आगे के वर्षो में लाखों लंबित पड़े मुकदमों का निपटारा हो पायेगा!




भारत की अदालतों में लाखों लंबित पड़े मामलों और न्यायपालिका की मुश्किलों का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश प्रधानमंत्री की मौजूदगी में भावुक हो गए.भारत में न्यायपालिका की निंदा अकसर इस बात को लेकर होती है कि बहुत सारे मुकदमे बिना फैसले के पड़े हुए हैं और अनेक मामलों में फैसला होने में कई साल लग जाते हैं. स्वाभाविक है कि इसके कारण जनता में गुस्सा है, जबकि इसके पीछे बहुत सारी वजहें है जिनका लोगों को पता नहीं होता है. न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर होती है. चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने  न्यायपालिका का बचाव करते हुए सरकारों को कटघरेें मेेें खड़े करते हुए सवाल उठाए हैं.आज भी देश में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज हैं .जस्टिस ठाकुर के अनुसार 1987 में लॉ कमीशन ने जजों की संख्या बढ़ाने की बात कही थी, लेकिन आजतक ऐसा नहीं हो पाया है। भारतीय  संविधान लागू होने से पहले जजों की भूमिका बहुत सीमित थी। उनके पास रिट संबंधी अधिकार नहीं थे, न ही सरकार या सरकारी अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर आपत्ति करने का अधिकार था,इसलिए उस जमाने में जजों की संख्या कम रखी गई थी।  जब 1950 में संविधान ने पहली बार नागरिकों को मूल अधिकार दिए और जजों को कार्यपालिका के काम की समीक्षा के नए अधिकार दिए, तब से न्यायपालिका के काम का दायरा बहुत बढ़ गया.वास्तविकता यह है कि सरकार अपना काम ईमानदारी और होशियारी से करे, तो ज्यादा रिट' याचिकाएं दायर नहीं होंगीं, कई जगह कार्यपालिका में बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार और कई बार कानून को ठीक से नहीं समझने की वजह से भी रिट का दायरा बढ़ा है. बड़ी संख्या में बार में काबिल लोग नहीं आ रहे. एक वजह ये भी है कि पहले जब बार से कम ही संख्या में काबिल लोगों की जरूरत होती थी, तो वो आसानी से मिल जाते थे लेकिन जब बड़ी संख्या में बार में काबिल लोग नहीं आ रहे हों, तो  जजों के पदों पर नियुक्त करने के लिए बड़ी संख्या में ऐसे काबिल लोग नहीं मिल पाते हैं इन सब की वजह से, अब यह विवाद है कि सरकार जजों की नियुक्ति में कुछ दखल चाहती है, जो कि स्वाभाविक रूप से न्यायपालिका को मंज़ूर नहीं है साथ ही विवाद यह भी है कि उच्च न्यायालयों के जजों के लिए कॉलेजियम ने बहुत सारी सिफारिश की हैं लेकिन उनको भरा नहीं जा रहा है,सरकार उनकी नियुक्ति नहीं कर रही है. ण्क कारण यह भी हो सकता है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री की मौजूदगी में यह दु:ख ज़ाहिर किया. यह एक गंभीर संकट है और इसका एक समाधान तो यह है कि अगर कहीं भी, न्यायपालिका के किसी हिस्से में भ्रष्टाचार शुरू होता है तो उसकी तुरंत जांच करानी चाहिए और दोषी लोगों को दंड दिया जाना चाहिए.दूसरी बात यह है कि अब तक ऐसी परंपरा चलती आ रही है कि उच्च न्यायालय का जज बनने के लिए, जब तक किसी की उम्र 40-45 साल नहीं हो जाती है, तब तक उस पर विचार नहीं किया जाता है. एक काबिल जज सारा कानून जानता है और इसलिए वो एक साधारण जज के मुकाबले चार गुना तक ज्यादा कार्यकुशल हो सकता है.विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे काबिल जज तभी मिलेंगे, जब  काबिल वकीलों को पहले ही जज नियुक्त कर लेंगे, क्योंकि बाद में जब उनकी वकालत चलने लगती है, तो उनकी जज बनने में दिलचस्पी नहीं रहती है. पीएम नरेंद्र मोदी ने कोर्ट की छुट्टियों में कटौती की सलाह दे डाली इस पर जस्टिस ठाकुर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि गर्मियों की छुट्टियों के दौरान जज मनाली नहीं जाते हैं, वह संवैधानिक बेंच के फैसलों को लिखते हैं जब एक साइड तैयार होता है तो दूसरा नहीं होता, बार से पूछिए क्या वह तैयार हैं. भारत में एक जज साल में औसतन 2600 केस देखता है, वहीं अमेरिका में एक जज महज़ 81 केस सुनता है. चीफ जस्टिस की शिकायत पर पीएम ने आश्वासन देते हुए कहा है कि उनकी सरकार इस मामले पर गंभीरता से विचार कर रही है अब देखना  है कि आगे न्यायपालिका में कितना बदलाव सरकार  की तरफ से होता है.

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