जिस देश में सोने की चिडिया करती थी बसेरा वह देश है मेरा....किंन्तु अब यहां सोने की चिड़िया नहीं यहां- भ्रष्टाचार, आंतक,मंहगंाई और अपराध बसता है। कैसे बदल गया हमारा स्वर्ग? यहां कोई हादसा हो जाय तो श्रदांजलीे, किसी महिला की अस्मत लुटी तो निंदा, भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ तो जांच कमेटी । जनता आंदोलन करें तो दस दिन तक खामोशी - भारत में पिछले तीन दशकों में घोटालों की एक फहरिस्त है। गिने चुने लोग ही सलाखों के पीछे है किेन्तु अपराध के सूत्रधार पतली गली से निकलकर तमाशा देख रहे हैं। मामले प्रकाश में आते ही संसद और विधानसभाओं में हंगामा होता है। हंगामों पर ससंद और विधानसभाएं ठप्प हो जाती है-जनता की जेब से निकला लाखों रूपया पानी की तरह बहाने के बाद जांच कमेेेटी बैठा दी जाती है यह सब कुछ दिन बाद लोग भूल जाते हैं। रोज नये- नये घोटाले, गंभीर सामाजिक, मानवीय अपराध ने शहीद भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, महात्मागांधी जैसी महान अस्थियों के सपनों को चकनाचूर कर दिया। आम आदमी को न जीने दिया जा रहा है न मरने। पीडित को न्याय देरी से मिलता है वह भी नाप तौल कर। एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस देश में मुटठीभर लोग कुछ भी कर ले। विपक्ष चिल्लाती रहे कोई फरक नहीं पड़ता। यही विपक्ष सत्ता में आ जाये तो उसका भी यही रवैया- आखिर क्या करें लोग? आजादी के लिये हमने सैकड़ो साल संघर्ष किया आजादी मिली तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था और ससंदीय प्रणाली को चुना लेकिन क्या अब हमें यह नहीं लग रहा कि इस प्रणाली से उकता गये हैं? अगर संसद में छन्नी से छनकर लोगों का प्रवेश होता तो शायद हमें आज यह बात नहीं करनी पड़ती लेकिन जिस ढंग से व्यवस्था बनती है वह करोड़ों लोगों की भावनाओं को तो चोट पहुंचा रही है साथ ही सबके जीने के अधिकारों कों भी रौंद रही है। एक छोटे से उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है- रेलवे या पेटोलियम देश की रीड़ है। आज एक बच्चे से भी पूछ ले कि मंहगाई के पीछे कारण क्या है तो वह भी यही कहता है कि सरकार जब इन दोनों सेवाओं केे भाव बढ़ाता है तो उससे मंहगाई बढ़ती है। एक नया मंत्री आता है तो वह जनता पर प्रयोग करता है पहले थोड़ा सा बढाकरदेखता है कि कोई कुछ बोल तो नहीं रहा फिर धीरे धीरे वह जनता के पांव से लेकर सिर तक वार करता है। जिस देश की जनता नेताओं को चुनकर भेजती है वह ऐसे मामलों में उनसे नहीं पूछती कि उन्हें क्या तकलीफ है वह कंपनियों से पूछेगी कि उनको कितना घाटा हो रहा है बस इसके बाद जैसी मर्जी वैसा बोझ जनता के कंधों पर लाद दिया जाता है। आजादी के चौसठ साल में सिर्फ दो साल ही लोगों ने सुकून के देखे जब देश में आपातकाल लागू था। चंद लोगों, विशेषकर नेताओं को इससे परेशानी जरूर हुई मगर आम जनता आज भी सराहती है। आगे आने वाले दिन और कठिन होंगे लोगों का भरोसा वर्तमान संसादीय प्रणाली से उठने लगा है। हमें एक बार अमरीकी दो दलीय व्यवस्था को आजमा कर देखना चाहिये जहां राष्टपति का चुनाव पूरे देश की सहमति से होता है। । हमने जो राजनीति में पड़ा है वह यही है कि प्रजातंत्र के बाद अराजकता और अराजकता के बाद तानाशाही आती हैै... उसके संकेत भी मिलने लगे हैं दुश्मन देश हमारी सुरक्षा तक में सेंध लगा रहे है। भ्रष्टाचार सेना तक में घुस गया है। हम तानाशाही की कल्पना भी नहीं कर सकते किंतु परिस्थतियां कुछ भी करवा सकती है जिस ढंग से माहौल बदल रहा है वह किसी बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है।
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ANTONY JOSEPH'S FAMILY INDX
History of Mattappallil - Madukkakuzhy family ANTONY JOSEPH”S FAMILY. INDEX A family with its own tradition and values,started many decades ago from a place called EdamattomPallattu in Kottayam districtin Kerala.They have a well settled position not only in India but also abroad. The members of this family are not only in different parts of India but also in many developed countries like United States of America ,Rome,South Arabia multiplying the family's honour and fame with their professional expertise in the field of education,politics , journalism etc. In this note we go through a rough idea of the family history. Since we don't have any knowledge about many members of the old generations, we regret to skip off the details about them.Now with the help of the eldest member of this family ie J M Thomas (Thomachen)of Kottayam,we get a picture about the members of our family and how it branched.We belong to Edamattam Pallattu family. The family starts with two avakashi...
बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्य
बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्य तारीख पर तारीख के बाद अब मीटिंग पर मीटिंग का दौर चल रहा है , सरकार और किसानों के बीच 8वें दौर की बातचीत में भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया. दिल्ली के विज्ञान भवन में सोमवार को करीब 4 घंटे चली बैठक के बाद किसानों ने कहा कि हमने केंद्र के सामने कृषि कानूनों की वापसी की ही बात रखी. 30 दिसंबर को किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ सातवें दौर की बैठक हुई थी. बैठक के बाद दोनों पक्षों की ओर से कहा गया था कि आधी बात बन गई है.किसानों ने अब साफ कह दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी भी नहीं. इधर, लगातार मीटिंगों में नतीजा न निकलने पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ताली तो दोनों हाथ से बजती है, आठवें दौर की मीटिंग के बाद भी एमएसपी को कानूनी रूप देने के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बन पाई, हालांकि, सरकार और किसान 8 जनवरी को फिर बातचीत करने पर राजी हो गए है अर्थात मीटिंग का दौर अब और भी चलेगा: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. सोमवार को हुई बैठक से पहले पंजाब के बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उगर...
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