....और 'आधार देश के नागरिकों की विशिष्ट पहचान बन गया...!



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भारत के सभी नागरिको को विशिष्ट पहचान नंबर देने की  नियत से शुरू हुई थी 'आधार योजना!Ó वर्तमान  भाजपा सरकार से जुड़े कई लोगों ने इस योजना का जमकर विरोध किया था- मीनाक्षी लेखी ने इसे 'धोखाÓ करार दिया तो प्रकाश जावडेकर की नजर में यह 'गरीबों के साथ खिलवाड़Ó था, और अनंत कुमार ने कहा था कि 'यह एक ऐसी चीज है जिस पर हमें शर्म आनी चाहिएÓ. अब भाजपा की सरकार ने इसी  आधार विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास करा लिया. आधार यानी विशेष पहचान. इस याजना को कार्यरूप में परिणित करने के लिय ेजनवरी 2009 में विशेष पहचान प्राधिकरण की स्थापना हुई और जुलाई 2009 में नंदन निलेकणी को इसका प्रमुख बना दिया गया, इसके दो मकसद थे-एक यह कि लोगों के पास एक स्थाई पहचान पत्र हो और दूसरा इसे योजनाओं से जोड़ा जाए ताकि यदि एक व्यक्ति एक बार से ज्यादा किसी योजना का लाभ ले रहा है या नकली हितग्राही बनाए गए हैं, तो उन्हें पहचाना जा सके. यह पहचान पत्र या क्रमांक देने के लिए हर व्यक्ति को अपनी आंखों की पुतलियों और सभी उंगलियों के निशान देने का नियम बनाया गया.गठित प्राधिकरण हमेशा यह कहता रहा कि आधार पंजीयन अनिवार्य नहीं है पर अन्य विभाग अपनी योजनाओं का लाभ देने के लिए इसे एक शर्त के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं हुआ भी यही. राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून के तहत खाते खोलने के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया. पेट्रोलियम मंत्रालय ने गैस सेवा के तहत आधार क्रमांक की मांग करना शुरू कर दिया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में भी इसका प्रावधान हुआ. सस्ता राशन लेने के लिए भी इसे अनिवार्य बनाया गया. वर्ष 2010 में नेशनल आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया विधेयक राज्यसभा में पेश हुआ, इस विधेयक को वित्त विभाग की स्थाई समिति ने खारिज कर दिया पर प्राधिकरण को कोई फर्क नहीं पड़ा. वर्ष 2009-10 में इसके लिए 120 करोड़ रूपए के बजट का प्रावधान था, जो 2010-11 में बढ़कर 1900 करोड़ कर दिया गया. दिसंबर 2012 तक प्राधिकरण इस कार्य के लिये 2300.56 करोड़ रूपए खर्च कर चुका था. हम सब जानते हैं कि बैंक में खाता खोलते समय हम अपना फोटो भी लगाते हैं, आधार पंजीयन के लिए आंखों की पुतली और सभी उंगलियों के निशान इसलिए लिए जा रहे हैं ताकि हर व्यक्ति एक किस्म की सरकारी निगरानी में आ सके.आधार या विशेष पहचान पंजीयन को प्रचारित करने के पीछे नंदन निलकेणी के नेतृत्व वाला प्राधिकरण यह तर्क देता है कि देश में करोड़ों लोगों के पास स्थाई पते और फोटो लगे पहचान पत्र नहीं हैं, आधार इस कमी को पूरा कर देगा. सवाल यह उठा कि पहचान के लिए ऐसे चिन्ह लिए जाने की क्या जरूरत है जो मूलत: अपराधियों की निगरानी के लिए लिए जाते हैं। इस काम के लिए आंखों की पुतलियों और हाथों की उंगलियों के सभी निशान लिए जा रहे हैं. आधार प्राधिकरण का तर्क यह रहा है कि ये दोनों निशान कभी नहीं बदलते हैं जबकि वैज्ञानिक अध्ययन का तर्क दिया गया  कि तीन से पांच सालों में आंखों की पुतलियों के निशान बदल जाते हैं. इसी तरह 5 सालों के बाद उंगलियों के निशान भी बदल जाते हैं. ऐसे में सवाल तो खड़ा होता ही है कि इस पूरी कवायद का मकसद क्या है? वर्ष 2013 में सर्वोच्च अदालत ने अपने एक अंतरिम फैसले में कहा कि आधार को सरकार से किसी तरह का लाभ पाने के लिए अनिवार्य नहीं किया जा सकता. वर्ष 2015 में मामला एक बडे पीठ को सौंपा गया, मार्च 2014 तक साठ करोड़ लोगों को आधार कार्ड जारी किया जा चुका था़़़़़.वर्ष 2016 आते-आते आधार को लेकर भाजपा का नजरिया पूरी तरह बदल गया.सरकार ने आधार (वित्तीय एवं अन्य सब्सीडी, लाभों व सेवाओं का लक्षित हस्तांतरण) विधेयक, 2016 पेश किया. विधेयक को लोकसभा में धन विधेयक के रूप में पेश किया गया, उसे स्थायी समिति को भेजने की मांग ठुकरा दी गई, और विधेयक 11 मार्च 2016 को पारित हो गया. राज्यसभा के साथ हिकारत-भरा बर्ताव किया गया. फिर भी राज्यसभा ने पांच संशोधन किए.यह 16 मार्च को अपराह्न व सायंकाल के बीच हुआ. शाम को लोकसभा की बैठक निर्धारित समय से देर तक चली और उसने सारे संशोधन खारिज कर दिए और विधेयक को उसके मूल रूप में पास कर दिया, सरकार ने इसे संसदीय जीत का दावा किया! अब आधार कार्ड भारत के नागरिक  की पहचान बन गया.....!




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