सब में मिलावट....लोग खाये तो क्या?और पिये तो क्या?
आज लोगों के समक्ष यह स्थिति बनती जा रही है कि वे क्या खाये क्या न खाये और क्या पिये और क्या न पिये. खाने पीने की हर वस्तु या तो मिलावटी हो गई अथवा इसमें इतने केमिकल मिले होते हैं कि यह इंसान के स्वास्थ्य को बुरी तरह झकझोर रही है.देश में हर किस्म के रोगों के लिये अब खानपान जिम्मेदार होता जा रहा है. पिछले कुछ समय से सरकार ने इंसानों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया है उसकी एजेंंसियां बाजार में मौजूद ऐसे कई खाद्य पदार्थो को खोज -खोजकर उनकी जांच कर रही है जिसका बाजार काफी गर्म है अर्थात काफी मात्रा में इसका उपयोग लोग करते हैं.मिलावट से निपटने में सरकार और उपभोक्ता मंचों की जिम्मेदारी तो है ही, कंपनियां भी इस मामले में अपनी भूमिका से मुकर नहीं सकती- होता यह है कि कई कंपनियां अपने ब्रांड की नकल पर ज्यादा शोर नहीं मचातीं, क्योंकि उन्हें नकारात्मक प्रचार का डर रहता है. इस संकोच के साथ मिलावटखोरों व नक्कालों से नहीं निपटा जा सकता. नूडल्स मैगी विवाद ने खाने-पीने की चीजों में मिलावट के मामले को चर्चा का विषय बना दिया था उसके बाद अब सरकारी जांच में स्प्राइट, कोका कोला, ड्यू, पेप्सी और 7अप में 5 जहरीले तत्व पाये गये हैं स्वास्थ्य मंत्रालय के ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी)की जांच में पेप्सिको तथा कोका कोला जैसी कंपनियों के कोल्ड्रिंक्स में एंटीमोनी, लीड, क्रोमियम, कैडमियम और कम्पाउंड डीईएचपी जैसे जहरीले तत्व मिले हैं. इससे पूर्व पता चला था कि बहुत सारे घरों में सुबह नाश्ते के समय खाई जाने वाली बे्रड और बेकरी के उत्पादों में कैंसर पैदा करने वाले रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है सेंटर फार साइंस एंड इनवायर्नमेंट (सीएसई) ने बे्रड, पाव, बन, बर्गर बे्रड और पिज्जाबे्रड आदि के नमूनों की जांच मेें चौरासी फीसद नमूनों में पोटेशियम ब्रोमेट और आयोडेट के अंश मिले. बे्रड बनाने के दौरान आटे में इन नुकसानदेह रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है.चिकित्सक कई बीमारियों के लिए मिलावटी खाद्य पदार्थों को ही जिम्मेवार बताते हैं. जिगर, दिल की बीमारियों और कैंसर के मामलों के तेजी से बढऩे की सबसे बड़ी वजह खाद्य पदार्थों में मिलावट है. खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने की तमाम कोशिशों के बाद भी बाजार में मौजूद खाने-पीने की ज्यादातर चीजों के शुद्ध देने का भरोसा नहीं किया जा सकता है.भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसआइए) द्वारा तैंतीस राज्यों और केंद ्रशासित प्रदेशों में कराए गए सर्वे में झारखंड, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल के शत-प्रतिशत दूध नमूनों में मिलावट पाई गई. दक्षिण के राज्यों में भी दूध में मिलावट का धंधा फल-फूल रहा है। दूध में फैट, एसएनएफ, ग्लूकोज, स्टार्च, साल्ट, वेजीटेबल फैट, पाउडर, एसिड आदि तत्व पाए गए. पानी की मात्रा भी अधिक पाई गई. कई नमूनों की जांच में तो डिटर्जेंट व यूरिया जैसे खतरनाक तत्व भी पाए गए यह हमारा देश ही है जहां इस कदर मिलावट को सरकार भी बर्दाश्त करती रहती है और जनता भी. मिलावट के धंधेबाज धड़ल्ले से सक्रिय हैं. पशुओं से अधिक दूध निकालने या सामान्य से ज्यादा सब्जियों के उत्पादन के लिए ऑक्सीटोसिन नामक हारमोन का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाता है.इसके अलावा, फलों को समय से पहले पकाने या सब्जियों को दिखने में ताजा और आकर्षक बनाने की खातिर भी कई घातक रसायनों का प्रयोग वे करते हैं। दालों को चमकीला बनाने के लिए या मसालों में जिन रंगों का प्रयोग किया जाता है, उनका असर किसी से छिपा नहीं है। तंत्रिका तंत्र, हृदय, गुर्दे से संबंधित कई गंभीर बीमारियों के कारण ये कैंसर तक की वजह बन सकते हैं।सिंथेटिक दूध रासायनिक उर्वरकों (यूरिया), वनस्पति घी, डिटर्जेंट, ब्लीचिंग पाउडर व चीनी को मिला कर बनाया जाता है तथा सस्ते दामों पर बेचा जाता है. दूध की कमी के दौर में अगर सस्ता दूध मिल जाए तो गरीब आदमी उसे खरीदेगा ही. सिंथेटिक दूध और घी बनाने में मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत घातक रसायनों, उर्वरकों, कीटनाशकों, क्रूड वैक्स तथा इंडोनेशिया से आयातित पाम ऑयल (स्टाइरिन), तंबाकू व जूट का तेल इस्तेमाल किया जाता है. यह पाम ऑयल सस्ता तथा साबुन व डिटर्जेंट बनाने में इस्तेमाल होता है. इस सारे मिश्रण को देसी घी का रूप देने के लिए घी की खुशबू वाला एसैंस व रंग मिलाया जाता है.ये सब चीजें ऐेसी होती हैं जो कैंसर पैदा करती है.वेज तो वेज नान वेज भी मिलावटी हो गया. बकरे की जगह भेढ़ और देशी अंडे को कलर करके बेचने का धंधा भी फलफूल रहा है. लोगों को इनसबसे कब मुक्ति मिलेगी कोई नहीं जानता
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