गुजरात चुनाव...सत्ता तो मिली लेकिन चेतावनी भी दी गई


गुजरात में बेशक जीती बीजेपी, जीतना ही था, इतने सघन प्रचार-प्रसार और पूरी ताकत  के बाद भी अगर भाजपा नहीं जीतती तो शायद यह उसके लिये बहुत बड़ी हार होती. जीत इतने कम मार्जिन से है कि उसे अब अगले चुनाव के लिये सतर्क हो जाना चाहिये. अपने गृह राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इतना पसीना बहाने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिये थी. इसमें दो मत नहीं कि यहां कांग्रेस ने कड़ा मुकाबला कर भाजपा को इस बात की चेतावनी तो दे दी है कि अब आगे उसे अपनी रणनीति में काफी बदलाव करना होगा.उण्णीस वर्षो से भाजपा गुजरात की सत्ता पर काबिज  हैं. प्राय: हर पार्टी की सरकार को सत्ता में रहते हुए नकारात्मक वोटो का सामाना करना पड़ता है किन्तु यह गुजरात की जनता का मोदी प्रेम था कि उसने उन्हें फिर मौका दिया और बीजेपी सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रखने में  कामयाब रही, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहनगर वडनगर जिस विधानसभा क्षेत्र में आता है, वहां बीजेपी की हार हो गई. कांग्रेस प्रत्याशी आशा पटेल ने बीजेपी के नारायण पटेल को हराया.यह भी दिलचस्प है कि वडनगर में पीएम मोदी और राहुल गांधी दोनों ने रैलियां की थीं. गुजरात चुनावों में सत्ताधारी बीजेपी के ज्यादातर दिग्गजों को जीत मिली है, जबकि कांग्रेस के कुछ दिग्गजों की हैसियत भी जनता ने दिखा दी. मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी जैसे दिग्गजों को जीत मिली, विधानसभा अध्यक्ष रमण लाल वोरा को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा वहीं, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढ़वाडिया, सिद्धार्थ चिमनभाई पटेल और राष्ट्र्रीय प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल को भी शिकस्त का सामना करना पड़ा.गुजरात चुनाव में इतना उलट फेर नहीं होता यदि पाटीदार पहले की तरह भाजपा का साथ देते किन्तु पाटीदारों के एक बड़े वर्ग ने हार्दिक पटेल का साथ देते हुए कांग्रेस को समर्थन दिया. भाजपा जरूर अपनी जीत की खुशी मनाये लेकिन उसे यह भी याद रखना चाहिये कि इस प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई में उसके पांच मौजूदा मंत्रियों को  चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. उन्हें कांग्रेस उम्मीदवारों ने मात दी है. हारने वाले पांच मंत्रियों में आत्माराम परमार और चिमनभाई सपरिया कैबिनेट मंत्री हैं.प्रदेश बीजेपी के बड़े दलित चेहरे परमार को बोटाड जिले की गधाड़ा (एससी) सीट पर कांग्रेस के प्रवीणभाई मारू के हाथों हार का सामना करना पड़ा है.पीएम मोदी ने जीत के बाद यह जरूर कहा है कि नतीजों से साफ है कि देश सुधारों के लिए तैयार है किन्तु यह भी सही है कि जीएसटी में बीच चुनाव के दोरान किये गये सुधारों की वजह से मतदाताओं के बड़े वर्ग का झुकाव इस आशा के साथ भाजपा की तरफ झुका कि आगे आने वाले समय में अच्छे दिन आयेंगे अत: अब यह भी जरूरी है कि सरकार जनता की उम्मीदों को बनाये रखे ताकि आगे आने वाले समय में इस किस्म के आक्रोश और फिर उसे मनाने जैसी जरूरतो का सामना न करना पड़े.यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि 2012 में बीजेपी को करीब 48 प्रतिशत वोट मिले थे. इस बार उसके वोट पर्सेंटज में  इजाफा हुआ है. भाजपा के लिये यह चुनाव जहां प्रतिष्ठा और सत्ता को बचाये रखने का था वहीं कांग्रेस के लिये भी यह अपनी ताकत दिखाने और सत्ता पर कब्जा कर अपने अस्तित्व को दिखाने का था.कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया था कि गुजरात के नतीजे चौंकाएंगे ये बात तब सच साबित हुई, जब 150 प्लस सीटों का दावा करने वाली बीजेपी 100 का आंकड़ा नहीं पार कर पाई. असल में राहुल गांधी को इस बार उन्हीं की पार्टी के बयानबाजों की वजह से यह दिन देखना पड़ा. मणिशंकर अययर, कपिल सिब्बल के बयानों के तीर ने असल कांग्रेस वोटरों को घायल कर दिया. एक बार राहुल का सपोर्ट करने की ठान बैठे कई लोग इन बाणों से घायल होकर पुन: अपने खेमें में लोट गये. गुजरात में इस बार मोदी सीएम चेहरा नहीं थे:जीएसटी के फैसले से व्यापारी नाराज थे इसके अलावा कांग्रेस का कास्ट कार्ड भी था.इनके चलते कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर कम हुआ. पाटीदार आरक्षण आंदोलन,राहुल की आक्रामक कैम्पेनिंग जिसमें चुनाव कैम्पेन के दौरान 27 बार मंदिर गए. सौराष्ट्र्र में लोकल लीडर्स कांग्रेस का साथ कुछ ऐसे कारण थे जो कांग्रेस को मजबूत बना रही थी.वहीं जीएसटी रेट में कटौती से सूरत कांग्रेस की झोली में जाने से बच गया. शहरी, ग्रामीण, आरक्षित और अनारक्षित सीटों के हिसाब से देखें या फिर क्षेत्रवार, सभी जगहों पर कांग्रेस और बीजेपी का वोट शेयर और सीटों का आंकड़ा एक अलग ही पैटर्न पेश कर रहा है.आमतौर पर चुनावों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है. चुनाव में जीत दर्ज करने वाली बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस से काफी ज्यादा रहा, फिर भी उसकी सीटें घट गईं लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन इलाकों में भी बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस से कुछ ज्यादा रहा, जहां कांग्रेस ने ज्यादा सीटें जीती हैं मसलन ग्रामीण इलाकों की बात की जाए तो कांग्रेस का प्रदर्शन सीटों के हिसाब से तो अच्छा रहा, लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी ही आगे रही.

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