मुद्दे की बात को किनारे कर फिजूल की बातों पर यह कैसा शोर?
कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ नई सरकार बनाने की भूमिका निभाई थी? क्या वह जनता के विश्वास पर खरा उतर रही है? वास्तविकता कुछ यही कह रही है कि जनता को दिये वायदे सब खोखले निकल रहे हैं और सरकार जनता को किये गये वायदों से पीछे हट गई है, सरकार ने जो सपने दिखाये थे वह कोरी कल्पना बनकर रह गये हैं.सरकार स्वयं आइने के सामने आये तो उसे सारी चीजे साफ दिखाई देगी कि वह अपने वायदों से कितनी दूर चली गई है. देश में नाराजगी और अस्तिरता का माहौल निर्मित हो रहा है.विपक्ष तो अपना काम इस मामले में हवा देने का कर ही रहा है किन्तु सरकार के अपने लोगों की तरफ से भी जो बाते हो रही है वह समाज को एक गलत संदेश दे रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़े मुद्दों पर देर तक चुप रहते हैं तब तक पानी सर से उतर चुका होता है.देश को इस समय मन की बात नहीं दिल से दिल मिलाने की जरूरत है-सहित्यकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक नाराज हैं, भले ही सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही किन्तु इसे अनदेखा भी तो नहीं किया जा सकता .एक आक्रोश तो आम जनता में भी है- मंहगाई, भ्रष्टाचार तथा कथित अव्यवस्था से लोग प...