नन्हीं बच्चियों की चीख .... कानून कब तक यूं अंधा बहरा बना रहेगा?
इज्जत किसे प्यारी नहीं होती...किसी महिला की इज्जत उसकी जिंदगी होती है और कोई अगर इसी को लूट ले तो फिर उसके जीने का मकसद ही खत्म हो जाता है. कुछ अपवादों को छोड़कर हमारे समाज में महिलाएं पुरूषों के मुकाबले बहुत कमजोर होती है जबकि समाज ने झांसी की रानी दुर्गावती जैसी सिंहनियों को भी देखा है मगर सारी महिलाएं वैसे नहीं हो सकती. उनमें से कइयों पर जो अत्याचार होते हैं उसकी निंदा करने वाले, उनको मुआवजा देने वाले तो बहुत सामने आ जाते हैं लेकिन समाज का एक बड़ा तबका ऐसा भी तो हैं जो हम सबके ऊपर सारे अत्याचारों को अपनी आंखों से देखता है,सुनता है और निर्णय करने की क्षमता रखता है. यह वर्ग ऐसे कानून भी बना सकता है जो अबलाओं पर अत्याचार को रोकने में सक्षम है फिर उनके सामने कौन सी मजबूरी है जो वो समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को यह कहकर संरक्षण नहीं दे पा रहा जिसके कारण छोटी- छोटी बच्चियां तक असुरक्षित हो गई. आज बड़ी बड़ी बाते करने वाली हमारी सरकारों की नाक के नीचे एक छोटी सी बच्ची मसल दी जाती है उसे खरोच डाला जाता है फिर भी हमारा कानून ऐसे जालिमों को वह सजा नहीं दे पाता जिसके वे ...