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सेना ने वादा निभाया-चुनी हुई जगह और समय पर जवाब दिया!

  इस सर्जिकल स्ट्राइक्स को भले ही कुछ लोग उत्तर प्रदेश चुनाव से पूर्व मोदी की छवि सुधारने का प्रयास या और कुछ कहें लेकिन हम मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी का यह कदम उडी हमले के बाद पाक को सबक सिखाने के लिये उठाया गया अब तक का सबसे बेहतरीन कदम है जो पूरे सोच समझकर और पूरी ब्यूह रचना के साथ किया गया. ठीक वैसा ही जैसा अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ओसामा बिन लादेन के साथ किया था. पाकिस्तान में छिपे इस कुख्यात आंतकवादी को बिल से निकालकर अमरीकियो ने समुन्द्र में फेक दिया था.हमारी सेना ने उनके अनुयायिों को वहीं दफनाने के लिये छोड़ दिया. पाक आतंकवादी ठिकाने पिछले कई समय से भारत के लिये सरदर्द बने हुए हैं. म्यामार में हमारी सेना की कार्यवाही के बाद से लगातार यह मांग उठती आ रही थी कि पाक अधिकृत कश्मीर में छिपे बैठे आतंकवादियों पर भी इसी प्रकार की कार्यवाही की जाये.उड़ी हमले के बाद पाक को उसकी औकात दिखाने का समय आ गया और कहना चाहिये कि नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के समय जिस छप्पन इंच के सीने की बात कही थी वह हकीकत में दिखा दी. ऐसे मामलों में तत्काल निर्णय लेने की जरूरत होती है जो हर किसी के बस की बात न

बिना खून खराबे के ही हमने अपने दुश्मन की रीढ़ तोड़ दी!

किसी को अगर सजा देना है तो इससे अच्छी बात ओर क्या हो सकती है कि उससे बात करना ही बंद कर दे. यह सजा उसे मारने- पीटने से भी ज्यादा कठोर होती है. पीएम नरेन्द्र मोदी यह नुस्खा अच्छी तरह जानते हैं.उन्होंने उत्पाती पडौसी को सबक सिखाने के लिये जो रास्ता चुना वह युद्व का न होकर कुछ इसी तरह का है जिसने आंंतक फैलाने वाले पडौसी को संसार में हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया. उड़ी में हमारे अठारह जवानों को शहीद बनाकर वह यह सोचने लगा था कि उसने इस आतंक के बल पर भारत की एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या को सबक सिखा देगा लेकिन उसने यह नहीं समझा कि उसके इस हथियार से बड़ा हथियार लेकर हमारे प्रधानमंत्री मैदान में है. पाक ने लुका -छिपी के खेल में हमारे देश में खून बहाया तो हमने बस इतना कहा कि तुम पानी -पानी के लिये तरसोगे तो उसके होश उड गये.पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया से अलग-थलग करने की रणनीति ने अब अपना असल रूप दिखाना शुरू कर दिया है. केंद्र सरकार ने जहां सिन्धु जल समझौते पर कड़ा रूख अपनाया वहीं मंगलवार को यह  बड़ा फैसला लिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवंबर में इस्लामाबाद में होने वाल

इंसान की ताकत- बहादुरी(?) के कारनामें इंसानों पर ही

 लोग धीेरे धीरे काफी बहादुर(?) होते चले जा रहे हैं वे कभी अपनी मर्दानगीे सड़कों पर दिखाते हैं तो कभी घरों पर!... और इस  मर्दानगी का शिकार कहीं कोई अबला बनती है तो कभी कोई मासूम सी बच्ची! जबलपुर के एक संभ्रान्त परिवार की महिला ने पिछले दिनों अपनी मासूम बेटी का इसलिये कत्ल कर दिया चूंकि वह बेटी नहीं बेटा चाहती थी- उसने अपनी मासूम बच्ची को मारकर एसी के अंदर छिपा दिया. एक बहादुर(?) प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को दिल्ली में सरे आम चौबीस बार चाकू मारकर अपनी बहादुरी(?) का प्रदर्शन किया. हाल ही चेन्नई की एक अदालत ने दिलचस्प बात कही- पत्नी ने अदालत को बताया था कि उसका बहादुर? पति उसे पीटता है. अदालत ने पति महोदय को फटकार लगाते हुुए कहा कि अगर पीटना ही है तो सरहद पर जाओं वहां आतंकवादी खूब उत्पात मचा रहे हैं, उनको पीटो. ऐसे बहादुर(?) लोगो के लिये कोर्ट का ऐसा ही आदेश शोभा देता है.पता नहीं कितने लोग इसका पालन करेंगे, बहरहाल असल मुद्दा आज यही है कि देशभर में बलवान पुरूष एक  दो या तीन मिलकर किसी  भी अबला के साथ कहीं भी अत्याचार कर रहे हैं,हमारे कानून के लचीलेपन के कारण या तो ऐसे लोगो को कोर्ट से जमा

थानों में पिटाई...यह तो होता आ रहा है!

थानों में पुलिस पिटाई कोई नई बात नहीं है-यहां जात पात,ऊंच-नीच या धर्म  देखकर कार्रवाही नहीं होती बल्कि सबकुछ होता है पुलिस या खाकी की दबंगता के नाम पर...चोरी,लूट,अपहरण,हत्या जैसे मामले में थर्ड डिग्री का उपयोग जहां आम बात है वहीं पालिटिकल बदला लेने और पैसे देकर पिटाई कराने के भी कई उदाहरण हैं. इसके पीछे बहुत हद तक हमारी वर्तमान व्यवस्था स्वंय जिम्मेदार हैं जिसने थानों को कई मायनों में छुट्टा छोड़ रखा है जिसपर अक्सर किसी का कोई नियंत्रण ही नहीं रहता. बड़े अफसर कभी  कबार दूर दराज के थानों  में पहुंच गये तो ठीक वरना सारा थाना वहां के हवलदार और सिपाहियों के भरोसे चलता हैॅ. छत्तीसगढ़ के जांजगीर में एक शिक्षक  के बेटे सतीश के साथ जो कुछ हुआ वह कई थानों में आम लोगों के साथ होता है. कुछ लोग झेल जाते हैं और कुछ यूं ही सतीश की तरह प्राण त्याग देते हैं. सन् 2003 में पूरे पुलिस महकमें में अंबरीश शर्मा कांड की चर्चा रही.टीआई रेंक के इस अधिकारी और उसके साथियों की पिटाई से बलदाऊ कौशिक की पुलिस कस्टड़ी में मौत हो गई. अम्बरीश और साथी पुलिस वालों पर हत्या का मुकदमा चला.अतिरिक्त सेशन जज दीपक तिवारी की

फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर कब तक?

फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर  कब तक? सोमवार को दिनभर चले घटनाक्रम के बाद अब यह लगभग निश्चित हो चला है कि उरी हमला भी पिछले अन्य हमलों की ही तरह जुबानी जंग के बाद भुला दी जाएगी लेकिन 17 जवानों की शहादत को देश सदैव याद रखेगा.जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के ब्रिगेड कैंप पर हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है. 17 जवानों के एक साथ शहीदी हो जाने की खबर ने चारों तरफ दुख और सनसनी फैला दी लेकिन यह खबर भी अब पूर्व की घटनाओं की तरह अतीत की बात लगने लगी. वैसे इस बार का  आक्रोश इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला चूंकि इतना बड़ा संहार एकसाथ दुश्मन इससे पहले एक ही दिन में चंद घंटो में शायद इससे पूर्व (मुम्बई हमलों को छोड़कर) कभी नहीं कर पाया.  राजनेता से लेकर अभिनेता, सांसद से लेकर आम आदमी तक, सबने एक सुर में सैनिकों की शहादत को सलाम किया और आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जरूरत बताई, इन बयानों में से ज्यादातर बयान पुरानी लीक पर थे, कोई नई बात नहीं -आजादी के बाद से ही आतंकवाद का नासूर लेकर पल रहे हमारे देश में हर आतंकी हमले के बाद कमोबेश एक जैसे बयान आते हैं 'हम हमलों की कड़ी निंदा करते हैं, आतंकि

अब समय आ गया पाकिस्तान से फिर दो दो हाथ करने का!

अब समय आ गया पाकिस्तान से फिर दो दो हाथ करने का! हकीकत यह है कि आज पूरा देश गुस्से में हैं कि सिर्फ चार आंतकवादी पडौस से आकर हमारे सत्रह जवानों को मारकर चले गये और हमारी सरकार हमेशा की तरह सिर्फ और सिर्फ निंदा करके वही पहली बाते दोहरा कर रह गई. जम्मू-कश्मीर में सेना की एक बटालियन के मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि हम इतने कमजोर कैसे हो गये? रविवार (18 सितंबर) को पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने हमारे सब्र को तोड़कर रख दिया हैं,सबूत हमारे पास है कि उसने जो अस्त्र इस्तेमाल किए उन उपकरणों पाकिस्तान निर्मित होने के निशान  हैं क्या यह सबूत काफी नहीं  कि हम इस देश का नामोनिशान मिटा दें? सेना के शीर्ष अधिकारियों ने इस हमले को 'गंभीर झटकाÓ करार दिया। 17 जवान मारे गये और कम से कम 20 सैनिक घायल भी हो गए जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.यह बात भी स्पष्ट हो गई हैं कि मारे गए आतंकवादियों का ताल्लुक जैश-ए-मोहम्मद संगठन से हैÓ पठानकोट हमले के बाद हमें उसी समय पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन में आ जाना चाहिये था लेकिन क्यों हम बार बार ऐसा सोच रहे हैं कि अब मारा तो

एक देश,एक चुनाव: अब इसमें देरी किस बात की!

एक देश,एक चुनाव: अब इसमें देरी किस बात की! पहले प्रधानमंत्री बोले, फिर राष्ट्रपति ने मोहर लगा दी, अब  बीजेपी भी कह रही है कि एक देश एक चुनाव में हमें भी कोई आपत्ति नहीं..तो फिर देरी किस बात की- देश में पांच साल मे सिर्फ एक ही बार चुनाव होना चाहिये-बार बार के चुनाव से जनता ऊब चुकी है-चुनावी खर्च भी बहुत बढ रहा है. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति दोनों की चिंता इस विषय में स्वाभाविक है. आखिर चुनाव के लिये पैसा भी तो जनता की जेब से निकलकर ही लगता है. देश में बढ़ती हुई मंहगाई की जड़ में भी बार बार होने वाले चुनाव है.आजादी के शुरूआती दौर में सब ठीक चल रहा था लेकिन आगे आने वाले समय में यह व्यवस्था गडबडाती चली गई. देश में 26 अक्टूबर 1962 को पहली इमरजेंसी का ऐलान उस समय हुआ जब चीन ने भारत पर हमला किया इसके बाद 3 दिसंबर 1971 को भी इमरजेंसी का ऐलान हुआ जब पाकिस्तान के साथ तीसरा युद्ध हुआ तीसरी और आखिरी बार 25 जून 1975 की रात में इमरजेंसी का ऐलान हुआ और वजह बताई गई देश के अंदरूनी हालात का बेकाबू होना. तीसरी और आखिरी इमरजेंसी करीब दो साल तक लगी, इस दौरान सारे चुनाव और अन्य कई किस्म की गतिविधियों पर ल