अपराध की तपिश से क्यों झुलस रहा छत्तीसगढ़?
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित बड़े शहर इन दिनों गंभीर किस्म के अपराधों से झुलस रहे हैं वहीं पुलिस की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. एक के बाद एक अपराध और उसमें पुलिस की विफलता ने यह सोचने के लिये विवश कर दिया है कि आखिर यह शांत राज्य अपराधों से कैसे झुलसने लगा?. एक के बाद एक होने वाले अपराधों से पुलिस से ज्यादा छत्तीसगढ़, विशेषकर राजधानी रायपुर में बाहर से आने वाले नागरिक ज्यादा परेशान हो रहे हैं-घटना के तुरन्त बाद पुलिस की कार्रवाही नाकेबंदी होती है इसमें अपराधी तो पतली गली से निकल जाते हैं लेकिन सड़क पर चलने वाले आम आदमी की फजीहत हो जाती है जैसे उसी ने सारा जुर्म किया हो.हाल ही कई वाहनों को रोककर जबर्दस्त तलाशी ली गई. किसी से कुछ नहीं मिला,उलटे अपराधियों को भागने का मौका मिल गया. बड़ी बड़ी घटनाओं ने शहरों में दहशत की स्थिति पैदा कर रखी है. आम आदमी को अपनी सुरक्षा पर संदेह है.असल में छत्तीसगढ़ बाहरी उन अपराधियों का पनाहस्थल बन गया है जिनकी दूसरे राज्यों की पुलिस को तलाश है. अपराधी कतिपय स्थानीय लोगों की मदद से दूसरे राज्यों से आने वाली ट्रेनों व बसों से यहां पहुंचते हैं तथा अपने रिश्तेदारों के यहां किसी न किसी बहाने ठहरते हैं,अपना मकसद पूरा होते ही आसानी से लौट जाते हैं फिर पुलिस इसको खोजने के लिये टूर प्रोग्राम बनाती है ,दूसरे राज्यों मे खोजबीन कर एक दो पुराने हिस्ट्री शीटरों को लाकर अपनी खानापूर्ति करती है. यह सिलसिला कुछ समय से यूं ही चल रहा है. असल में शहर के प्राय: सभी थानों की यह स्थिति बन गई है कि यहां स्थानीय पुलिस कर्मियों की जगह ऐेसे पुलिस कर्मियों को लगाया गया है जो रायपुर के किसी मोहल्ले को तथा वहां रहने वालों तक से परिचित नहीं हैं. हाल ही भारी मात्रा में चंदन की लकड़ी पकड़ी गई.जब कुछ साल पहले रायपुर मे चंदन तस्करों के बीच संघर्ष में एक व्यक्ति की जान चली गई थी तब से पुलिस को इस बात का अंदाज तो हो ही गया था कि रायपुर और आसपास के शहरो में इसका कोई न कोई लिंक है पर फिर भी उसकी नाक के नीचे यह कारोबार पनपता रहा. उसे इस बात की जानकारी तब लगी जब नागपुर में अपराधी पकडे गये. असल में हमारे यहां कार्रवाही तभी होती है जब हमपर बीतती है या किसी के कहने पर बात आगे बढ़ती है.छत्तीसगढ़ पुलिस के बारे में आज की स्थिति में यही कहा जा सकता है कि एक तरह से उसका राजनीतिकरण हो गया है,उसके कतिपय अफसरों को काम से ज्यादा प्रचार प्रसार में ज्यादा विश्वास हैै शायद एक कारण यह भी है कि अपराधियों को पकडऩे में वह पूर्णत: निष्फल साबित हो रहा हैं. असल बात तो यह है कि आम जनता बिल्कुल सुरक्षित नहीं है, किसी के साथ कभी भी कोई घटना हो सकती है. पुलिस तंत्र पूरी तरह फिसड्डी साबित हो रहा है.राजधानी में अपराधिक घटनाएं प्रति दिन हो रही है और पुलिस एक भी अपराधी को पकडऩे में सफल नहीं है.पुलिस का सूचना तंत्र फेल हो चुका है शासन का शिकंजा भी पुलिस प्रशासन पर जिस तरह होना चाहिए वह नहीं है. राजधानी के लालपुर स्थित शराब दुकान के सेल्स मेन अशोक सिन्हा पर गोलीचलाकर अपराधी 4 लाख रूपए लूटकर ले गयेे वहीं अनुपम नगर में सराफा व्यपारी प्रवीण नाहटा पर दो युवकों ने गोली चलाकर लूटपाट कर चलते बने. पुलिस सड़कों पर बेरियर लगाकर खाख छानती रर्हीँ. इसी तरह टिकरापारा भैंवर सोसयटी में पंकज बोथरा की गोली मारकर हत्या और लूट, भनपुरी की शराब दुकान में कैशियर को गोलीमारकर साढ़े 12 लाख की लूट, शारदा चौक से फैक्ट्री मालिक से साढ़े 12 लाख की उठाईगिरी के साथ शहर में चेन स्नैचिंग की वारदातें तो आये दिन होते रहती है. अब यह स्थिति हो गई है कि पुलिस अपराध का एफआईआर करती है और भूल जाती है. पुलिस का अपना कोई ऐसा तंत्र अभी तक विकसित नहीं हुआ है जो तत्काल अपराधियों की गिरेबान तक पहुंच जाये. बस सीसी कैमरे की धुंधली तस्वीरे ही भगवान बनकर उनके पास है.दिलचस्प बात तो यह है कि कतिपय मामलों में फुटेज मिलने के बाद भी कार्यवाही करने की जगह सीसीटीवी में उबर आये चित्रों को देखकर ललचाते रहते हैं .पुलिस की सुरक्षा आजकल छत्तीसगढ़ में किसे मिल रही है यह आज प्रत्येक व्यक्ति की जुबान पर सवाल के रूप में मौजूद है. अपराधियों के पंजे प्रदेश में बच्चे, बुढ़े, महिलाएं किसी को भी निशाने पर ले लेते हैं औैर हमारी व्यवस्था बस एक मूक दर्शक बनी हुई ताक रही है.
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