युवा पीढ़ी के दिमाग में सिर्फ किताबी किस्से ही क्यों?





आजादी के बाद के कई वर्षो तक प्राथमिक शिक्षा का जो माहौल था वह बच्चों में थोड़ा या कहीं -कहीं  ज्यादा डर पैदा कर कुछ सिखाने का रहता था. मंशा यह रहती थी कि बच्चा पढ़ाई के साथ कुछ ऐसा भी सीख ले कि वह आगे जाकर किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ भी दे तो उसे जो बुनियादी सीख दी गई है वह उसके आधार पर अपना व्यवसाय उद्योग खेती कर अपना व अपने परिवार को पाल सके किन्तु आगे आने वाले वर्षो में यह सोच खत्म हो गई. बुनियादी शिक्षा के नाम पर पूर्व के कई स्कूलों में पढ़ाई के साथ साथ हस्तशिल्प, चित्रकारी खेलकूद, व्यायाम स्काउट, एनसीसी आदि के भी प्रशिक्षण का बोलबोला था. व्यावसायिक शिक्षा पद्वति अपनाने से छात्रों की पुस्तकों के प्रति होने वाली कथित बोरियत बहुत हद तक कम हो जाती थी. वैसे हम पूरे तौर पर यह नहीं कह सकते कि स्कूलों ने पुस्तकों के बोझ के परिप्रेक्ष्य में  पुरानी पढ़ाई की पद्वति को पूरी तरह तिलांजलि दे दी लेकिन इसका स्वरूप बदल गया. सरकारों ने इसे बहुत हद तक अलग कर इसके अलग-अलग विंग बना दिये या कहीं कहीं तो इसके अलग विभाग ही स्थापित कर दिये. बच्चे जो पहले पढ़ाई के साथ बुनाई, कढ़ाई, कला चिंत्राकन आदि का प्रशिक्षण लेते थे उन्हें यह आप्शनल कर दिया अर्थात जिसे सीखना है वह सीखे इसके लिये अलग से क्लास अटैण्ड करें. अर्थात स्कूल नहीं सिखायेगा.आपको सीखना है तो इसके लिये उन्हे स्कूल छोड़कर कहीं और जाना होगा. सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसके लिये स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग खोल दिया है और वह कतिपय आयोजनों को प्रायोजित करता है इसका उद्देश्य 15 साल से 35 साल तक के युवाओं को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना होता है उन्हें स्वावलंबी बनाना इसका उद्देश्य है. इस संगठन का कार्य शहरी / ग्रामीण जनसंख्या, विशेषकर नए साक्षरों, अर्ध साक्षर, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला और बालिकाओं, झुग्गी - झोंपडियों के निवासियों, प्रवासी कामगारों आदि के लिए सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े और शैक्षिक रूप से अलाभ प्राप्त समूहों के लिए शैक्षिक, व्यावसायिक और व्यावसायिक विकास करना है. इस समय देश में करीब 221 जेएसएस हैं, जहां असंख्य व्यावसायिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं विभिन्न प्रशिक्षणों के लिए अलग-अलग अवधि होती है लगभग 380 व्यावसायिक पाठ्यक्रम इन संस्थानों द्वारा प्रस्तावित किए जाते हैं एक तरह से सरकार ने उस स्कूली व्यवस्था को खत्म कर दिया जिसमें बुनियादी प्रशिक्षण संस्थाओं के प्रशिक्षार्थी स्कूलों में प्रशिक्षण के तौर पर विभिन्न रोजमर्रे के उपयोग में आने वाले उपकरण बनाने, कृषि कार्य सिखाने व छोटे मोटे उद्योग चलाने का प्रशिक्षण देते थे. इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि स्कूलों में बच्चे जो अपने पाठ्यपुस्तकों के साथ अन्य इस प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त करते थे वह बिल्कुल बंद हो गया या कहे कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाई तक सीमित कर दिया गया. उनके दिमाग में वहीं पुराना इतिहास, भौगोलिक स्थिति और अन्य ऐसी ही कई बाते जिनका कोई औचित्य नहीं रहता छात्रों के दिमाग में भरना शुरू कर दिया. छात्र शैक्षणिक संस्थाऔ में सिर्फ और सिर्फ किताबों का कीड़ा बनकर रह गया है. $कुछ पाठ्यपुस्तकों  का तो छात्र के भविष्य से कोई सरोकार भी नहीं रहता. अगर पुराने स्कूलों में पढ़े छात्रों और अभी कि पढ़ाई कर रहे छात्रों के बारे में  बहुत कम ही ट्रेड/पाठ्यक्रम जिनके लिए पहले प्रशिक्षण दिए जाते थे जैसे कटाई, सिलाई और परिधान बनाना, बुनाई कढ़ाई, सौन्दर्यवर्धक और स्वास्थ्य देखभाल, हस्तशिल्प, कला, चित्रांकन और चित्रकारी, इलेक्ट्रोनिक, आदि के बारे में कोई जानकारी किसी स्तर पर नहीं दी जाती. ऐसे बहुत से काम प्रारंभिक शिक्षा के दौरान ही छात्र प्रायोगिक तौर पर स्कूल से ही शिक्षा के दौरान प्राप्त कर लेते थे. किन्तु  इस व्यवस्था के धीरे धीरे खात्मे ने एक विकट स्थिति निर्मित कर दी है. स्कूलों से निकलने वाला प्राय: छात्र किताबी ज्ञान लेकर निकल रहा है वह छोटे मोटे काम भी करने की स्थिति मे नहीं है इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये छात्र को दूसरा छात्र जीवन शुरू करना होगा चूंकि वह किताब के बोझ़ के तले दबकर किसी भी व्यावसायिक ट्रेड का ज्ञान प्राप्त नहीं कर पा रहा है. हम सिर्फ सिग्नेचर करने वाले साहब बनाने पर अपनी शिक्षा को केन्द्रित कर रहे है हमें इस बात की चिंता कतई नहीं है कि देश निर्माण के लिये हर क्षेत्र में स्किल वाले लोगों की जरूरत है यह ज्ञान हमें बुनियादी शिक्षा में ही मिल सकती है यही शिक्षा आगे देश का भविष्य निर्माण करेगी. छात्रों में से ऐसे बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार प्रशिक्षित कर आगे बढ़ाना होगा तभी कुछ परिवर्तन संभव है.

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