स्वास्थ्य की तरह अन्य विभागों के रिक्त पदों पर भी तो नियुक्ति हो सकती है!



गांवों मे  झोला छाप डाक्टरों से  मुक्ति की दिशा में हाल ही एक ठेासे कदम मुख्यमत्री डाक्टर रमन सिंह ने उठाया उसके बाद से अब ऐसी संभावना बन गई है कि गांवो में लोगों को बेहतर इलाज प्राप्त हो सकेगा लेकिन एक प्रशन अब भी बना हुआ है कि शहरों की ओर भागम दौड के चलते क्या चिकित्सक गांवों में पांव जमाकर अपनी सेवा दे सकेंगे? प्रदेश सरकार ने ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिये यह कदम उठाया है कि बगैर साक्षात्कार के ही डॉक्टरों की नियुक्ति करने का आदेश जारी किया. स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने 200 नियमित डॉक्टरों की भर्ती के लिए विज्ञापन भी निकाला और इन पदों के लिए 800 आवेदन आए. इन आवेदनों का परीक्षण जब पूरा हुआ तो 609 आवेदनों को सही पाया गया और मुख्यमंत्री ने सभी पात्र डॉक्टरों को बगैर साक्षात्कार के सीधे नियुक्त करने का निर्देश दे दिया।.पूरे छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों के 539 पद रिक्त है जिन्हें शासन को भरना था लेकिन मुख्यमंत्री के इस आदेश के बाद 609 डॉक्टरों की प्रदेश में अब शीघ्र ही नियुक्ति हो जाएगी. इस आदेश से स्वास्थ्य विभाग की परेशानी एक झटके में सुलझ गई!सरकार चाहे तो क्या अन्य विभागों विशेषकर शिक्षा विभाग में इसी तरह  कमी को भी पूरा नहीं कर सकती?आज ही सर्वोच्च न्यायालय के मुख्यन्यायधीश ने एक इंटरव्यू मे कहा है कि पूरे देश में नब्बे हजार जजों के पद रिक्त पड़े हैं. केन्द्र सरकार चाहे तो यह पद भी एक झटके में पूरे देश के इंटेलीजेंट स्कालर छात्रों के आवेदप मंगाकर भर सकती है लेकिन इन सबके लिये इच्छा शक्ति की जरूरत है. जहां तक छत्तीसगढ़  के शासकीय स्कूलों में शिक्षकों की कमी का सवाल  हे इसका अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि  छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा 21 अप्रैल को 12वीं का परीक्षा परिणाम  घोषित किया गया जिसमें प्रदेश के मात्र 73.4 फीसदी छात्र-छात्राएं ही उत्तीर्ण हुए हैं वहीं 10वीं बोर्ड की   परीक्षा का परिणाम 55 फीसदी रहा.यह प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी के कारण है. प्रदेश के शासकीय स्कूलों का परीक्षा परिणाम बेहद निराशाजनक रहा वही निजी स्कूलों का परीक्षा परिणाम शासकीय स्कूलों की अपेक्षा शत-प्रतिशत देखा गया. सरकार इससे कितनी निराश है इसका अंदाज इसी से लगता है कि शिक्षा मंत्री केदार कश्यप व सचिव सुब्रत साहू को आनन फानन में शासकीय स्कूलों के प्राचार्यों की बैठक लेनी पड़ी व  जमकर फटकार भी लगानी पड़ी.मंत्री ने  चेतावनी दे डाली कि  स्कूलों के परीक्षा परिणाम ऐसे आए तो प्राचार्य पर कड़ी कार्रवाई होगी। बैठक में निराश प्राचार्यों ने स्कूलों में लंबे समय से शिक्षकों की कमी का रोना रोकर मंत्री को अवगत कराया अब सवाल यह भी उ ठ रहा है कि ऐसी चेतावनी का असर स्कूल क्या होग. उन्हें पढ़ाई से ज्यादा परिणाम की चिंता रहेगी कि कैेसे भी  ज्यादा से ज्यादा बच्चों को पास कर अपनी चमड़ी कैसे भी बचायें. प्राचार्य परीक्षकों से कहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को केसे भी पास करें चाहे वह बच्चा इस लायक है या नहीं? जिस तरह स्वास्थ्य विभाग में  बगैर साक्षात्कार व बिना कोई परीक्षा लिए डॉक्टरों की नियुक्ति आदेश दिया उसी तरह प्रदेश में डीएड, बीएड में बैठे डिप्लोमाधारी को पात्र घोषित कर भर्ती विज्ञापन निकालकर उसके आवेदनों की जांच कर सीधे नियुक्ति नहीं दी जा सकती? देश में शासकीय नौकरियों के लिए योग्यता का मापदंड निर्धारित किया गया है। डॉक्टर बनने के लिए एमबीबीएस, अधिवक्ता के लिए एलएलबी, इंजीनियर के लिए बीई, बीटेक होना सुनिश्चित किया गया है तो दो-दो वर्षों तक शासकीय संस्थानों में शिक्षक बनने प्रशिक्षण कर चुके प्रशिक्षकों की नियुक्ति  भी तत्काल  दी जा सकती है. दो-दो वर्षों तक प्रशिक्षण के पश्चात भी प्रदेश सरकार टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) का मापदंड क्यों निर्धारित करके रखी है. प्रदेश सरकार पिछले कई वर्षों से शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करके स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति करते आ रहा हैं जिसमे बिना प्रशिक्षण लिए उम्मीदवार कोचिंग के माध्यम से अच्छे अंक लाकर शिक्षक पसत्रता परीक्षा पास तो हो जाते हैं, लेकिन शिक्षक बनकर जब स्कूल पहुंचते है तो अध्यन-अध्यापन का सही तरीका देखने को नहीं मिलता और स्कूलों की पढ़ाई ढर्रे में चलती रहती है, परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद फिर शिक्षा मंत्री को प्राचार्यों की क्लास लेनी पड़ती है। आखिर मंत्री को प्राचार्यों की क्लास लेने की जरूरत ही क्यों पड़ती है? प्रदेश में शिक्षा मंत्री लगातार सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं और सिर्फ शासकीय स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अच्छा रहे और परीक्षा परिणाम बेहतर आए इसके लिए बैठक ले रहे हैं शासकीय स्कूलों का परीक्षा परिणाम शत-प्रतिशत रहे यह स्कूूलों की पढ़ाई व पढऩे  व न पढऩे वाले छात्रों पर निर्भर है. शिक्षक अच्छे से पड़ाये और छात्र अच्छे से पढ़े ताो सभी स्कूल का परिणाम शत प्रतिशत होगा मगर क्या सरकारी स्कूलों में ेऐसा होता है? डॉक्टरों की तरह शिक्षकों की कमी का समाधान एक आदेश पर हो सकता है इसी तरह अन्य विभागों में भी कमी को पूरा किया जा सकता है और व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सकता है।

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