प्रभाव के चलते पुलिस व्यवस्था का अपना दर्द!
क्या प्रभावशाली वर्ग अपने खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बाहर होना अपना अधिकार मानता है? अपराध नियंत्रण में पुलिस की भूमिका को लेकर कुछ ऐसी ही स्थिति अब हर जगह बनती जा रही है.जहां भी कोई अपराध गठित होता है लोग यह कयास लगाना शुरू कर देते हैं कि इसका हश्र क्या होगा अर्थात इसे तुरन्त बेल मिल जायेगी या कुछ दिन जेल में रहकर छूट जायेगा-यह सब उसके प्रभाव उसके आर्थिक हालात आदि को देखकर लगाया जाता है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग है जो बेचारे कहीं फंस गये तो कहीं के नहीं रह जाते उन्हें तो जमानतदार भी नहीं मिलते. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपराध रोकने और कानून व्यवस्था संभालने के नाम पर पुलिस की मनमानी और लापरवाही होती है, लेकिन इसका विरोध करने का सिलसिला कुछ ऐसी हद तक पहुंच रहा है कि पुलिस के लिए अपना रूटिन काम करना भी मुश्किल होता जा रहा है. देश के कुछ राज्यों में तो स्थिति इस सीमा तक बिगड़ती नजर आ रही है कि पुलिस ने कई मामलों में गैरकानूनी गतिविधियों की ओर ध्यान देना तक बंद कर दिया है, क्योंकि किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने पर अगले ही पल ऊपर से फोन आने के साथ ही स्थानीय नेता या जनप्...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें