घर खरीदने के पहले और बाद की रूकावट दूर हुई?

देश की बढ़ती आबादी से न सिर्फ बड़े नगरों बल्कि अन्य सभी नगरों, कस्बों में भी आवास की मांग तेजी से बढ़ा रही है. इसी माहौल में देश में वैध और अवैध आवासीय कालोनियों  का दौर चल पड़ा है जिसे 'बिल्डर बूमÓ कहा जाने लगा है.रोटी,कपड़ा और मकान  हर आदमी की आवश्यकता ही नहीं अनिवार्यता है इसमें से एक की भी कमी  होने पर इंसान अधूरा हो जाता है. सर छिपाने के लिये जगह एक परिवार की मूलभूत अनिवार्यता है इस कमी को पूरा करने के लिये वह बहुत कुछ त्याग करने के लिये तैयार हो जाता है. इसका फायदा उठाने वाले भी अब बिल्डर के रूप में सक्रिय हो गये हैंं.. धंधे में धोखाधड़ी, घटिया निर्माण से लोगों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है.यह तत्व पहले खाली पड़ी  भूमि को किसी प्रकार अपना बना लेते हैं इसके लिये यह सरकार में बैठे कतिपय नौकरशाहों को एक तरह से खरीद लेते हैं और गरीबों व सरकार की भूमि को ओने पोने भाव में खरीद लेते हैं.अब तक यह स्थिति थी कि लंबे इंतजार के बाद भी लोगों को मकान या प्लाट नहीं मिलते थे, रियल एस्टेट पर माफियाओं का शिकंजा कसता चला गया. इस समस्या पर कुछ फिल्में भी बनने लगी- 'घरोंदाÓ- 'खोसला का घोसलाÓ आदि. रजिस्ट्री के स्थान पर पावर आफ अटार्नी में भी बड़े धोखे के गोरखधंधे हुए. मकानों को बनाने में जानबूझकर देरी लगायी गयी. ज्यादा रुपया मांगने लगे या मकान ही नहीं दिया. ऊपर से शो-बाजी का रंग रोगन कर मकान को अंदर से इतनी घटिया निर्माण सामग्री से बनाया कि मकान खरीदने के बाद लोग जिंदगीभर रोने लगे. कई लोग पीड़ा अब भी सह रहे हैं लेकिन अब आगे आने वाले समय में लोग इस प्रकार की पीड़ा सहन नहीं  करेंगे सराकर ने बड़ा कदम उठाया है.खरीदारों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें कुछ बिल्डरों की धोखाधड़ी से बचाने के लिए रियल इस्टेट रेग्यूलेटरी अथारिटी बनाने का बिल आखिरकार राज्यसभा ने पास कर दिया. इस बिल में यह प्रावधान है कि कोई भी बिल्डर अपने प्रोजेक्ट में दो तिहाई ग्राहकों की मंजूरी के बगैर बदलाव नहीं कर पाएगा. एक प्रोजेक्ट के लिए लिया गया 70 फीसदी पैसा दूसरे प्रोजेक्ट में नहीं लगेगा और इसे एक अलग एकाउंट में रखना होगा। दो साल में हर प्रोजेक्ट पूरा होना चाहिए, मगर अधिकतम एक और साल की छूट मिल सकती है. विज्ञापन और प्रचार में जो बताया जाएगा, उसे डील में शामिल माना जाएगा. मकान का कब्जा देने में जो देरी होगी, उस पर उतना ही ब्याज देना होगा जितना ग्राहक पर भुगतान में देरी पर लगता है. पहली बार कार्पेट एरिया को परिभाषित कर दिया गया है.बिल में बिल्डर और खरीदार की जवाबदेही तय कर दी  गई है. पूर्व में कांग्रेस नेतृत्व की यू.पी.ए. सरकार द्वारा प्रस्तुत इस विधेयक को भाजपा की मोदी सरकार नेे लगभग 20 संशोधनों के साथ प्रस्तुत किया और अब कांग्रेस के समर्थन से यह राज्यसभा में पारित हो गया. इसमें बिल्डर को समय पर मकान देना होगा, देरी पर खरीददार को बैंक के बराबर ब्याज देना होगा और मकान में खराबी होने पर बिल्डर व एजेन्टों का पंजीकरण रदद् होगा.  दोषी पाये जाने पर बिल्डर को तीन साल तक की सजा भी हो सकती है. रियल एस्टेट का व्यापार कृषि के बाद दूसरा बड़ा व्यापार बन गया है. जी.डी.पी. में इसका 9 प्रतिशत भाग है. हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग मकान खरीदते हैं. इसमें लगभग 4 लाख करोड़ का निवेश होता है. करीब 30 बड़े शहरों में 80 हजार रियल एस्टेट कम्पनियां काम कर रही हैं. हर प्रोजेक्ट का पंजीकरण होने से देश में माफियाओं द्वारा अवैध कालोनियों बनाकर भारी शोषण पर बहुत हद तक लगाम लग सकेगा. अभी तक रियल एस्टेट की हर गतिविधि कानूनी दायरे से बाहर चल रही थी, अब सभी कुछ कानून के दायरे में सख्ती से आ गया है. जन-सुविधा व संरक्षण की  दृष्टिï से यह जन-कल्याण का बहुत बड़ा कदम है.


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