ति अपने काम का तुरन्त समाधान चाहता है,वे बात करते करते ही बाबुओं या अधिकारी से उलझ पड़ते है. थोड़ा प्रभावशाली या किसी नेता का खास हो तो फिर बात ही मत पूछिये सीधे वह बिना स्लिप दिये अफसर के कमरे में तक पहुंच जाते और बिना कहे कुर्सी पर भी बैठ जाते हैं.पब्लिक से डीलिगं वाले प्राय: हर दफतरों में यह एक आम बात हो गई हैं और इसपर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है.कुछ हद तक सरकार स्वंय इस स्थिति के लिये जिम्मेदार है. सरकार के समानांतर चलने वाली प्रायवेट कं पनियों में काम करने वाले कर्मचारियों और सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार की अगर तुलना करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकारी कर्मचारियों की बनस्बत प्रायवेट कंपनियों में काम करने वालों का व्यवहार ज्यादा उदार,सरल व संवेदनशील होता है. सर्वाधिक परेशानी आम नागरिकों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से होती है जहां कर्मचारी अपने आपकों देश का कर्ताधर्ता से कम नहीं समझते.पब्लिक डीलिंग और पब्लिक बिहेवियर का एक मामला भोपाल की उस घटना में देखने का मिलता है जिसमें महज 1038 रुपए के एक बिजली बिल को लेकर हुए विवाद में एक कांट्रेक्टर ने अपने भतीजे के साथ मिलकर जूनियर इंजीनियर(जेई) का मर्डर कर दिया. बुधवार को दोनों आरोपी बिल ज्यादा आने की बात कहकर क्लर्क से झगड़ रहे थे, शोर सुनकर जेई कमलाकर वराठे 25 साल चैंबर से बाहर निकले पूछा तो दोनों उनसे भिड़ गए वे सद्व्यवहार करते हुए उन्हेंअपने साथ केबिन में ले गये लेकिन बात बिगड़ गई और दोनों ने उन्हें इतना पीटा कि उनकी मौत हो गई.यह सरकारी सेवक तो इस दनिया से चला गया लेकिन उसका छोटा परिवार जिसके लिये वह यह नौकरी क रता था किसके सहारे अपना जीवन यापन करेंगा? यद्यपि बजरिया पुलिस ने आरोपियों को अरेस्ट कर लिया साथ ही सरकारी व्यवस्था में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश तथा कर्मचारियों की सुरक्षा के सबंन्ध में कई सवाल भीी्रखड़े कर दिये. गलतियां दोनों तरफ है और इसका हल भी निकाला जाना जरूरी है.वैसे देखा जाये तो सरकारी व प्रायवेट दोनों कामों में अब आनलाइन समस्या निदान की भरमार हो गई है इससे पब्लिक का सरकारी व प्रायवेट कंपनियों से आमना सामना बहुत हद तक कम हो गया है फिर भी बहुत से ऐसे काम हैं जिनसे सरकारी कर्मचारियों से पब्लिक का सीधा संबन्ध होना जरूरी है जिसमें इलेक्ट्रिक व टेलीफोन बिलों से सबंन्धित मामलों के अलावा बहुत से ऐसे मामले हैं जिनके लिये सरकारी कर्मचारियेां से संपर्क करना जरूरी हो जाता है.ऐसे में भोपाल जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो जाये तो आश्चर्य नहीं. सरकार को अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिये कुछ प्रयास करना जरूरी है जिससे ऐसी घटनाएं कहीं फिर न हो.
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