बुुड्ढों के दिन लदेे...
बुुड्ढों के दिन लदेे... सपा ने उत्तर प्रदेश में एक नवजवान युवक को राज्य की बागडौर सौंपकर देश की बड़ी-बड़ी राजनीतिक पाॢटयों को चुुनौती दे डाली है कि उनमें दम हो तो किसी एक ऐसे युवा को देश का प्रधानमंत्री बनाकर दिखा दें।भाजपा-कांग्रेस-भाकपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को सपा की इस चुनौती को स्वीकार कर एक ऐसे युवा को लाकर खड़ा करना चाहिये जो देश के करोड़ों युवाओं की आशाओं पर खरा उतरे और गर्व से कह सके -यह हमारा नेता है। देश की राजनीतिक पार्टियों का एक बहुत बड़ा वर्ग बूढ़ा हो चुका है जिसकी सोच न केवल दखियानूसी है बल्कि सठियाई हुई है जिसे न बदले हुए माहौल की ङ्क्षचता है और न ही बदले पीढ़ी के भावनाओं की.. ऐसे परम्परावादियों और अडियल बूढ़ी विचारधारा के साथ भ्रष्टाचार का पनपना वाजिब है। एक अरब बीस करोड़ की जनसंख्या के साथ बदले माहौल में राष्ट्रीय पार्टियों को नये चिंतन की जरूरत है। अट्ठावन साल से ऊपर के लोगों को राजनीतिक पार्टियों में संजोकर उनसे कथित देशसेवा कराने का कोई औचित्य नहीं है। जिस प्रकार बूढ़ा होने के बाद व्यक्ति के हाथ पांव ढीले पड़ जाते हैं उसी प्रकार आज की राष्ट्रीय पार्टियों के अस्थि पंजर भी...