ऐसे लाकर जिसमें रखे पैसे की कोई सुरक्षा नहीं!



14 सिंतंबर 2004 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर मेेंं  दिन-दहाड़े सुबह करीब साढ़े दस बजे शहर के मुख्य मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंदौर से पाँच करोड़ रुपए लूट लिए गये थे. यह बहुत बड़ी लूट थी तब से अब तक का लम्बा समय गुजर गया लेकिन न बैंक वाले चेते न पुलिस और न प्रशासन. सुरक्षा व्यवस्था में कोइ्र्र तब्दीली नहीं हुई. इसके बाद से अब तक पूरे छत्तीसगढ़ में बैंक डकैतियों का एक लम्बा सिलसिला चल पड़ा है लेकिन सुरक्षा का मामला तब गर्म होता है जब फिर कोई वारदात होती है.छत्तीसगढ़ में अभी दो दिन पहले हुई दो डकैतियों के बाद से मामला फिर गर्म है. बैकों की सुरक्षा व्यवस्था पर जहां गंभीर सवाल उठे हैं वही लाकरों पर भी सवाल खड़े किये गये हैं.

इतने नियम-कानून के बाद भी हमारा पैसा बैंकों मेें कितना सुरक्षित है? यह सवाल उस समय ठठता है जब बैंक में कोई हादसा होता है. लोग अपने मेहनत की कमाई को चोरों से बचाने के लिये बैंक का सहारा लेते हैं यह मानकर कि उनका पैसा यहां सुरक्षित रहेगा.बैकों में खाता खुलवाने से पहले बड़ा सा आवेदन पत्र ठीक उसी तरह भरवाया जाता है जिस तरह विद्युत मंडल वाले बिजली का मीटर देने के पहले भरवाते हैं.  बहुत से नियम कानून उसमें लिखे होते हैं. जिसे पढऩे का समय उपभोक्ता के पास नहीं होता. लिखे हुए अक्षर भी इतने छोटे होते हैं कि चश्में न लगाने वालों की बात छोडियें मोटा चश्मा लगाने वाले भी नहीं पड़ सकते्. खाता खुलवाने की जल्दी में उपभोक्ता इन नियम कानूनों को अनदेखा कर देता है सिग्रेचर कर वह बैंक के नियम कानून के दायरे में बंध जाता ह,ै यह सब उसे उस समय पता चलता है जब बैेंक पर कोई मुसीबत आती है जैसा हाल ही बंैक  के लाकर टूटने की घटना के साथ हुआ है. लाकर में उपभोक्ता कितना रूपया व आभूषण व जरूरी दस्तावेज तथा अन्य महत्वपूर्ण साधन रखता है इसकी जानकारी बैंक लाकर में रखने वाले के सिवा कोई नहीं जानता. लाकर खोलने से पहले खातेदार से बैंक अपने बने बनाये आवेदन पत्र पर उसके सिग्रेचर ले लेता है कि जो भी वस्तु आप लाकर में रखेंगे उसके गुम होने या और कुछ घटित होने की जिम्मेदारी बैंक की नहीं रहेगी. एक चावी खातेदार के पास और दूसरी बैैक  के पास रहती है. दोनों मिलकर ही लाकर खोलते हैं लेकिन जिम्मेदारी सिर्फ खातेदार की ही रहती है. अगर कुछ भी कम हो तो खातेदार जाने. हां डकैती हो जाये, बैंक में आग लग जाये या बाढ़ के पानी में डूब जाये तो भी बैंक की कोई जिम्मेदारी नहीं. आपने जितने का इन्श्योरेंस कराया है उतना पैसा आपकों इश्योरेेस वालो ंकी मनमर्जी से मिलेगा लेकिन बैंकों में लाकर खोलने वालों में बहुत कम होते हैं जो इश्योंरेंस के चक्कर में पड़ते हैं क्योंकि बैंक के लाकरों के बारे में आम लोगों की सदैव से यही धारणा रहती है कि यही सर्वाधिक सुरक्षित जगह है. अक्सर महिलाओ के लाखों -करोड़ों रूपये के आभूषण व नगदी इन लाकरों में डाले जाते हैं.ब्लेक मनी वाले भी इसे सर्वाधिक सुरक्षित खजाना मानते हॅैं. लाकरों में जब सैंंध मारी होती है तो कोई भी इसकी सही जानकारी देने की स्थिाति में नहीं होता...यह सभी जानते हैं कि बैंक तो कतई दे भी नहीं सकता. रखने वाला सिर्फ सिर पकड़कर बैठ जाने के कुछ नहीं कर सकता...असल में इस समूची लाकर प्रणाली के लिये बैंक की गारंटी ग्राहक को नहीं हाने से इस पर ही सवाल पैदा होता है. बैंक चाहे तो ग्राहकों के पैसों की रक्षा कर सकता है लेकिन उसे इसकी चिंता नहीं होती. वह अपने पैसे को बैंकों में लाने ले जाने के लिये कठोर सुरक्षा का इंतजाम करता है लेकिन बैंकों के लाकर में रखे जनता के पैसे की रखवाली का जिम्मा ग्राहको के सिर पर छोड़कर चुपचाप बैठा रहता है. रायपुर के निकट विधानसभा रोड़ पर बैंक में तीन दिन छुट्टी के दोरान चोरों को इतना मौका मिला कि यहां से वे करोडों रूपये का माल लाकर को गैस कटर से काट निकालकर ले गये.क्या यहां बैंक में सुरक्षा मजबूत होती तो ऐसा होता? स्टेट बैंक की इस शाखा में जहां डकैती हुई वहां तो सुरक्षा थी नहीं साथ में आसपास स्थित किसी बैंक में  भी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था.ऐसा प्राय: सभी शहरों के बैंक और उसके एटीए का हाल है. छत्तीसगढ़ में सैकडों की संख्या में बैंक खोले गये हैं किन्तु सुरक्षा इंतजाम कहींं ढंग का नहीं है कचना ग्राम मेें,खोले गयें एक बैंक के समीप ही शराब की भटटी है.सर्वाधिक चिंता का विषय यह है कि पूरे प्रदेश में लगातार वर्षो से एक के बाद एक अलग अलग तरीके की डकैतियां लूट और एटीएम तोडऩे व उसके पास से बैंक लूटने की घटनाएं होती रही है उसके बाद भी बैंको ने कोई सबक नही सीका. सुरक्षा के लिहाज से ज्यादातर बैंक भगवान भरोसे ही संचालित हो रहे हैं। ऐसे में बैंकों के लॉकरों में रखे लोगों के कीमती सामानों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है.अधिकांश बैंकों में सशस्त्र गार्ड नहीं हैं. कुछ बैंकों में हैं भी तो गार्ड खाली हाथ चौकीदार की तरह खड़े रहते हैं. विपरीत परिस्थितियों में निपटने कोई व्यवस्था नहीं है. बैंकों में कौन आ और जा रहा है, इसका कोई लेखा जोखा नहीं है. सीसीटीवी कैमरे सिर्फ दिखावे के लिए हैं.





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