वो तीन घंटे....


वो तीन घंटे....
उनने तो मुझे मौत का द्वार दिखा ही दिया था...
 लेकिन आज पांच: साल बाद भी जिंदा हूं!
यह हकीकत है.... हममें से कइयों की जिंदगी में ऐसा भी होता है जब हम किसी व्यक्ति या समूह के जाल में फंस गये होते हैं.एक ऐसा किस्सा मेरे साथ भी हुआ है जब मुझे जीते जी मारने का प्रयास किया गया. यह कोई हादसा नहीं न ही कोई दुश्मनी से पे्रेरित था  बल्कि एक ऐसी सोची समझी साजिश थंी. जिससे इन साजिशकर्ताओं  को अच्छी खासी रकम मिल सकती थी.
बात सन् 2015 की है यह नये वर्ष की पहली  सुबह थी. सुबह- सुबह मुझे ऐसा पसीना आया जैसे में कोई बड़ा काम करके आया हूं. सुबह की ठंड में ऐसा पसीना निकलना आश्र्चयजनक तो था ही परेशान कर देने वाला भी! परिवार में बेटे को मैने बताया तो उसने कहा बुखार आया होगा उतर गया. मैंने मामूली सरदर्द और सर्दी को दूर करने के लिये एक डिस्प्रिन लिया और काम पर चल दिया.थोड़ी देर बाद प्रेस में छोटे भाई का नागपुर से फोन आया तो उसने मेरी भरी आवाज सुन पूछा क्या तबियत खराब है? मैने सुबह का किस्सा बताया तो उसने मुझसे कहा पसीने को गंभीरता से मत लो और फ ोन रख दिया. कुछ ही देर में देखा तो बेटा भागा- भागा पे्रस पहुंचा और कहा आप मेंरे साथ चलो.... डाक्टर को दिखाना है.. माजरा समझ में आ गया.. छोटे भाई के कहने पर वह दौड़ता हुआ आया था. स्वंय कार चलाता हुआ उसके इशारे पर उस अस्पताल पहुंचा जहां एक पूरा गिरोह मेरा अथवा मैरे रूप में मिले एक शिकार का  इंतजार कर रहा था. यह अस्पताल था रायपुर कर एस्कार्ट जिसे अब सरकार ने बंद करवा दिया है, नाम बड़े दर्शन छोटे की तर्ज पर चल रहे इस अस्पताल के प्राय: चिकित्सक अनुभवहीन थे किन्तु इस अस्पताल में पहंचने वाले मरीजों को डराने धमकाने में सभी सहयोग करने से कभी नहीं हिचके. अस्पताल के स्टाफ का अधिकांश भाग मलयाली था . मुझे लगा कि  मलयाली होने के कारण वे मेरा साथ देंगे लेकिन कहानी कुछ अलग ही निकली.स्टाफ स्वंय मेनेजमेंट से इतना डरा हुआ था कि वह किसी मरीज के पास भी फटकते दिखे तो उनकी खैर नहीं. शायद यही कारण था कि मरीजों से कोई बात करने से भी वे हिचकते थे.
इस अस्पताल पर गंभीर आरोप थे. कई मरीजों ने यहां से निकलने के बाद मुझे अपना दर्द सुनाया. एक ने बताया कि वह यहां ऐसे फंसा कि अस्पताल के कपड़े ही पहने रात में यहां से भाग निकला और दूसरे दिन गठरी बनाकर कपड़े अस्पताल में फेक आया. एक अन्य ने बताया कि छत्तीसगढ़ के मुंगेली से एक परिवार अपने रिश्तेदार का  रायपुर में इलाज कराने आया उसने यहां के एक अन्य बड़े अस्पताल में इलाज कराया था जहां उसे मृत होने के बाद परिवार को सार्टिफिकेट देकर रवाना कर दिया वे संतुष्ट नहीं हुए और उस व्यक्ति को  लेकर इस अस्पताल पहुंंचे तो यहां न आव देखा न ताव अस्पताल के लोगों ने इस मरीज का जिसमें जान ही नहीं थी, बिना सार्टिफिकेट देखे ही चीर फाड़ कर मृत घोषित कर दिया लेकिन किसी पढ़े लिखे आदमी ने जब सारे दस्तावेज देखे तो बात समझ में आई कि जिसे मृत घोषित कर दिया गया उसी का चीरफाड किया गया.अस्पताल में खूब हंगामा हुआ.
मेरी स्थिति कुछ भिन्न थी. अस्पताल में पहुंचते ही मुझे सारे टेस्ट कराने के पर्चे दे दिये गये.यह टेस्ट अस्पताल के लोगों ने ही किया. इनमें से कुछ  को टेस्ट के लिये कहीं ओर भेजा  गया. मुझे रिपोर्ट आने पर सूचना देने को कहा गया.इसके बाद में यहां से पुन: अपने काम पर चला गया. शाम करीब तीन बजे फोन आया कि आपकी स्थिति काफी खराब है आपको तुरन्त अस्पताल में भरती करना पड़ेगा. मॅैं सवेरे की तरह कार स्वंय ड्र्राइव करते हुए प्र्रेस से अस्पताल पहुंचा तो मुझे अस्पताल में वहा तैनात लोग ऐसे देखने लगे जैसे वे मैरे प्रति सहानुभूति व्यक्त कर रहे हो. वे मुझमें बीमारी की गंभीरता को प्रदर्शित करते हुए दिखे.
पहले मुझे सवेरे किये गये टेस्ट का बिल पकड़ाया जो इतना कि उसे तत्काल दे पाने की स्थिति में नहीं था फिर भी उन्होंने मुझपर जैसे दया कर दी हो. मुझे तत्काल एक कमरे में शिफट करा दिया और आक्सीजन चढ़ाकर यह दर्शाने की कोशिश की कि में किस  बुरी तरह बीमार हूं. मुझे कहा गया कि आपके दिल की प्रमुख नस तो बंद पड़ी है आसपास की नसे भी काम नहीं कर रही है.प्रमुख नस को नन्नावें प्रतिशत बंद होना बताया तथा कहा कि आपकी हालत बहुत खराब है. मुझे और मेेरे परिवार के सदस्यों को वे बराबर कम्पयूटर पर मेरे दिल की धड़कन और बंद नसों को  दिखाते रहे. एक मरीज क्या जाने यह उसी का है या पहले से रिकार्ड की गई कोई फलापी या सीडी से लिया हुआ नाटक चल रहा है. देखने वालो को यह बताया जा रहा था कि इनकी हालत कितनी खराब है और यहां से निकले तो बच नहीं पायेंगे.इनका तत्काल आपरेशन करना जरूरी है.अस्पताल के बिस्तर के पास मेरे परिवार के लोगेां के पहुंचने से पहले ही आक्सीजन चढाने के बाद पूरे शरीर के बालों को शेव कर मुझे आपरेशन के लिये तैयार कर लिया गया. उन्होंने कहा कि इनका आपरेशन तत्काल करना पडेगा इसके लिये मैरे शरीर में पेर के पास से दिल तक एक पतली पिन डाली जायेगी और ब्लाक को हटाया जायेगा इसके खतरे भी वे बताते रहे इस दोैरान में उनको बराबर बताता रहा कि मुझे कोई तकलीफ  नहीं है और मेंरे दिल में कभी दर्द भी नहीं उठा. किन्तु वे बार बार यह ही कहते रहे कि आपकी हालत बहुत सीरियस है आप यहां से बाहर निकलेंगे तो खत्म हो जायेंंगे.वे मेरे परिवार से जिम्मेदारी कागज पर हस्ताक्षर कराने वाले थे तभी परिवार के एक सदस्य ने आपत्ति करते हुए कहा कि हम अभी इन्हें दूसरे अस्पताल में दिखायेंगे तभी आपरेशन का फैसला लेंगे.इस बार वे सख्त हो गये और डराने धमकाने के लहजे में आ गये. मुझे स्टेचर में इधर से उधर घुमाया गया . वहां का पूरा स्टाफ ऐसे देख रहा था जैसे मुझे विदार्ई दे रहे हो.मुझे इधर से उधर घुमाते हुए उस कम्पयूटर के पास फिर लाया गया जहां पहले से जांच हुई थी वहां कई लोग बैठे थे तथा कम्पयूटर में कर्सन घुमाते हुए मेरे दिल के कथित बुरे हाल का बखान कर रहे थे तभी उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि आप क्या करते हैं? मैने उनसे कहा कि मैं कई वर्षो से प्रिंट मीडिया से जुडा हूं मेरा बेटा भी इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़ा है तब अभी तक डरा धमका रहे लोगों में सन्नाटा छा गया. लहजा बदला और कहा आप देख लीजिये मगर हम बता रहे हैं कि आपको आपरेशन तो कराना ही पड़ेगा. परिवार के लोगों ने राहत महसूस की और मुझे घर ले आये किन्तु इस दौरान मुझपर किये गये उपचार में कम से कम चालीस हजार का खर्चा हमारे ऊपर डाल दिया गया.यह खर्चा उस खर्चे के आगे गौण हो गया जो हमें इस चीर फाड अस्पताल से मुक्त होने में मिला लेकिन इस अस्पताल से निकलने के बाद हमें लगातार एक सप्ताह तक फोन आता रहा. कि आप आपरेशन कब करा रहे हैॅ.अस्पताल में हुई इस घटना को आज छै साल बीत गये. मै जिन्दा हूं और स्वस्थ हूं मगर इस दौरान कई लोग ऐसे भी है जिन्हें यहां से मौका ही नहीं मिला .वे सीधे परलोक  भेज दिये गयें.काफी दिनों बाद सरकार ने अस्पताल की सुध ली तो पता चला कि अस्पताल का पूरा दारोमदार लापरवाही, ठगी,धोखाधड़ी,अज्ञानी लोगो के समूह से भरा पड़ा था. कुछ अच्छे चिकि त्सक भी रहे होंगे जिनकी बदौलत किस्मत वाले मरीजो की जान बच गई लेकिन मैं सौभाग्यशाली रहा कि एक बड़े चीरफाड़ के बाद के सदमें से मेरा परिवार बच गया.
मैने यहां से निकलने के बाद अपने मित्र चिकित्सक को सारी बात बताई उन्होंने मेरी जांच रिपोर्ट को देखा और उसे सही बताया किन्तु कहा कि आपरेशन की जरूरत में महसूस नहीं करता दवाई के सहारे आपकी नसे काम करना शुरू हो जायेंगी. एक्सरसाइज के लिये पैतीस दिन मुझे ईईसीपी मशीन पर एक एक घंटे एक्सरसाइज कराया गया. मौत के वो क्षण आज भी हम याद करते है. लेकिन उन तीन घंटों में तो एस्कोर्ट ने हमें मौत का दरवाजा ही दिखा दिया था.मेरी समस्त ऐसे मरीजों को सलाह है कि कम से कम गंभीर बीमारियों पर एक अकेले चिकित्सक के निष्कर्ष पर मत जाये बल्कि एक दो चिकित्सकोंं से और परामर्श जरूर ले लें।
यह रचना स्वास्थ्य से संबन्धित है

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