इस आरक्षण की आग में तो हम सभी जल गये....!
इस आरक्षण की आग में तो हम सभी जल गये....!
हम मांगते बहुत कुछ हैं लेकिन देते कुछ नहीं लेकिन इस लेन देन में नुकसान सीधा राष्ट्र का होता है चाहे वह आरक्षण की मांग हो या बेतन बढ़ाने की अथवा किसी अन्य मांग को लेकर होने वाला प्रदर्शन,आंदालन और फिर हिंसा. हम सदैव ही देश को नुकसान पहुंचाते आये हैं. इस कडी में जम्मू कश्मीर में शहीद हुए उस वीर जवान कैप्टन पवन कुमार के अंतिम शब्दों पर भी गौर करें जिसका इस समय के आंदोलनों के दो गढों जेएनयू और हरियाणा से सीधा नाता है.उसके अंतिम विचार थे -''किसी को रिजर्वेशन चाहिये तो किसी को आजादी,हमें कुछ नहीं चाहिये भाई बस अपनी रजाई:ÓÓ यह भी इत्तेफाक है कि जाट रेजिमेंट का यह जवान हरियाना का ही रहने वाला था और उसकी पढ़ाई दिल्ली जेएनयू से हुई. देश के जवान अपनी आजादी और वतन की रक्षा के लिये अपने दिल में इस तरह के मजबूत इरादे संजोकर रखते हैं...और हम उसे यूं स्वाहा कर डालते हैं..वाह! क्या है हमारी सोच,हमारी प्रवृति! -अभी कुछ दिन पहले ही जब हम और आप घोड़े बेचकर सो रहे थे तब हमारे कुछ भाई सियाचीन में अपने वतन के खातिर माइनस डिग्री से भी कम तापमान पर सर्द हवा और तूफान झेलते हुए बर्फ के नीचे दबकर शहीद हो गये. इन वीर यौद्वाओं का स्मरण सिर्फ इसलिये कि जब भी कोई राष्ट्र के विध्वंस के लिये अपना हाथ उठाये तो भगवान के लिये कम से कम एक बार इन जवानों के त्याग और बलिदान को जरूर याद कर ले। रहा अपने स्वार्थ के खातिर मांगों के सिलसिले का ,जो कभी खत्म नहीं होता- अपनी सुख सुविधाओं में और इजाफे के लिये ऐसे कृत्य पर उतर आते हैं जिसे कभी माफ नहीं किया जा सकता.यह चाहे अभी का जाट आंदोलन हो या और कोइ्र्र अन्य मसला-देश की संपत्ति को खाख करने में कौन सी बहादुरी है? अकेले वर्तमान जाट आरक्षण आंदोलन को ले तो इसमें करीब बीस हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की राष्ट्रीय संपत्ति स्वाहा हुई.आंदोलन आज या कल खत्म हो जायेगा हो सकता है सरकार बात भी मान ले लेकिन क्या ऐसी मांगों और आंदोलनों का कोई अंत है? जो नुकसान हुआ इसकी भरपाई कैसे होगी? यह भी सवाल बार बार उठता है कि आखिर आरक्षण क्यों?और यह क्यों बार बार उठता है हम पूछ सकते हैं कि सरकार बनाने बिगाडऩे के नाम पर होने वाले इस जातिगत आरक्षण को कब तक यूं जारी रखा जायेगा? क्यों नहीं इस आरक्षण शब्द को ही जड़ से काट दिया जाता? आरक्षण के नाम पर देश न जले इसके लिये यह जरूरी है कि सरकार कोई न कोई कदम जल्दी उठाये वरना ऐसे आरक्षणें की आग न केवल हरियाणा तक सीमित रहेगी बल्कि देश की प्राय: हर जातियों से उठेगी, जिसे पूरा कर पाना किसी के बस का नहीं रह जायेगा. दूसरी बात मांगों को मनवाने के लिये ऐसे आंदोलनों को उसके शुरूआती दौर में ही अनुरोध या कड़ाई से खत्म करना ही आज समझदारी है. जब तक सख्ती से नहीं निपटा जायेगा तब तक ऐसे आंदोलन अपना रूप दिखाते रहेगें. राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले ऐसे आंदोलनों को राजद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिये साथ ही ऐसे उपद्रवी तत्वों पर कठोर धाराओं के तहत मुकदमा दायर किया जाना चाहिये. सजा के तौर पर उन स्थलों पर जहां उपद्रव हुए है लोगों पर भारी टैक्स के साथ-साथ सारे सरकारी विकास कार्यो पर रोक भी लगाई जा सकती है जब तक ऐसा संदेश नहीं मिलेगा ऐसे आंदेालन होते रहेंगे और राष्ट्र की संपत्ति यूं ही धूं धंू कर सबके सामने जलती रहेेगी.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें