मानसिक अस्वस्थों की जिंदगी सड़क पर..जिम्मेदार कौन
एक व्यक्ति तीन दिन तक एक बड़े घराने की गेट के सामने भीषण गर्मी आंधी बारिश में पड़ा रहा. घर के लोगों ने भी उसे देखा, किन्तु पुलिस को खबर करने की जगह उसे अपने नौकरों के मार्फत सरकाकर गली तरफ डाल दिया. आते जाते लोगों ने भी देखा किन्तु किसी को उसपर दया नहीं आई आखिर तीसरे दिन आसपास के लोगों को लगा कि यह शख्स अब मरने वाला है और यहीं पड़ा-पड़ा सड़ जायेगा तो इसकी सूचना पुलिस को देने के लिये दौड़ धूप शुरू हुई और अंतत: पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया.जब पुलिस से यह पूछा गया कि शहर में ऐसे घूमने वाले मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के पास आपके पास क्या व्यवस्था है तो पुुलिस का जवाब था कि हमको सूचना मिलती है तो हम पहुंचते हैं गाड़ी बुलावते हैं, गाड़ी नहीं तो अपने खर्चे पर ही किसी गाड़ी में डालकर मानवता के नाते उन्हें सरकारी अस्पताल पहुंचा देते हैं अस्पताल में ऐसे लोगों के साथ कौनसा ट्रीटमेंंट होता होगा यह सब जानते हैं. ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचाने वाले पुलिस के लोगों का ही यह कहना है कि थोड़ा बहुत ठीक होने के बाद फिर वैसे ही यह सड़क पर नजर आते हैं. कहीं कूड़ेे के ढेर के पास तो कहीं उस स्थान पर जहां कोई शादी ब्याह या बड़ी पार्टी के बाद अपना खाना फेकते हैं. राजधानी रायपुर सहित देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में यह समस्या आजादी के पैसठ साल बाद भी यूं ही बनी हुई है.ऐसे लोगों में से कुछ की मौत जहां ठण्ड से होती है तो कुछ भीषण गर्मी में लू लगने स.े कहीं न कही गिरकर मर जाते हैं या फिर किसी वाहन की चपेट में आकर मारे जाते हैं.देशभर में मानवता की बात करने वाले कई संगठन है जो कहीं न कहीं कुछ काम कर अखबारों की सुर्खियां बनते हैं लेकिन इस गंभीर समस्या पर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. मानसिक व शारीरिक अस्वस्थता से पीड़ित व्यक्ति को समाज यूं ही सड़क पर भगवान भरोसे क्यों छोड़ देता है? इस सवाल के साथ कई अन्य सवाल भी उठते हैं जो इस समस्या को और गंभीर बना देता है कौन हैं वे लोग हैं जो इन मूक लोगों को सड़क पर घूमने और भूखे मरने के लिये छोड़ देते हैं? पुलिस जब ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचाती है तो उसका कर्तव्य वहीं खत्म नहीं होना चाहिये असल में उस व्यक्ति चाहे वह पुरूष हो या महिला उसकी अस्पताल से स्वस्थता के बाद इस बात का पता लगाया जाना चािहये आखिर वह इस हाल में कैसे पहुंचा ? वह कौन है, कहां का रहने वाला या वाली है तथा उसके रिश्तेदार कौन है तथा उसको इस हालत में सड़क तक पहुंचाने के लिये जिम्मदार कौन है? जब तक ऐसे अपराधियों के खिलाफ कार्रवाही नहीं होगी यह समस्या बनी रहेगी. नगर निगमों ने आज तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की जबकि यह उसी का काम है कि ऐसे लोगों के कपड़े, खाने पीने, रहने तथा उनके इलाज की समुचित व्यवस्था करें. इस ढंग से घूमने वाले एक बड़ा जीवन जी चुके होते हैं अत: यह जरूरी है कि इसके पीछे का रहस्य भी पुलिस खोज निकाले जो इन्हें इस लायक सड़क पर जीने के लिये मजबूर करता है?मानसिक रूप से विक्षिप्त घूमने वालों को पकडकर उन्हें किसी अस्पताल या आश्रम में रखकर उनका इलाज कराने का दायित्व नगर निगमों का होता है किन्तु कम से कम छत्तीसगढ़ में न किसी निगम ने किसी दस्ते का गठन इसके लिये किया है और न ही कोई ऐस निजी आश्रम अथवा अस्पताल है जिसने इन्हें सही सलामत किसी ठिकाने पर पहुंचाने के लिये कर्मचारी व वाहन की व्यवस्था की है.
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