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एप्रिल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया....नये वित्तीय वर्ष का पहला दिन!

''दिन है सुहाना आज पहली तारीख है, खुश है ज़माना आज पहली तारीख है -पहली तारीख अजी पहली तारीख है, बीवी बोली घर जऱा जल्दी से आना, जल्दी से आना शाम को पियाजी हमें सिनेमा दिखाना, हमें सिनेमा दिखाना करो ना बहाना हाँ बहाना बहाना करो ... आजादी के बाद के वर्षो में किशोर कुमार का गाया यह गाना रेडियों पर पहली तारीख को दिन में कई बार बजा करता था, फिर जब अपेे्रेल का महीना आता तो इस महीने की पहली तारीख को मोहम्मद रफी अपने इस अंदाज में गाते थे- अपे्रल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया.... लेकिन अब गानों की वो बहार खत्म हो चुकी है. अप्रेल के महीने की पहली तारीख को लोगों ने एप्रिल फूल बनाना भी बंद कर दिया है. कुछ ही लोग रह गये जो इस पाश्चाथ्य मिथ्य को मानते हैं बहरहाल पश्चिमी देशों में हर साल पहली अप्रैल को एप्रिल फूल डे के रूप में ही मनाया जाता है. कभी ऑल फूल्स डे के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें करते हैं. इस दि

विश्व कप से बस एक कदम दूर...क्या होगा?

2016 के टी 20 वर्ल्ड कप में रविवार 27 मार्च का मैच  सबसे बेहतरीन मैच था. भारत ने ऑस्ट्रेलिया को हरा दिया और पूरे देश में टी 20 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में इस धमाकेदार एंट्री का जश्न मनाया.जश्र देखकर अंदाज लगाया जा सकता है कि वल्ड कप जीतने का जश्न कैसा होगा हालाकि उसे अभी वेस्ट इंडीज से खेलकर फायनल में अपना स्थान बनाना है. बांग्लादेश के खिलाफ कड़ी टक्कर मिलने के बाद से ऑस्ट्रेलिया पर जीत को लेकर तमाम प्रशंसक आशंकित थे, लेकिन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली के प्रदर्शन ने टीम इंडिया को भारतीय दर्शकों के सपने को साकार कर दिखाया. इस जीत के लिए  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विराट कोहली को उनकी बेहतरीन पारी और कप्तान धोनी को बेहतरीन लीडरशिप के लिए बधाई दी.क्रिकेट के प्रति देश में लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगता है कि लोग टीवी के सामने चिपके रहते हैं.कोहली ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह अकेले ही ऑस्ट्रेलिया के लिए काफी हैं. इस बात में कितना दम है इसका अंदाज  इसी से लगाया जा सकता है कि मैच के बाद आशीष नेहरा ने विराट कोहली की काफी तारीफ करने में कोई कमी नहीं की. नेहरा का कहना था कि
घर खरीदने के पहले और बाद की रूकावट दूर हुई? देश की बढ़ती आबादी से न सिर्फ बड़े नगरों बल्कि अन्य सभी नगरों, कस्बों में भी आवास की मांग तेजी से बढ़ा रही है. इसी माहौल में देश में वैध और अवैध आवासीय कालोनियों  का दौर चल पड़ा है जिसे 'बिल्डर बूमÓ कहा जाने लगा है.रोटी,कपड़ा और मकान  हर आदमी की आवश्यकता ही नहीं अनिवार्यता है इसमें से एक की भी कमी  होने पर इंसान अधूरा हो जाता है. सर छिपाने के लिये जगह एक परिवार की मूलभूत अनिवार्यता है इस कमी को पूरा करने के लिये वह बहुत कुछ त्याग करने के लिये तैयार हो जाता है. इसका फायदा उठाने वाले भी अब बिल्डर के रूप में सक्रिय हो गये हैंं.. धंधे में धोखाधड़ी, घटिया निर्माण से लोगों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है.यह तत्व पहले खाली पड़ी  भूमि को किसी प्रकार अपना बना लेते हैं इसके लिये यह सरकार में बैठे कतिपय नौकरशाहों को एक तरह से खरीद लेते हैं और गरीबों व सरकार की भूमि को ओने पोने भाव में खरीद लेते हैं.अब तक यह स्थिति थी कि लंबे इंतजार के बाद भी लोगों को मकान या प्लाट नहीं मिलते थे, रियल एस्टेट पर माफियाओं का शिकंजा कसता चला गया. इस समस्या पर क

आरक्षण का शनै शनै अंत ही एक विकल्प!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाबा साहेब डा0 भीमराव अंबेडकर राष्ट्र्रीय स्मारक की आधारशिला रखने के मौके पर कहा कि दलितों और दमितों को मिले आरक्षण को कमजोर नहीं किया जाएगा. आरक्षण कमजोर वर्गों को संविधान से मिला अधिकार है और इस अधिकार को कोई नहीं छीन सकता है. सरकार मानती है कि समाज को दुर्बल बनाकर राष्ट्र्र को सबल नहीं बनाया जा सकता. यह बाबा साहेब का सपना था जिसे साकार करने के लिए सरकार वचनबद्ध है लेकिन कुछ लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है.सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण अब अपनी सीमाएं तोड़ कर सर्वजातीय हो गया है. अब मूल प्रश्न कि अछूत माने जाने वाले दलित वर्ग और घने जंगलों व पहाड़ों में रहने वाले आदिवासी और गिरिजन न तो मुखर रहे हैं और न उनपर कोई ध्यान दे रहा है.संविधान में आरक्षण के प्रणेता ने अछूतों व आदिवासियों के लिये 10 साल के आरक्षण की व्यवस्था करायी थी लेकिन यह आरक्षण आज अडसठ साल बाद भी जारी है. मूल व्यवस्था राष्टï्र व समाज की जरूरत थी. लेकिन बीच में मात्र 11 महीने प्रधानमंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंदिर-मंडल की प्रतिद्वंदी राजनीति में मंडल कमीशन के नाम प

बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक हैं होली!

माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था.अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था. उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी.हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्व हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे.आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है.प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है. वैर और उत्पीडऩ की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता  हैं .प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश ध

ेआखिर नक्सलियों को गोला बारूद और रसद कोैन पहुंचा रहा है?

बारूद के ढेर पर है बस्तर -यहां से उठने वाली चीख पुकार और उसके बाद शांत होती जिंदगी यूं कब तक हमे सुननी पड़ेगी?  घटना के बाद निंदा,फिर मुआवजा तथा जवानों की तैनाती क्या यही इस समस्या का हल है? नक्सलियों द्वारा बिछाए गए बारूदी सुरंग की चपेट में आने से पिछले सप्ताह एक और आदिवासी महिला की मौत हो गई उससे एक दिन पहले प्रेशर बम की चपेट में आने से तीसरी कक्षा में पढऩे वाली छात्रा की भी मौत हो गई यह इतना वीभत्स था कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गये और जिसने इस भयानक हादसे को देखा होगा वह तो  पता नहीं किस तरह इसे देखने के बाद अपनी शेष जिंदगी काटेगा. सुकमा के भेज्जी थाना क्षेत्र म गोरखा गांव के कोसिपारा की मुचाकी हिड़मे महुआ बीनने जंगल की ओर गई थी।तभी मुचाकी का पैर नक्सलियों की ओर से जवानों को निशाना बनाने के लिए लगाए गए प्रेशर बम पर पड़ते ही उसके चिथड़े उड़ गये.इतने समय के दौरान ऐसा लगता है कि बस्तर के चप्पे चप्पे पर नक्सलियों ने मौत बिछा रखी है जिसमें हमारे जवान फंसते हैं तो कभी बेक सूर ग्रामीण तो कभी वे खुद भी अंजाने में फंस जाते हैैं तो इसमें भी कोई अतिशयोक्ती नहीं होनी चाहिये. इस घटना

....और 'आधार देश के नागरिकों की विशिष्ट पहचान बन गया...!

.... भारत के सभी नागरिको को विशिष्ट पहचान नंबर देने की  नियत से शुरू हुई थी 'आधार योजना!Ó वर्तमान  भाजपा सरकार से जुड़े कई लोगों ने इस योजना का जमकर विरोध किया था- मीनाक्षी लेखी ने इसे 'धोखाÓ करार दिया तो प्रकाश जावडेकर की नजर में यह 'गरीबों के साथ खिलवाड़Ó था, और अनंत कुमार ने कहा था कि 'यह एक ऐसी चीज है जिस पर हमें शर्म आनी चाहिएÓ. अब भाजपा की सरकार ने इसी  आधार विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास करा लिया. आधार यानी विशेष पहचान. इस याजना को कार्यरूप में परिणित करने के लिय ेजनवरी 2009 में विशेष पहचान प्राधिकरण की स्थापना हुई और जुलाई 2009 में नंदन निलेकणी को इसका प्रमुख बना दिया गया, इसके दो मकसद थे-एक यह कि लोगों के पास एक स्थाई पहचान पत्र हो और दूसरा इसे योजनाओं से जोड़ा जाए ताकि यदि एक व्यक्ति एक बार से ज्यादा किसी योजना का लाभ ले रहा है या नकली हितग्राही बनाए गए हैं, तो उन्हें पहचाना जा सके. यह पहचान पत्र या क्रमांक देने के लिए हर व्यक्ति को अपनी आंखों की पुतलियों और सभी उंगलियों के निशान देने का नियम बनाया गया.गठित प्राधिकरण हमेशा यह कहता रहा कि आधार पंजीयन

खेती-किसानी कहीं बीते दिनों की बात होकर न रह जाये? संकट में है किसान!

खेत कांक्रीट के जंगल में परिवर्तित हो गये हैं-ऐसे में अब किसान रह ही कितने गये हैं? हम अपने आसपास ही देखें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जहां खेत थे वहां अब आलीशान सीमेंट और कांक्रीट के मकान बन गये हैं दूसरी बात धीरे धीरे खेती का रकबा कम होता जा रहा है. किसानों पर लगातार मुसीबत के पहाड़ टूटकर गिरते जा रहे हैं-कहीं उसकी फसल ओले से नष्ट हो रही है तो कहीं सूखे से तो कहीं बाढ़ और अन्य प्राकूतिक विपदाओं से किसान  उतनी ही भूमि पर खेती कर सकता हैैं जितनी उसके पास है लेकिन अब उस कृषि भूमि का अधिकांश हिस्सा शहरी संस्कृति की तरफ बढ़कर कांक्रीट के जंगल में बदलती जा रही है ऐसे में अन्नदाता क्या करें? बिना अनाज उत्पादन की भारी जनसंख्या का पेट कैसे भरा जायेगा यह आगे के वर्षो में उत्पन्न होना स्वाभाविक है. बैंक से कर्ज लेकर खेती करने वाले हजारों लाखों  किसानों पर इस बार दोहरी मार पड़ी है. एक तो बैंक से लिए गए ऋण को चुकता करने की चिंता, दूसरी ओलावृष्टि या सूखे के रूप में प्रकृति का  कोप.हाल ही हुई बारिश और ओलावृष्टि से लगभग 50 फीसदी फसल गंवा चुके मेहनतकशों के सामने क्या करें क्या न  करें की स्थिति

साफ स्टेशनों की दौड़ में भी हम पिछड़ गये....!

साफ स्टेशनों की दौड़ में भी हम पिछड़ गये....! स्मार्ट सिटी बनने के लिये छत्तीसगढ़ के शहर भी शामिल थे लेकिन राजधानी सहित छत्तीसगढ़ के कोई भी शहर इस प्रतियोगिता में जीत नहीं पाये. उलटा जब स्वच्छता के मामले में रिजल्ट खुला तो उसमें भी हमारा नम्बर छठवें क्रम में दिखाई दिया. इसमें किसी को बताने की जरूरत नहीं पड़ी कि क्यों हम छठवे क्रम में आये. गंदगी तो हमारे हर मोहल्ले में हंैं जिसके लिये हम स्वंय ही जिम्मेदारी हैं.हमें अब इस बात पर संतोष कर लेना चाहिये कि देशव्यापी दौड़ में छत्तीसगढ़ का बिलासपुर देश का तीसरा सबसे साफ स्टशेन  बनकर उबरा है.जबकि राजधानी रायपुर का रेलवे स्टेशन देश के सबसे गंदे स्टेशनों की सूची में आ गया है. देश के स्वच्छ 75 ए-1 श्रेणी के रेलवे स्टेशनों में रायपुर का स्थान 66वां है यानी गंदे स्टेशनों की टॉप टेन सूची में यह 9वें नंबर पर! सबसे साफ सुथरे स्टेशनों में जोनल मुख्यालय बिलासपुर का स्थान गुजरात के सूरत और राजकोट के बाद तीसरा है टॉप 10 की सूची में गुजरात का ही वडोदरा स्टेशन आठवें नंबर पर रहा वहीं मुगलसराय (उप्र) तथा पुणे सबसे गंदे स्टेशनों में हैं रेलवे की यह रिपोर्ट

यहां तो ऐसे कई माल्या है, अब क्या करेगी बैंक?

बैकों ने सफेद पोश लोगों को चुनचुनकर पैसा लुटाया अब एक माल्या भाग गया तो कई अन्य सामने आने लगे. देश के खजाने को चूना लगाने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिसकी जानकारी सरकार को भी है ओर बैंकों को भी परन्तु दोनों ही नि:सहाय होकर इस गुंताड़बुन में हैं कि केैसे भी इन डिफाल्टरों से पैसा वूसल हो जाये.प्राय: सभी बड़े लोन लेकर बैंक के डिफाल्टर सूची में नाम बनाने वाले आज ऐशों आराम की जिंदगी बिता रहे हैं और बैेंक है कि उनके पीछे पढऩे की जगह उन बेचारें दो तीन पांच दस लाख रूपये लेने वालों की सिर्फ एक किश्त नहीं पटने पर उनकी संपत्ति तक कुक्र्र करने के लिये कोर्ट में केस दायर कर उन्हें तंग कर रही है. जबकि इन  छोटे छोटे डिफाल्टरों की करतूतों पर पर्दा डालकर उन बड़े डिफाल्टरों की करतूतों को एक तरह से छिपा दिया गया है. आगे आने  वाले दिनों मेें जब पूरे मामले की जांच पड़ताल होगी तो बात शायद बंगलादेश की उस सादबर चोरी की तरह होगी जिसमें हाइकर्स ने करोड़ो डालर का एक ही समय में वारा न्यारा कर दुनिया की सबसे बड़ी चोरी का रिकार्ड बना दिया. देश में विजय माल्या एक अकेला बिसनेसमेन नहीं है जो बैेंक का पैसा हजम क

गुरू की तपोभूमि में राहुल के कदम!

गुरू घासीदास की तपोभूमि गिरोधपुरी कांग्रेस की गुटबाजी का रणक्षेत्र बनकर क्या संदेश दे गई? यह तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन राहुल गांधी गिरौधपुरी की इस धार्मिक नगरी की यात्रा में अपने आपकों राजनीति से बचाकर निकालने में सफल रहे. गिरौदपुरी में उन्होंने पदयात्रा की, जैतखंभ के दर्शन किए लेकिन कांग्रेसियों के बीच जमकर बवाल हुआ, अपमान हुआ,कहा-सुनी हुई और अपशब्दों का जमकर प्रयोग भी हुआ.छत्तीसगढ़ में जबर्दस्त गुटबाजी में उलझी कांग्रेस का यह रूप  जिसने भी देखा उसने यही  कहा कि क्या यह लोग इसी तरह फिर पार्टी को खड़ा करेंगे?राहुल गांधी की यात्रा को सफल बनाने यद्यपि कांग्रेसियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी मगर अपने गुटबाजी की संस्कृति को रेखाकिंत कर मूल एजेण्डे को धराशायी करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी.गिरोधपूरी में निर्मित हुए माहौल को सिलसिलेवार जोड़कर देखे तो अतीत की कुछ घटनाएं अपने आप पोल खोलकर रख देती है कि गुटबाजी का यह खेल छत्तीसगढ़ में परंपरागत ढंग से यूं ही चलता आ रहा है लेकिन अब इसका रूप काफी विकृत हो चला है जिसमें कुछ ऐसी मिलावट हो गई है जिसको सहन कर पाना शायद अबके वरिष्ठो के लिये संभव न ह

सुविधा के नाम से बैंक काट रहे हमारी जेब!

हजारों लोगों को प्रतिदिन बैकों से कई तरह के काम रहते हैं लेकिन परेशानियां भी कोई कम नहीं! प्रायवेट और पब्लिक या सार्वजनिक बैंक बचत खातों में फंड कम होने, चेक रिटर्न होने, फोटो और साइन वेरीफिकेशन जैसे करीब 50 तरह के काम लोगों के बैंकों से पड़ते हैं उपर चार्ज भी ग्राहकों से ठोक बजाकर दम से लिया जा रहा हैं. फिक्स डिपॉजिट, चालू खाता, लोन अकाउंट के लिए चार्ज लेने के नियम अलग हैं.सार्वजनिक बैंकों की तुलना में निजी बैंक अधिक चार्जेस (ग्राहक शुल्क) वसूलते हैं. आम खाता धारकों के प्रति बैंकों का रवैया सख्त रहता हैं,जबकि कॉर्पोरेट अकाउंट्स खोलने, लोन लेने और वसूलने तक में कई सहूलियतों का दावा किया जाता हैं.दिलचस्प तथ्य यह है कि बैंकों के सख्त नियम होने के बावजूद वर्ष 2015 में ही सार्वजनिक बैंकों के विभिन्न कॉर्पोरेट अकाउंट्स के 88,552 करोड़ रु. के लोन डूब गए. लोन वसूली न हो पाने के पीछे कौन जिम्मेदार है? यह सब जानते हैं,हर साल ब्याज वसूली नहीं होने के कारण करीब साठ हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड रहा है. अपनी गलती के लिये बैंक आम उपभोक्ताओं पर यूजर चार्जेस थोपता हैं.  नियम यह कहता है कि आम

इंसान- इंसान का दुश्मन, हाथी भालू भी दुश्मन बनें!

जंगली जानवरों की क्रू रता का इलाज क्या है? छत्तीसगढ़ के लोग इस समय दोहरे या कहे तिहरे आतंक का सामना कर रहे हैं- एक तरफ बस्तर  के आदिवासी क्षेत्र में नक्सलवाद के रूप में इंसानी आतंक है तो दूसरी तरफ रायगढ़, जशपुर, महासमुन्द में जंगली जानवरों ने आंतक मचा रखा है. शहरी क्षेत्रों में चोर उचक्के और लुटेरों व असामाजिक तत्वों के आंतक से लोग परेशान है. इंसानी आंतक के लिये तो हम पुलिस को कोस सकते हैं लेकिन जानवरों की तरफ से होने वाली हिंसा के लिये कौन जिम्मेदार है? शायद इसके लिये भी इंसान ही जिम्मेदार है, जिसने इन जानवरों के घरों को उजाड़ दिया. भारी तादात में जंगल कटने से नाराज जानवरों की बुद्वि में यही आ रहा है कि इसके लिये इंसान ही दोषी है.जशपुर में जहां हाथियों का आंतक है तो पत्थलगाव और अन्य कई इलाको में सर्पो का और अब शेर  तेन्दुए के बाद  एक नये आंतक का फैलाव महासमुन्द में हुआ है. यहां भालू ने इंसानों पर हमला करना शुरू कर दिया है. महासमुंद जिले के नवागांव पहाड़ी में शनिवार को एक ही दिन भालू ने डिप्टी रेंजर समेत तीन लोगों को नोच-नोचकर मार डाला. हालाकि घटना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस और फॉ

हर्षद,तेलगी,केतन,सत्यम, ललित-माल्या, और कितने ?

अब तक दस था, अब ग्यारह हो गया!-हम बात कर रहे हैं देश में हुए बड़े घोटालों की, जिसने हमारी अर्थव्यवस्था को झकजोर कर रख दिया. जो पैसा हमने अपने देश के विकास और उन्नती के लिये संजोकर रखा था उसे धोखेबाज या ठग खा गये-अरबों रूपये का चूना हमारे खजाने पर लगाकर कुछ जेलों में पड़े सड़ रहे हैं तो कुछ विदेशों में मौज मस्ती की जिंदगी जी रहे हैं. दस स्केण्डल पहले से थे अब विजय माल्या का एक और फ्राड इसमें जुड गया. पहला बड़ा स्केडंल देश में सन् 2004-9 के बीच  कोयला घोटाला के रूप में उजागर हुआ जिसमें भारतीय खजाने को करीब 1,86,000 करोड़ रूपये का पलीता लगा.मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या इससे कई गुना ज्यादा करीब 10,60,000 करोड़ रूपये का है.इसके बाद आया हवाला कांड: इसे खुली राजनीतिक लूट कहा गया, जिसने भी खजाने को अच्छा खासा झकजोर दिया.तीसरे नम्बर पर स्टाक मार्केट की बारी थी  जिसमें हर्षद मेहता ने जाली बेैंक रसीदों के मार्फत भारतीय बैंकों को चार हजार करोड़ रूपये का चूना लगाया. चौथे नम्बर पर बोफोर्स सौदे में घोटाला था जिसमें कई करोड़ रूपयें  का लेन देन हुआ. आंतरिक सुरक्षा  से जुड़े इस मामले में खूब राज

Joseph

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एशिया में क्रिेकेट पर हमारा डंका ....क्यों न अन्य खेलों पर भी?

बंगला देश की धरती पर भारत माता की जय लगने का यह दूसरा अवसर हमें उस समय हमें मिला जब हमने उस देश की धरती पर एशिया कप पर कब्जा कर लिया, इससे पूर्व एक बार और हमें ऐसा मौका मिला था जब बंगला देश की धरती पर भारतीय सेना ने पाकिस्तान सेना को धूल चटाकर भारत माता की जय के नारे लगाये थे. क्रिकेट में विश्व कप पर जीत हमारे लिये एक चैलेंज था जो धोनी की टीम ने पूरा करके दिखाया.अब हमारा दूसरा पड़ाव विश्व कप की ओर होना चाहिये वह क्रिकेट ही नहीं अन्य देशी व विदेशी खेलों में हमारे खिलाडिय़ो को उसी प्रकार तैयार करना होगा.बांग्लादेश के गेंदबाजों ने खिताबी जंग में भारतीय बल्लेबाजों को खुलकर खेलने का चांस नहीं दिया और मुकाबले को अंत तक ले गए।  हम एक ऊंचे शिखर पर पहुंंच गये. फाइनल मैच में बारिश ने शुरुआत में मजा किरकिरा कर दिया था, लेकिन खेल खत्म होते-होते मुकाबला कांटे का होता चला गया। भारत को अंतिम 18 गेंदों में 24 रन बनाने थे जबकि क्रीज पर शिखर धवन और विराट कोहली खेल रहे थे, लेकिन 13वें ओवर की चौथी गेंद पर धवन 60 रन बनाकर आउट हो गए। क्रीज पर जम चुके धवन इसी ओवर की चौथी गेंद पर आउट हुए। उनके आउट होने से

छत्तीसगढ़ तपने लगा..भ्रीषण जल संकट की आहट

छत्तीसगढ़ तपने लगा..भ्रीषण जल संकट की आहट मार्च की शुरूआत है... और अभी पीने व निस्तारी की समस्या ने पूरे छत्तीसगढ़ को घेर लिया है। आगे आने वाले दिनों में पानी  का संकट किस भीषणता की ओर पहुंंच जायेगा इसका अनुमान अभी से लगाया ंनहींजा सकता है. पारा बढ़ता चला जा रहा है- पोखर तालाब, नदी सब सूखने लगे हैं.पानी के बिना प्राणी जगत के बारे में सोचना गलत है. लोगों को अगर पानी भरपूर मिले तो उसे बर्बाद करने में कोई गुरेज नहीं करते.हम अपने नदियों, तालाबों, कुओं और बावडिय़ों को मारकर बोतलबंद पानी के सहारे जीने की आदत डाल रहे हैं. पानी का किफायती इस्तेमाल कभी भी हमारी परवरिश का हिस्सा नहीं रहा। हमारी दिनचर्या के प्रत्येक हिस्से में पानी कहीं न कहीं मौजूद रहता है। औद्योगिक क्रांति की दहलीज पर आगे बढ़ चुके छत्तीसगढ़ सहित देश के अधिकांश भाग असल में ग्रामीण परिवेश के आदि रहे हैं, जहां पीने के पानी से लेकर निस्तार तक के लिए लोग नदियों, कुंओं पर निर्भर हुआ करते थे, तकरीबन हर दो-तीन मकानों के बीच एक कुंआ हुआ करता था. गांव से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर बावडियां होती थीं, जिसका पानी पशुधन की प्यास बुझ

इडली, दोसा सस्ता, समोसा,जलेबी,चाय क्यों नहीं?

  मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने इस बार आम लोगों के नाश्ते का विशेष ख्याल रखा है-इडली दोसा, पनीर को सस्ता कर दिया. मजा आ जाता यदि समोसा कचोड़ी जलेबी और चाय भी सस्ती हो जाती. जब रोटी दाल आम लोगों के हाथ से बाहर हो रही है तब कम से कम लोगों के चाय नाश्ते में बहुत बड़ी राहत ही कहा जायेगा.  बहरहाल हम इतने पर ही संतोष  कर लेते हैं .इडली दोसा,पनीर,घी, खोवा मोबाइल, स्टील  आइटम,सायकिल की कीमत कम कैसे होगी? इस प्रश्न  का उत्तर सीधा है कि सरकार ने अपने बजट में वेट को कम कर दिया. सरकार अगर सभी वर्ग को पूर्ण राहत देना चाहती तो पेट्रोल, डीजल पर भी वेट कम कर सकती थी, इससे पेट्रोल के दाम और गिर सकते थे किन्तु ऐसा नहीं किया. डॉ रमन सिंह ने बुधवार को विधानसभा में अपने कार्यकाल का दसवां बजट प्रस्तुत किया. इतने सालों तक बराबर बजट पेश करने के लिये मुख्यमंत्री वास्तव में बधाई के पात्र हैं. छत्तीसगढ़ की जनता ने उन्हें अभूतपूर्व स्नेह दिया है शायद इसी से अभिभूत होकर उन्होंने इस बार लोगों को एक के बाद एक बड़े तोहफे से लाद दिया. बजट में उन्होंने स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि पर फोकस किया है यह होना भी चाहिये

आंदोलनों को क्यो लम्बा खिचने दिया जाता है?

कभी पटवारी तो कभी कोटवार! तो कभी आंगनबाड़ी, कभी संविधा शिक्षक तो कभी सफाई क,र्मी,मीटर रीडर...औैर अब रोजगार सहायकों का सत्याग्रह!. आंदोलन करने वालों का दायरा धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा है.सरकार ने भी बड़ी चालाकी से आंदोलन करने वालों के लिये राजधानी के बूढ़ापारा में एक जगह भी निश्चित कर दी है जैसे कह रहे हो तुम वहीं रहो जो करना है करों हमने अपने कान में रूई लगा रखी है. आंदोलनकारी मांगे मनवाने के लिये तरीके भी अलग अलग इजाद कर रहे हैं.कभी पूरे परिवार को साथ लेकर तो कभी सर मुडाकर तो कभी बदन से सारे कपड़े उतारकर तो कभी भैस लेकर तो कभी घासलेट का डिब्बा हाथ में लेकर उमड़ पड़ते हैं. सवाल यह उठता है कि इन सबकी नौबत आती क्यों हैं? हम मानते हैं कि सत्याग्रह, आंदोलन ,धरना प्रदर्शन सब हमारा संवैधानिक अधिकार है. धरना, प्रदर्शन,आंदोलन, सत्याग्रह यह सब तब शुरू होता है जब सामने वाला अर्थात समस्या को हल करने वाली अथारिटी मामले  को उलझा दे. इस अडियलपन के पीछे हो सकता है उनको किसी  के द्वारा अर्थात प्रशासनिक लोगों के द्वारा ही बताई गई कोई मजबूरी हो. पहले आंदोंलनों का फैलाव  प्रायवेट कंपनियों का ज्यादा ह

समय का पालन करने में हम कितने सक्षम?

समय का पालन करने में हम कितने सक्षम? इंडियन स्टेंडर्ड टाइम!, अब यह हमारे कामकाज के तरीके पर भी दिखाई देने लगा है. जो काम या योजनाएं हाथ में लेते हैं वह कभी समय पर पूरी नहीं होती- कभी कभी तो इतना डिले होता है कि उसकी लागत ही दुगनी हो जाती है. एक तरह से लेट लतीफी का पूरा ट्रेण्ड चल पड़ा है.अगर आप किसी योजना को हाथ में लेते हैं, तो उसे पूरा करने का दमखम भी होना चाहिये वरना ऐसी योजनाओं को हाथ में लेना ही नहीं चाहिये. बात छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की कुछ योजनाओं पर करें तो सारी बात अपने आप स्पष्ट हो जाती है कि लेट लतीफी की वजह से विकास कार्य कितना बाधित हो रहा है. एक तो मंजूरी मिलने में देर फिर लालफीताशाही और नौकरशाही के चक्कर में डिले और ऐसे होते हुए पूरी योजना की कोस्ट दुगनी से तीनगुनी या उससे ज्यादा तक हो जाती है. यह फिर अंडर ब्रिज का मामला हो या ओवर  ब्रिज का अथवा किसी सड़क के चौड़ीकरण का अथवा किसी स्टेडियम के निर्माण का, सभी में प्रक्रिया तत्काल की जगह महीनों तक डिले ही चलती है. जब मालूम रहता है कि इस योजना को हमे लागू करना है तो उसमें सोचने की बात क्या है. बजट का पैसा तक मिल जाने

बजट- गरीबों पर मेहरबानी तो मिडिल क्लास पर मार!

आम बजट मिडिल क्लास को निराश करने वाला है तो उच्च वर्ग के लिये भी कोई खुशी देने वाला नहीं. गरीब और किसान को खुश करने का प्रयास जरूर किया गया है लेकिन किसान से ज्यादा फायदा गरीब को मिलता नजर आ रहा हैं.पिछले बजट की तरह इस बजट के पेश होने के पूर्व इंकम टैक्स पे करने वालों में से कई को यह उम्मीद थी कि उन्हें इस बार स्लेब में  छूट मिल सकती है लेकिन कोई छूट इस वर्ष के बजट में भी नहीं मिली. एक तरह से यह बजट किसानों और गरीबों पर केन्द्रित है,मिडिल  क्लास को तो एकदम किनारे कर दिया गया है.ऊपर से सर्विस टैक्स में वृद्वि और जीपीएफ का पैसा निकालने पर टैक्स वसूली ने सभी को हिलाकर रख दिया है.बजट में किसान से ज्यादा फायदा गरीब वर्ग को मिलेगा क्योंकि जिन योजनाओं का जिक्र किया गया है वह उन्हें तत्काल  मिल सकता है लेकिन किसानों के लिये ऐसा नहीं है.इस कड़ी में हम पिछले सप्ताह रेल मंत्री द्वारा प्रस्तुत कतिपय योजनाओं का जिक्र करते हुए यह कहना चाहेंंगे कि उन योजनाओं को पूरा करने में लम्बा वक्त लग सकता है. सरकार ने दोनों बजट पेश करने में इसी तकनीक को अपनाया है कि लोग इंतजार  करते रहें किन्तु इस बात का ध्य

राजनीति के मकडजाल में नया क्रांतिकारी!

 पिछले गुरुवार की रात जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद कन्हैया कुमार  तमाम विश्वविद्यालयों के परिसरों में छात्रों के बीच अभिभूत हो गए. एक नये नाम ने भारतीय राजनीति में भी खलबली मचा दी. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इसे लेकर भारी गहमा गहमी थी, जो कन्हैया कुमार के भाषण के बाद कुछ- कुछ एक तरफा हो चला. वास्तविकता यही है कि कन्हैया ने अपनी रिहाई के बाद के पचास मिनिटों तक देशाभक्ति का झरना-सा बहा दिया, उसके तार्किक भाषण से लोगों को भी शायद पता चल गया होगा कि एक छात्र की नैतिक सुरक्षा में जेएनयू के प्रोफेसर तक सड़क पर क्यों निकल आए थे? कन्हैया का उदय उसके कथित देशद्रोही नारों से हुआ. यह कहा गया कि जेएनयू में लगे देशद्रोही नारे में उसकी आवाज भी थी उसी को लेकर उसे जेल भेजा गया और बाहर आकर देश के राजनीतिक धरातल में एक नये क्रांतिकारी की तरह पेश  हुआ- उसकी एंट्र्री भले ही सरकार को पसंद नहीं आई हो लेकिन विपक्ष ने तो उसे हाथों हाथ ले लिया यहां तक कि आगे आने वाले चुनावों के लिये भी पेक्ट करना शुरू कर दिया.देश में कहने-बोलने में बढ़ते भय के बीच जेएनयू मामले के इतना बढ़ जाने के कई कारण हो सकते हैं।

नक्सलियों की बौखलाहट या मुठभेड़ का बदला?

डेढ़ दर्जन  ग्रामीणों की गोली मारकर हत्या की घटना के बाद बस्तर का वह अंदरूनी इलाका अबूझमाड़ फिर  चर्चा में हैं जहां बताया जाता है कि नक्सलियों ने इसी  क्षेत्र को अपना गढ़ बना रखा है. अभी  कुछ दिनों से पुलिस ने सर्चिंग अभियान को कुछ तेज कर रखा है. सी5मान्ध्र में बड़े नक्सलियों के दिख्रने के बाद पुलिस और नक्सलियों के बीच  मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ के बाद पुलिस ने दावा किया कि नक्सलियों के बड़े लीडर जिनपर काफी बड़ा इनाम  रखा गया था इस मुठभेड़ में मारे गये. इस मुठभेड़ के कुछ ही  घंटों बाद अबूझमाड़ के ग्रामीण क्षेत्र से  करीब सोलह लोगों को उठाकर उनकी हत्या कर दी गई. पुलिस इसे नक्सलियोंं की बौखलाहट बता रही है लेकिन  शायद हकीकत यही  है कि नक्सलियों ने यह कृत्य बदले की कार्रवाही के रूप में की है. अबूझमाड़ के गांवों नेतानार,आलबेड़ा,परपा,कुंदला, मठभेड़ा, यह कुछ गांव है जहां से नक्सलियों ने ग्रामीणों को पुलिस की जासूसी  करने का आरोप लगाकर ले गये तथा उनकी हत्या कर दी. पुलिस के लिये यह शायद एक संदेश भी है कि उसने  जो अभियान  अबूझमाड़  में घुसने  का चलाया है वह नक्सलियों को  पसंद नहीं हैं. आईजी नक्स

स्मार्ट कार्ड से इलाज पर इन्श्योरेंस कपंनी की तलवार!

स्मार्ट कार्ड से इलाज पर इन्श्योरेंस कपंनी की तलवार!  सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं पर इस बार हमला किया है- इन्श्योरेंस कंपनियों ने एक फरमान जारी कर अस्पतालों से कहा है कि वह स्मार्ट कार्ड से  टीबी, मलेरिया व किडनी फेल मरीज को उनसे (इन्श्योरेंस कंपनियों)से  अनुमति लिये बगैर भर्ती न करें.अब तक डेंगू, टीबी, मलेरिया, अस्थमा, हायपर टेंशन और किडनी फेल के मरीज को स्मार्ट कार्ड दिखाने पर तत्काल प्रायवेट अस्पतालों में भर्तीकर इलाज किया जाता था लेकिन अब नया आदेश प्रायवेट अस्पतालों को इन्श्योरेंस कंपनी वालों से पहुंचा है, जिसमें कहा गया है कि अगर वे स्मार्ट कार्ड धारी मरीज को भर्ती करना चाहते हैं तो पहले उनसे अनुमति ले, उसके बाद ही इलाज शुरू करें अर्थात अब से अनुमति लेने तक मरीज अस्पताल के दरवाजे पर यूं ही इलाज के लिये तड़पता रहेगा. इंश्योरेंस कंपनी ने ऐसी 52 बीमारियों की सूची जारी की है, जिसके इलाज के पहले अस्पताल प्रबंधन को अनुमति लेनी होगी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) को इश्योरेंस कंपनी का यह आदेश बिल्कुल पसद नहीं आया है. स्मार्ट कार्ड से इलाज की मानीटरिंग के लिए इंश्योरेंस कंपनी ने हर

मिडिल क्लास को कुछ तो लाभ मिलेगा!

मिडिल क्लास को कुछ तो लाभ मिलेगा! यद्यपि सोमवार को संसद में पेश 2016-17 के बजट से मिडिल वर्ग के लोगों को खुशी नहीं हुई है किन्तु किसानों और गरीबों को दिये गये तोहफों के साथ इस दर्जे के लोगों को भी कुछ सुविधाएं प्राप्त होंगे जो उनके रोजमर्रे के लिये काफी उपयोगी साबित होगी. सीधे सीधे गरीब वर्ग को मिलने वाले लाभ जैसे गैस, मकान आदि में छूट की तरह की सुविधाएं नहीं मिल पाई लेकिन  घर पर ब्याज में छूट, सस्ती दवा समेत ऐसी करीब पन्द्रह सौगाते ऐसी हैं जिसे शहरी मध्यमवर्ग के खाते में यूं ही डाल दिया है.बजट के बाद  तीन रूपये से ज्यादा की कमी भी मध्यम वर्ग को कुछ तो फायदा पहुंचायेगी लेकिन इसमें कुछ और कमी की जा सकती थी. इसमें दो मत नहीं कि बजट को कम से कम पांच वर्ग में बांट दिया गया है-एक वह है जो उच्च वर्ग की श्रेणी में आता है तो दूसरा है मध्यम वर्ग, तीसरा गरीब, चौथा युवा और पांचवां है किसान.पिछले बजट में जहां उच्च वर्ग व युवाओं को कतिपय सहूलियते देकर वित्त मंत्री को  गरीब, मध्यम और किसान के कोप का भाजन बनना पड़ा वहीं इस बजट में उच्च, मध्यम तथा युवा वर्ग को काफी हद तक किनारे कर गरीब और किसानों क

ट्रेनों में यात्रियों की सुरक्षा...क्यों बेबस है रेलवे पुलिस?

इसमे संदेह नहीं कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से रेलवे को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में ऐड़ी चोटी एक कर रहे हैं. यात्री ज्यादा से ज्यादा अच्छी आधुनिक सुविधाओं का उपयोग कर सके  इसके लिये उन्होंने सरकारी प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़ी है. उनकी मंशा भी ट्रेनों में यात्रा करते समय वातावरण घर जैसा लगे इसका ख्याल रखा जा रहा है इस कड़ी में ट्रेनों में पूर्ण साफ सफाई रहे, ट्रेने समय पर आना- जाना करें और यात्रियों को पूर्ण पूर्ण सुरक्षा मिले जिससे यात्री अपने गंतव्य तक पहुंच जाये लेकिन क्या नोकरशाही या प्रशासनिक व्यवस्था इसे हकीकत में बदलने का प्रयास कर रही है? ऐसा लगता है कि इसमें बहुत बड़ी बाधा हमारे कतिपय यात्रियों के आचरण से भीे है जो इसे सफल नहीं होने दे रही. यात्रा के दौरान यात्री ट्रेन को राष्ट्र की संपत्ति न समझ इसे किसी ऐसी वस्तु समझ कर उपयोग कर फेक रहे हैं जिसका बाद में  कोई उपयोग नहीं है. यात्रा दूसरों के लिये भी सुविधाजनक व सुगम हो सकें इसके लिये यह जरूरी है कि यात्री  ट्रेन का उपयोग यात्रा के दौरान दूसरे लोगों की सुविधा का ध्यान रखकर उपयोग अपने घर की वस्तु समझ