गुम इंसान की खोज लाश दिखाकर!


गुम इंसान की खोज लाश दिखाकर!

(वेणोन्गिल चक्का वे-रेलुम कायकिम)यह एक मलयालम कहावत है जिसका हिन्दी अनुवाद है - चाहे तो कटहल(जेक फ्रूट) जड़ों में भी लग सकता है. इस कहावत का उपयोग हम यहां उस पुलिस व्यवस्था पर कर रहे हैं जो बहत्तर वर्ष पूर्व के अंग्रेज शासनकाल से बस यूं ही चली आ रही है अगर वह चाहे तो क्या कुछ संभव नहीं हो सकता.? लोग यह कहने में संकोच नहीं करते कि पुलिस व्यवस्था अमीरो के लिये हैं. गरीब तो बस... गरीब है उसके लिये वह कानून उसके सामाजिक जीवन के लिये न होकर उसके द्वारा कथित रूप से किये गये चोरी और अन्य छोटे मोटे अपराध के लिये है.जिसमें ऐसे अपराध भी शामिल है जो मजबूरी या अनजाने में हो जाते हैं मसलन घर से पैसे चुरा ले जाना, साड़ी कपडे गायब हो जाना. या भूख की वजह से घर में रखा स्वादिष्ट व्यंजन खा लेना.. ऐसे अपराधों में मालिक या मालिकिन से कठोर सजा तक देने में काई कमी नहीं की जाती. अमीर या प्रभावशाली अपराध कर दे तो उसका कोई संज्ञान नहीं.कई बार तो एफआईआर तक नहीं लिखी जाती.लिखवाने वाले को थानों में जलील किया जाता है. और भी बहुत कुछ.!इस भूमिका के पीछे यूं तो कई कहानियों का पूरा कच्चा चिट्ठा है किन्त हाल में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में घटित दो घटनाएं हर उस इंसान को सोचने के लिये मजबूर कर देती है कि क्या वास्तव में पुलिस व्यवस्था अमीर और प्रभावशाली लोगों के लिये बनाई गई है.रायपुर के एक उद्योगपति का अपनी फैक्ट्री से निकलते समय अपहरण कर लिया जाता है उसकी कार और उसके अपहरण का क्लू पुलिस को मिल जाता है. उसके खोजबीन में पुलिस ऐडीचोटी एक कर कई अपराधियों को दूसरे राज्यों से चौदह दिन बाद 22 जनवरी को गिरफतार कर लाती है पुलिस की तत्परता से अ्रपहरत हुआ व्यक्ति बच जाता है. इसके लिये पुलिस और उसके आला अफसर बधाई के पात्र है. उद्योगपति के परिवार को भी खुशी हुई कि उनका परिवार का प्रिय सदस्य वापस आ गया. किन्तु हम सवाल उठा रहे हैं उस दीपक गवरे पिता प्रेमलाल गवरे नामक मजदूर का जो इस वर्ष जनवरी माह की दस तारीख से अपने घर से लापता है और उसके घर वाले उसे ढूढते ढूंढते थक चुके हैं.उद्वोगपति को ढूंढने में दिखाई गई तत्परता इस मजदूर वाले मामले में क्यों नहीं दिखाई गई? इस मजदूर के परिवार में उसकी पत्नी है बच्चे है जो घरों में बर्तन-झाडू लगाकर अपना गुजारा करते हैं.पति के लापता होने के बाद पत्नी और बेटे ने खुद ढूढऩे की कोशिश की जब हार गये तो थाने पहुंंचकर लापता होने की सूचना दी. कोई प्राथमिकी दर्ज होने की सूचना उनके हाथ में नहीं दी गई लेकिन जब दूसरे दिन किसी की लाश मिली तो उसे बुलवाकर शिनाख्त कराई गई बेटे ने बताया यह उसके पिता की लाश नहीं है. फिर जब भी कहीं लाश मिलने की सूचना होती तो उन्हें बुलवाया जाता.एक बार एम्स में किसी की लाश आई तो वहां भी बुलवाया गया. कुछ अपराधियों को पकड़ा गया तो उन्हें यह देखने के लिये बुलवाया गया कि कहीं उसमें तो उनका गुमशुदा शामिल नहीं है?पुलिस के दरवाजे पर अपना दुखड़ा लेकर पहुंचने वाला यह दोहरा चरित्र आखिर कब तक? यह महीना गुजरने को है किन्तु परिवार अब भी अपने अभिन्न के वापस आने की प्रतीक्षा में है!

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