आखिर हम किससे डर रहे हैं-अमरीका, चीन या अपने आप से?सईद ललकार रहा है क्यों न हो जाये आर पार की लड़ाई
अस्सी हजार से ज्यादा लोग अब तक आतंकवादियों के हाथों मारे जा चुके...हमें मालूम है कि इस नरसंहार के पीछे पाकिस्तानी सेना, भारत से भागे दाउद इब्राहिम और वहां के उग्रवादी संगठन जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद का हाथ है-यह व्यक्ति मुम्बई हमले का भी मास्टर माइण्ड है- इस कुख्यात व्यक्ति के सिर पर अमरीका ने भी एक करोड़ रूपये का इनाम रखा है, फिर भी हम चुप हैं...इस बार उसके पिट्ठू आये तो ए के 47 का जखीरा, खाने पीने के लिये रेडीमेड चिकन आचारी, दाल, रोटी सहित काजू किशमिश, खजूर और अन्य कई किस्म के ड्राय फ्रूट भी लेकर आये-प्लान बनाया था कि भारत के मस्तक पर बैठकर कई दिनों तक आतंक का खेल खेलेंगे लेकिन इन छक्कों के मंसूबों को भारतीय फौज ने सफल होने नहीं दिया लेकिन इस कड़ी में हमारे कम से कम बारह जवानों को भी शहीद होना पड़ा. तीन दशक से ज्यादा का समय हो गया- हम अपने पडौसी की मनमानी झेल रहे हैं?क्या हमने चूडियां पहन रखी है कि वह अपनी मनमानी करता रहे और हम चुप बैठे रहे? क्यों नहीं हम आर या पार की लड़ाई लड़े? हम किससे डर रहे हैं?अमरीका से? चीन से? या फिर अपने आप से?कि अगर हम पाकिस्तान से मुकाबला करेंगे तो यह शक्तियां नाराज हो जायेंगी?यह भी कि क्या पाकिस्तान से हमला करने की स्थिति में हमे चीन से भी मुकाबला करना पड़ेगा? लेकिन आज हममें इतनी ताकत तो है कि हम एक बार दोनों से दो दो हाथ कर सकें.हाल ही हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरीका के उस राष्ट्रपति से मिलकर आये हैं जिसने अपने देश में आंतकी हमला कर सैकडा़े लोगों को मारने वाले कुख्यात आंतकवादी ओसामा बिन
लादेन को पाकिस्तान में उसकी मांद से रातो रात निकालकर समुन्द्र में फेक दिया था-मोदी को जरूर उनसे प्रेरणा मिली होगी. अमरीका ने तो इतने दूर से आकर अपने दुश्मन को मार दिया लेकिन सईद तो हमारी बगल में छुट्टा घूम रहा है, वह हमे चिढ़ा रहा है, चुनौती दे रहा है और हमारे सब्र का इंतजार कर रहा है?सवाल यही उठता है कि हम कब तक सब्र करते रहेंगें ?हमारे पास एक ही विकल्प है कि अपने देश में घुसपैठियों और आंतकवादियों को रोकने के लिये किसी की परवाह किये बगैर अपने बलबूते पर पाकिस्तान से दो दो हाथ करें और बंगलादेश में नियाजी को घुटने पर खड़े कराने की तरह पाक के इस आंतकवादी को भी हमारे देश लाकर उसे हमारे कानून के हवाले करें. सेना के पूर्व अफसरों व विशेषज्ञों की भी राय यही है कि अब वह समय आ गया है कि जब हमें आर या पार का फैसला करना होगा. कब तक हम अपने जवानों को यूं मरते देखेंगेें?सवाल यह भी उठता है कि इतने वर्षो से हमने जो ताकत बनाई है उसे क्या हम यूं ही दिखाने के लिये शो केस में रखे सडाते रहेेंगे?
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