राजनीति में पैर रखने से पहले ही क्येां फिसले रजनीकांत?
राजनीति में पैर रखने से पहले ही क्येां फिसले रजनीकांत?
यह जरूरी नहीं कि फिल्म जगत से राजनीति में प्रवेश करने वालों में से प्राय: सभी सफल रहे हैं अगर तामिलनाडू के राजनीति की बात करें तो यहां कुछ चुने हुए स्टार सफलता की मंजिल तक पहुंच पाये है लेकिन वालीवुड के कई सुपर स्टार जिसमें अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना धर्मेन्द कुछ ऐसे नाम है जिन्हेोनें राजनीति में तो कदम रखा लेकिन पीछे हट गये: कुछ टिके जरूर किन्तु बाद में उन्हें भी राजनीति छोडने या दरकिनार रहना पडा: सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी बिहार में मिलजुलकर अपनी सरकार बनाने के बाद से गदगद है वह आगे आने वाले चुनावों में तामिलनाडू, पश्चिम बंगाल जैसे कठिन राज्यो में जोर आजमाइश करने में लगी हैं:इस कडी में उसे तामिलनाडू में एक अच्चछी उम्मीद वहां के सुपरस्टार रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश् से लगी लेकिन इससे पहले कि वह अपनी पार्टी खडी कर सके उन्होंने स्वास्थय का कारण बताते हुए पार्टी बनाने की बात को तिलांजलि दे दी: एक तरह से उनका यह निर्णय सही लगता है चूंकि इतनी लोकप्रियता पाने के बाद ढलती उमर में जाकर अपनी किरकिरी करना किसे पसंद हो सकता है. अगर वो पार्टी बना भी लेते और पूरे राज्य में प्रचार कर लेते तो भी वे तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव नहीं ला पाते.रजनीकांत मूवी के हीरों है , भारत की राजनीति में पकड़ बनाने की कला नहीं है.राजनीति में फडफडा रहे , कमल हासन के पास भी इस तरह की क़ाबिलियत नहीं है लेकिन ये ध्यान देने वाली बात है कि मीडिया में चर्चित शक्तिशाली रजनीकांत के पास भी ये हुनर नहीं है. यह ओर बात है कि फिलम जगत से राजनीति में आये एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) और एनटी रामाराव (एनटीआर) राजनीति के भी सफल कलाकार बने. रजनीकातं से उनकी तुलना अभी के वातावरण में नहीं की जा सकती: एमजीआर एक मज़बूत विचारधारा वाली पहले से बढ़ रही राजनीतिक पार्टी से जुड़े थे और अपनी सफलता के लिए उन्होंने काम किया. वे पहले विधायक बने और फिर उसके बाद अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई. इसी तरह जब तेलुगू सुपरस्टार एनटीआर ने तेलुगू देशम पार्टी की शुरुआत की थी तब आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक मज़बूत विपक्ष की कमी थी.एनटीआर ने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी ने तेलुगू अस्मिता पर हमला किया है, उसकी छवि ख़राब की है और वो इसे बदलना चाहते हैं. लोगों ने उन्हें बढ़चढ़कर भरपूर समर्थन दिया लेकिन, अब तमिलनाडु में स्थितियां अलग हैं. तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंन्ध्र जैसे राज्या में राजनीतिक विचारधारा को लेकर उलझन होना सामान्य बात है. हो सकता है रजनीकांत के आसपास मौजूद कुछ लोगों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने का सपना दिखाया होगा, उन्होंने ना सिर्फ़ ख़ुद इस बात पर भरोसा किया बल्कि अपने प्रशंसकों को भी ये सपना दिखाया.'तमिलनाडु पर कब्जा जमाने गिद की तरह दृष्टि जमाये भाजपा के लिये तामिलनाडू में भगवा झंउा फहराना उतना आसान नहीं है यहां की राजनीति कुछ अलग ही है यहां मजदूरी करने वालों तक सबकी जुबान में सिर्फ तमिल है हिन्दी से उन्हें एक तरह से नफरत है: किसी को अचानक आसमान से टपकाना और चुनाव जीतने के लिए उसका इस्तेमाल करना आसान नहीं है.यह जरूर सही है कि फ़िल्म जगत से जुड़े लोग अपने पीछे भीड़ लेकर आते हैं. लेकिन, बीजेपी को लगता है कि रजनीकांत सिर्फ़ भीड़ नहीं बल्कि वोट भी लेकर आएंगे. मीडिया के एक वर्ग् ने इस मामले में हवा दी: यहां तक कि उन्हें राजनीतिक हीरो बनाने के लिये कई पुरानी बाते जो लेाग नहीं जानते थे उन्हें निकालकर परोसा गया: असल में रजनीकांत राजनीति में आने से हिचकिचाये, उन्हें चिंता थी कि भाजपा के साथ आने से उनका भग्वाकरण हो जाएगा. कई लोग उन्हें उनके भाषणों के आधार पर बीजेपी की बी टीम भी कहने लगे थे: बीजेपी रजनीकांत की पार्टी से गठबंधन करने गदगद थी. ये सपना भी अब टूट चुका है.
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