नेपाल अच्छा मित्र था, वह ड्रेगन की चाल में कैसे फंसा....?




 यह एक विड़म्बना ही है कि हमारे आसपास कोई हमारा अच्छा और भरोसेमंद दोस्त नहीं है. हम नेपाल को अपना अच्छा पडौसी समझते थे लेकिन जो दूरियां उससे हाल के महीनों में बड़ी है वह हमें चिंतित करती है. चीन, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका सब हमारें पडौसी देश है लेकिन आज की स्थिति में हम किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते. भारत और नेपाल के बीच संबंधों की शुरूआत 1950 में नेपाल के तत्कालीन शासकों के साथ भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि द्वारा हुई थी जिसके अंतर्गत दोनों देशों के बीच पारस्परिक व्यापार और प्रतिरक्षा संबंधों को परिभाषित किया गया था, इसमें कहा गया था कि, ''कोई भी सरकार किसी विदेशी आक्रामक द्वारा एक-दूसरे की प्रतिरक्षा को पैदा किया जाने वाला खतरा बर्दाश्त नहीं करेगी और दोनों ही देशों के बीच संबंधों में कटुता पैदा करने वाले कारणों के बारे में एक-दूसरे को सूचित करेगी।ÓÓ समझौते के बाद दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हुए थे तथा भारत ने नेपालियों को अपने देश में भारतीयों के समान ही शैक्षिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में प्राथमिकता वाला दर्जा देने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की थी जिस पर भारत आज भी कायम है.कुछ समय तक तो दोनों देशों के बीच सब ठीक-ठाक चल रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में नेपाल की यात्रा की और अप्रैल 2015 में नेपाल के भीषण भूकंप में भारत ने सक्रिय सहायता भी की. इसके बाद  दोनों देशों के संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंचे थे परंतु नवम्बर 2015 में नेपाल द्वारा अपना नया संविधान लागू करने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव व कटुता की शुरूआत हो गई.भारत-नेपाल सीमा पर अवरोध पैदा हुए जिससे नेपाल में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति रुक गई और चीन समर्थक तत्वों ने इसका लाभ उठाते हुए भारत विरोधी भावनाओं को भड़काना शुरू कर दिया. इस बीच नेपाल ने भारत पर दबाव बनाने के लिए चीनी कार्ड खेल दिया और बीजिंग ने भी नेपाल को जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति करके नेपाल के दिल में जगह बना ली.चीन से हाथ मिलानें के बाद हमारे संबन्ध उनसे ठीक रहेंगे इसकी क ल्पना भी नहीं की जा सकती. नेपाल के लोगों में भारत विरोधी भावनाएं मजबूत हुई हैं जिनका इस्तेमाल प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए किया है. ओली पद ग्रहण के बाद भारत यात्रा की प्रचलित प्रथा तोड़ कर पहले चीन यात्रा के इच्छुक थे परंतु हमारे यहां से चौतरफा दबाव पडऩे के बाद उन्हें अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा और वह चीन से पहले भारत यात्रा पर आने के बाद 27 मार्च को चीन की 7 दिनों की यात्रा पर गए और वहां चीन के साथ अनेक समझौते किए. इसी बीच एक नाटकीय घटनाक्रम में  नेपाल सरकार ने अपनी राष्टï्रपति विद्या देवी भंडारी की भारत यात्रा अचानक रद्द कर दी और फिर भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय को भी वापस बुला लिया.अब यह स्थिति बन गई है कि हम नेपाल सरकार के किस आचरण पर विश्वास करे. यू.पी.ए. सरकार के अधिकांश कार्यकाल के दौरान नेपाल ने नई दिल्ली में अपना राजदूत नहीं भेजा था. नेपाल की भारत विरोधी भावनाओं का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत ने वहां काठमांडू में ट्रोमा सैंटर का निर्माण करवाया था जो 2010 में बन कर तैयार भी हो गया परंतु नेपाल सरकार ने सिर्फ इसलिए इसका अधिग्रहण करने से इन्कार कर दिया क्योंकि भारत सरकार इसका नाम 'भारत-नेपाल मैत्री ट्रोमा सैंटरÓ जैसा कोई नाम रखना चाहती थी, जो नेपाल को मंजूर नहीं था और 4 वर्ष बाद नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने तक नेपाल ने इसका अधिग्रहण नहीं किया और वह भी तब जब भारत ने इसके नामकरण से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया.राजग के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ओली के बीच संबंधों के नई करवट लेने की आशा पैदा हुई थी लेकिन बाद के घटनाक्रम ने पासा पलट दिया. शायद नेपाल में आए भूकंप से हुई क्षति की भरपाई करने में असफल रहने पर ओली भारत विरोधी पैंतरा अपना रहे हैं.नेपाल  अभी चीन की कठपुतली बनकर कूटनीतिक चाल चल रहा है जो भारत-नेपाल संबन्धों को और बिगाडऩे की ही भूमिका अदा कर रहा है.

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