कब तक हम प्रदूषित ध्वनि और जाम की चपेट में फंसे रहेंगे?

 कब तक हम प्रदूषित ध्वनि और जाम की चपेट में फंसे रहेंगे?

14 दिसम्बर 2016   |  एंटोनी जोसफ

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रोज सुबह तीन से पांच बजे का समय! जब शहरो में लोग गहरी नींद में होते हैं तब आसपास किसी क्षेत्र से या तो फिल्मी गाने की तेज आवाज आती है या फिर कोई माइक लेकर चीखता चिल्लाता हुआ सुनाई देता है. समझ में नहीं आता कि यह आयोजन किसलिये और किसको सुनाने के लिये?. ध्वनि फेकने वाले स्थल से सवेरे मार्निगं वाक पर निकले लोग बताते हैं कि ऐसे लोग टेप लगाकर सो जाते हंै. यह रोज का सिलसिला है.इसके थोड़ी ही देर बाद किसी आस्था केन्द्र से लाउड स्पीकर की तेज आवाज सुबह चिडिय़ों के चहकने की सुरीली आवाज तक को दबा देती है.कानफोडू आवाज के बाद झल्लाकर उठने वाले शहर के लोग काम पर निकलते हैं तो फिर उन्हें हर पग पर ऐसी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ता है ऐसे लोग चाहे पैदल जा रहे हो या सायकिल पर अथवा दो पहिया या चार पहिया वाहन पर. शहर में मौजूद ऐसी किस्म की परेशानियां जिसे प्रशासन अनदेखा करता है पीछा ही नहीं छोड़ता. सड़क या गली पर पहुंचते ही दूसरे किस्म की परेशानी उसे घेर लेती है.सार्वजनिक सड़क पर यह बाधा किसी के बर्थडे के रूप में सामने आता है तो किसी के छट्टी कार्यक्रम के रूप में! सड़क की घेराबंदीं हो जाती है....और सारा शहर डायवर्ट हो जाता है.फिर यह कोई बड़ा समारोह हो या जुलूस अथवा रैली निकल रही हो सब जगह यह सिलसिला छोटे और बड़े पैमाने पर एक साधारण व्यक्ति से लेकर सभी स्तर के लोगों को तंग करता है.इस अव्यवस्था को दूर करने वाला कोई जिम्मेदार कहीं नजर नहीं आता. किसी एक व्यक्ति या कुछ लोगों की खुशी को सड़क पर लुटाने का खेल छत्तीसगढ़ और कई अन्य राज्यों में बेखौफ एक बड़ी आबादी को तंग करने के रूप में मौजूद है. सड़कों से प्रतिबंधित आवाज के फटाके फोड़ते, डीजे बजाते हुए रैली निकालना आम बात हो गई है. सड़कों को बाधित करने वाले कार्यक्रमों को प्रशासन मौन मंजूरी देकर पुलिस को भी इसकी पहरेदारी में झोंक देती है.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जैसे व्यस्त शहर में अगर कोई नेता आ गया तो सड़कों की जो दुर्गती की जाती है वह किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिये प्रेरित करने जैसा है. अपनी ताकत दिखाने के लिये सड़क का ही उपयोग क्यों किया जाता है? यह प्रश्न सड़क पर चलने वाले की हर व्यक्ति की जुबान पर है. भारत की सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन कराने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वह भी खामोश है उनकी नाक के नीचे ही डीजे बजता है.जुलूस निकलता है ओर पटाखे फोड़े जाते हैं. अगर शहर में डीजे नहीं मिला तो आसपास के शहरों से भी डीजे मंगाकर बजाया जाता है, इस दौरान कई बुजुर्गो की धड़कने तेज हो जाती है.जो अस्पतालों के लिये मरीज लेकर जाते हैं उनकी भी घड़कने तेज हो जाती है. सड़कों पर ट्रेफिक को रौधते हुए नेताओं की गाडिय़ों के रैले को निकलने दिया जाता है तो कभी किसी आयेाजन के नाम पर पूरे रास्ते को जाम कर आम आदमी की जिंदगी तक से खिलवाड़ किया जाता है. यह सब रोज हमारे देश के प्राय: हर बड़े कस्बे में हो रहा है.कहने का मतलब यह कि कुछ लोग सैकड़ो अन्य लोगों के मौलिक व संवेधानिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और हम खामोश है तथा प्रशासन जिसे यह सब रोकने का अधिकार है वह सब देखते व सुनते हुए भी कान में रूई और आंख में पट्टी बांधे बैठा है.देश के शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिये सरकार की मंशा तो है लेकिन नौकर शाही मानसिकता स्मार्ट सिटी की तरह स्मार्ट नहीं है तभी तो यहां जिसकी मर्जी वैसा चलता हैं.

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