काले धूल के राक्षसों का उत्पात...क्यों खामोश है प्रशासन





 छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के औद्योगिक क्षेत्रों-उरला, सिलतरा, सोनढोंगरी,भनपुरी से निकलने वाली काली रासायनिक धूल ने पूरे शहर को अपनी जकड़  में ले लिया है .यह धूल आस्ट्रेलिया के औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाली धूल से 18 हजार गुना ज्यादा है.
यहां करीब तीन दर्जन उद्योग ऐसे हैं जो चौबीसों घंटे धूल भरी आंधी उगल रहे हैंं ,जिसपर किसी का कोई नियंत्रण नहीं ह्रै. नियंत्रण है तो भी वह कुछ दिनों में छूटकर आसमान और धरती दोनों पर कब्जा कर लेते हैं.
चौकाने वाली बात यह है कि वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौत भारत में हुई है. यह संख्या चीन से ज्यादा है.प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण से जहां 1640 लोगों की मौत के मुकाबले चीन में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या (1620 ) ज्यादा है. यह आंकड़े हम यहां इसलिये पेश कर रहे हैं ताकि रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिये इसपर नियंत्रण पाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये. वायूु प्रदूषण के बगैर स्मार्ट सिटी,डिजिटल सिटी बनाने का सपना पूरा हो पाना कठिन है. आज स्थिति यह है कि एक स्थान पर कालेधूल को हटाया जाता है तो शहर का दूसरा भाग कालिख पुतवा लेता हैं. चंद उद्योग न केवल हमारें घरों को बर्बाद कर रहे हैं बल्कि हमारे जीवन से भी खिलवाड़ कर रहे हैं.हम यह नहीं कह रहे कि इन्हें पूर्णत: बंद कर दिये जाये. इन उद्योगों में कई लोगों को रोजगार मिला हुआ है.उनकी रोजी रोटी इसीपर चल रही है इसे बनाये रखते हुए उद्योगों से इस बात की सख्ती जरूरी है कि वे औद्यागिक नियमों का कड़ाई से पालन करें तथा प्रदूषण फैला रहे यंत्रों की जगह नये उपकरण  लगाये तथा प्रशासन इसपर सख्ती करें. बहरहाल जहां तक प्रदूषण का सवाल है इसका रिश्ता छत्तीसगढ़ से अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से है. रायपुर शहर के लोग एक गंदी बदबू से परेशान रहते थे. यह हर मौसम में इस शहर के लोगों के लिये सरदर्द था. कुम्हारी में स्थिति एक डिस्टलरी के गंदे पानी से यह बदबू रायपुर शहर तथा आसपास दूर- दूर गांवों तक पहुंचती थी .ले देकर इस समस्या का हल राजधानी बनने के बाद या तो अपने आप निकला या फैक्ट्री ही बंद हो गई तो धीरे- धीरे समस्या  खत्म हो गई. उस समय एक दूसरी समस्या भी जन्म ले रही थी.स्पंज आयरन कंपिनियों से निकलने वाले काले धूल की. यह धूल आज पूरे रायपुर में जवान होकर उत्पात मचाये हुए  है. स्पंज आयरन उद्योगों से निकलने वाली बेधड़क और बेपरवाह, बेझिझक निकलने वाली धूल इस शहर को खा रही है.  धूल को रोकने की लाख कोशिशें
नियमानुसार की गई-साम, दाम, दंड व भेद सब तरीके अपनाये गये लेकिन धूल उड़ाने का सिलसिला जारी है.प्रशासन और सरकार दोनों की अस्थाई,अनियमित कार्यवाहियों के चलते इन उद्योगों के हौसले बढ़ते ही चले गये और यह अब यह एक कैंसर का रूप ले बैठा है. इन उद्योंगों को जनता को परेशान व त्रस्त कर देने का लायसेंस मिल चुका है.कोई कार्रवाही इनपर असर नहीं कर रही सब  बेपरवाह और निडर होकर अपनी तिजोरी भर रहे हैं. इसका नतीजा यह निकल रहा है कि उद्योंगों के आसपास रहने वालों के लिये यह धुंआ मुसीबत बना हुआ है. रात में धूल की मात्रा ज्यादा होती है जो मनुष्य की नाक में से शरीर में धुस रही है. पूरें शहर को धूूल ने अपने ग्रिप में ले रखा है. घरों की छत तो काली धूल से सन चुकी है. बाहर आंगन में किसी की गाड़ी खड़ी हो तो वह भी इस केमिकल युक्त धूल की चपेट में आकर बर्बाद हो रही है. सरकार का प्रदूषण विभाग क्या कार्रवाही इन उद्योंगों के खिलाफ करता है इसका अंदाज इसी से लगता है कि यह पूरे शहर को काली धूल से रंगने में कोई कसर नहीं छोड़ते. इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या ऐसे हालात में रायपुर  कभी स्वस्थ साफ सुथरा  हो पाएगा? शहर के भीतर व बाहर सारी जगह काली धूल का साम्राज्य  है. जब रायपुर का सर्वेक्षण करने वाले आते हैं तो उनके होटलों में तक काली धूल का साम्राज्य उन्हें दिखाई देता है. वे इसके बाद कैसी रिपोर्ट देते होंगे इसकी कल्पना की जा सकती है. रायपुर शहर आज की स्थिति में काली ,भूरी धूल, गंदगी, मच्छर का पर्याय बना हुआ है. जिन काली धूल उगलती फैक्ट्रियों को पिछले सालों के दौरान प्रदूषण नियंत्रण करने की मशीनें लगाने की जिम्मेदारी दी गई थी उनमें से कितनों ने इस आदेश का पालन किया यह तक देखने वाला इस शहर में कोई नहीं है. सरकार के निर्देशों की खिल्ली उड़ाते हुए जनता को तंग कर अपनी तिजोरी भरने वालों ने सरकार के विकास और स्वच्छता के अभियान का तो जहां मटियामेट किया है वहीं जनता को कई किस्म की बीमारियंा भी बिना मांगे दे दी है. इन उद्योगों पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर भी है वे वास्तव में अपने आप कर्तव्य से भी विमुख है. रासायनिक काले धूल की चिमनियों से छोड़ते धुएं राजधानी के हर उस अधिकारी व कर्र्तव्यस्त अधिकारी को दिखाई दे रहा है जो यहां रहता है किन्तु इसपर लगाम लगवाने में क्यों पीछे हटते हैं यह वास्तव में अगली पीढी के लिये शोध का विषय बनकर खड़ा है.मंदिर हसौद में भी एक ऐसी ही फैक्ट्री थी जिसमें भी भारी मात्रा में काली धूल निकलती थी .उस फैक्ट्री को आसपास के लोग  काला राक्षस कहते थे. इसके धूल से आसपास के गांवों की पूरी फसल काली हो गई थी यहां तक कि पैदा होने वाले बच्चे तक काले पैदा होने लगे थे. क्या रायपुर का प्रशासन यही चाहता है कि मंदिर हसौद के उस फैक्ट्री के धूल की तरह का असर रायपुर और उसके आसपास रहने वालों के साथ भी हो. अफसरशाही के निकम्मेपन का ही परिणाम है कि आज राजधानी में अगर कोई अपने नंगे पैर धरती पर पांव रखे तो उसपर कालिख पुत जाती है और कोई हाथ लगाये तो मुुंह काला हो जाता है.हम आज शहर का जितना भी विकास कर ले लेकिन अगर इस काली धूल को उडाने वालों पर शिकंजा नहीं कसा गया तो यह सारा विकास व्यर्थ हो जायेगा.हमने अच्छी-अच्छी योजनाएं शुरू की है अच्छे अच्छे बड़े-बड़े भवनों का निर्माण किया है .किन्तु यह सब देखते देखते ही कालिख से पुत जाती है. सवेरे घूमने निकलने वालों को पार्कों की बैंच पर कालिख पुत रही है.जो वृक्ष लग रहे हैं वह धूल का परवान चढऩे से बढ नहीं रहे.  भविष्य में रायपुर शहर में रासायनिक बारिश होने लगे तो भी आश्चर्य नहीं. सरकार को चाहिए कि वह इन उद्योगों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही करें ताकि भविष्य में होने वाले खतरों को रोका जा सके.                                                       



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