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नोट बंदी- ससंद बदी के बाद अब बजट व उत्तर प्रदेश में दाव पेच!

नोट बंदी- ससंद बदी के बाद अब बजट व उत्तर प्रदेश में दाव पेच! नोटबंदी से अब सब उकता गये हैं,कुछ नया हो जाये,हां बजट की बात की जाये तो इस बार सबका इंतजार उसी पर रहेगा.नोटबंदी-संसद बंदी के बाद जो नया होने वाला है उसमे यूपी का चुनाव और बजट ही है. ऐसी खबरें मिल रही है कि इस बार संभवत: एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में सरकार बहुत कुछ करना चाहेगी जिससे नोटबंदी से नाराज जनता खुश भी हो जाये और उत्तर प्रदेश का सिंहासन भी सपा से छीन ले. सरकार इंकम टैक्स में छूट दे सकती है. चार लाख रूपये तक की आमदनी टैकस फ्री हो सकती है.टैक्स स्लेब में भी बदलाव की आशा की जा सकती है.उत्तर प्रदेश की तरफ नजर दौड़ायें तो वहां प्रधानमंत्री पहुुंच गये हैं तो राहुल गांधी भी पूरी तरह सक्रिय हैं. नोटबंदी को तो उन्होंने मुद्दा ही बना लिया. वास्तविकता यही है कि पूरा देश इस समय नोट बंदी और संसद बंदी के चक्कर में है. हो सकता है फरवरीं में यूपी विधानसभा के चुनाव हो जायें, यहां भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी, के साथ बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस समान दावेदारी के साथ सक्रिय है. सपा-कांग्रेस के बीच    गठब

कानून बदला किन्तु लोग नहीं बदले!

इंटरनेट पर पोर्न साइट देखते हैदराबाद के पैसठ बच्चो को पकड़कर पुलिस ने उनके पालकों के सिपुर्द किया. यह उस दिन से एक दिन पहले की बात है जब दिल्ली के निर्भया कांड ने चार साल पूरे किये.इसी   दिन चार वर्ष पूर्व निर्भया बलात्कार और निर्मम हत्याकांड ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया था ,इसी बर्सी के दिन दिल्ली में नोएड़ा से साक्षात्कार के लिये पहुंची एक बीस साल की लड़की को लिफट देने के बहाने कार में चढाया और उसके साथ रेप किया. कार में ग्रह मंत्रालय की स्लिप लगी थी. इसी दिन अर्थात निर्भया रेप कांड के चार साल होने के दिन ही झारखंड की राजधानी रांची में इंजीनियरिंग कालेज की उन्नीस वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया तथा उसकी गला घोटकर हत्या कर दी गई तथा उसके शव को जलाने का प्रयास किया गया. निर्भया के बाद कानून में बहुत कुछ बदला होगा लेकिन समाज कतई नहीं बदला ,राजधानी दिल्ली में हर रोज छह बलात्कार और देश के विभिन्न राज्यों में पता नहीं कितने? इन मामलों को रोकने की व्यवस्था बनाने के लिए दायर कई पीआईएल पर चार साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट को फाइनल सुनवाई का अवसर नहीं मिला. अभी कुछ माह पूर्व ही

संसद सेशन शोरगुल-हंगामे में बाईस दिन यूं ही बीत गया

मोदी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में पार्लियामेंट के आठ सेशन हुए हैं. इस बार विंटर सेशन बाईस दिन चला लेकिन प्रोडक्टिवीटी सबसे कम रही. यह अंदेशा तो उसी समय से था जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ अक्टूबर को नोटबंदी का ऐलान किया. सब कुछ शायद ठीक चलता यदि सरकार नोटबंदी से पूर्व तैयारी करके चलती. इस निर्णय को लेने के पूर्व सरकार ने शायद यह सोचा भी नहीं कि इसके रिफरकेशन उसके लिये मुसीबतें खड़ी कर देंगी. एटीएम व बैंक तक नये नोट नहीं पहुंचने से लगी लम्बी लाइन और उसमें खड़े होने वाले लोगों की मौत के सिलसिले ने विपक्ष को इतना मौका दिया कि संसद चलने ही नही दी इस बीच और भी ऐसे मामले हो गये जो विपक्ष को एक के बाद एक आक्रामक बनाने में मददगार बनते चले गये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नोटबंदी  की घोषणा के बाद विदेश चले गये आौर इधर अपना पैसा वापस निकालने के लिये लोग लाइन में लगकर जूझते रहे वहीं कालाधन जमा करने वालों ने एक तरह से बैंकों पर कब्जा जमा लिया. बैंक के कतिपय अधिकारियों व कर्मचारियेां ने मिलकर ऐसी स्थिति निर्मित कर दी जिससे मार्केट में त्राही त्राही मच गई और सड़क पर लाइन में लोग धक्के खा

एक महीना लाइन में कैसे बीत गया,पता ही नही चला...?

एक महीना लाइन में कैसे बीत गया,पता ही नही चला...? हां यह ठीक है कि नोट बंदी के बाद का एक महीना लाइन में लगते -लगते कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला. आज एक महीना बीत चुका है. नवंबर महीने की इसी आठ तारीख को केंद्र सरकार ने  पांच सौ  और हजार रूपये के नोटों का चलन बंद कर देश के हर वर्ग को चौका दिया था. नोटों का चलन  बंद होने से आम और खास सभी किस्म के लोग इसकी चपेट में आ गये. उस समय से बैंको के कामकाज में जहां अंतर आया, एटीएम के सामने अभूतपूर्व भीड़ दिखाई दी वहीं कई एटीएम जहां इस निर्णय के बाद से अब तक खुले नहीं है तो कई में कभी पैसा आता है तो खुलता है और कभी नहीं तो बंद रहता है. नोटबंदी के बाद से विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा.करीब चौरासी  लोगों की मौत का हिसाब मांगा जा रहा है तो  कारोबार बुरी तरह प्रभावित है.कई निजी संस्थानों में कर्मचारियों को महीना बीत जाने  के बाद भी  सेलरी नहीं मिली है.यह सही है कि नोटबंदी ने देश को कैशलेस लेनदेन की ओर एक कदम आगे बढ़ा दिया.एक महीना बीतने के बाद हर कोई इस पूरे एपीसोड़ को तराजू पर तौलता दिखाई दे रहा है..नोटबंदी की घोषणा के बाद देश की 86 प्रतिशत नगदी रात

...और आडवाणी से भी रहा नहीं गया!

...और आडवाणी से भी रहा नहीं गया! अब तक ससंद की कार्रवाही को शांतिपूर्वक देख सुन रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से बुधवार को रहा नहीं गया. उन्होनें लोकसभा के अफसर से पूछ ही लिया कि बैठक कब तक के लिये स्थगित की गई है? उन्हें बताया कि दो बजे तक तो गुस्से में कह ही दिया कि अनिश्चितकाल के लिये क्यों नहीं? तीन हफ्ते बीत गए ससंद के शीतकालीन सत्र के किन्तु अब तक कार्यवाही सामान्य नहीं हो पाई है   नोटबंदी के मसले पर उठा विवाद गुरूवार को  शांत होने की संभावना बन गई थी लेकिन विपक्षी दलों के धरने और आरबीआई की नोटबंदी पर आई रिपोर्टो ने सरकार की मुसीबते और बढ़ा दी.  विपक्ष इस बात पर अड़ा हुआ है कि प्रधानमंत्री सदन में इस मसले पर जवाब दें, दूसरी ओर सत्ता पक्ष चर्चा पर जोर दे रहा है देश की स्थिति और उसमें संसद की भूमिका को समझने वाला कोई भी व्यक्ति इस स्थिति पर चिंतित हो सकता है. भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के क्षोभ को समझा जा सकता है उन्होंने सदन न चल पाने के लिए न केवल संसदीय कार्य मंत्री को जिम्मेदार ठहराया, बल्कि लोकसभा अध्यक्ष पर भी अंगुली उठाई. निश्चित रूप से यह पिछले कई द

डिजिटल तो हम हो गये लेकिन चुनौतियां भी तो कम नहीं!

डिजिटल तो हम हो गये लेकिन चुनौतियां भी तो कम नहीं! अगस्त 2014 में नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल ने डिजिटल इंडिया का फैसला कर लिया था, करीब एक साल की गहन तैयारी के बाद जुलाई 2015 में इसे धूमधाम के साथ लांच किया गया. देश में आज भी नेटवर्क इतना स्लो है कि हमारा स्थान दुनिया में 115 वां हैं ऐसी परिस्थिति में यह हमारी पहली चुनौती है कि हम अपने इंटरनेट नेटवर्क को इतना फास्ट करें कि डिजिटल इंडिया का सपना साकार हो. जाहिर है सरकार एक दिन में इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकती मगर सरकार डिजिटल इंडिया के लिये कटिबंद्व है.देश में नब्बे करोड़ से ज्यादा लोगों के पास फोन हैं जिसमें से मात्र 14 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्ट फोन है. स्मार्ट फोन और गैर स्मार्ट फोन को लेकर भी अमीर- गरीब की तरह बांटकर देखा जा सकता हैं,जिनके पास स्मार्ट फोन हैं उनमें से बहुत से लोग साधारण हैं जिसके आधार पर उम्मीद की जा सकती हैं कि उन लोगों को इंटरनेट मिलने भर की देर है.भले ही नोटबंदी के बाद देश के सारे एटीएम के बाहर लम्बी -लम्बी कतारे लगी है लोग पैसा जल्दी  लेने के लिये लड़ रहे कट रहे हैं और कुचलर भी मर रहे हैंं ओर तो ओर पैसा न

नन्हीं बच्चियों की चीख .... कानून कब तक यूं अंधा बहरा बना रहेगा?

इज्जत किसे प्यारी नहीं होती...किसी महिला की इज्जत उसकी जिंदगी होती है और कोई अगर इसी को लूट ले तो फिर उसके जीने का मकसद ही खत्म हो जाता है. कुछ अपवादों को छोड़कर हमारे समाज में महिलाएं पुरूषों के मुकाबले बहुत कमजोर होती है जबकि समाज ने झांसी की रानी दुर्गावती जैसी  सिंहनियों को भी देखा है मगर सारी महिलाएं वैसे नहीं हो सकती. उनमें से कइयों पर जो अत्याचार होते हैं उसकी निंदा करने वाले, उनको मुआवजा देने वाले तो बहुत सामने आ जाते हैं लेकिन समाज का एक बड़ा तबका ऐसा भी तो हैं जो हम सबके ऊपर सारे अत्याचारों को अपनी आंखों से देखता है,सुनता है और निर्णय करने की क्षमता रखता है. यह वर्ग ऐसे कानून भी  बना सकता है जो अबलाओं पर अत्याचार को रोकने में सक्षम है फिर उनके सामने कौन सी मजबूरी है जो वो समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को यह कहकर संरक्षण नहीं दे पा रहा जिसके कारण छोटी- छोटी  बच्चियां तक असुरक्षित हो गई. आज बड़ी बड़ी बाते करने वाली हमारी सरकारों की नाक के नीचे एक छोटी सी बच्ची मसल दी जाती है उसे खरोच डाला जाता है फिर भी  हमारा कानून ऐसे जालिमों को वह सजा नहीं दे पाता जिसके वे वास्तव में हकदार है

जयललिता बीमार....मार्कंडे का प्यार जागा, लालू भी आये नये अंदाज में!

अपने बयानों को लेकर विवादों में  में!रहने वालों में यूं तो देश के कई नामी गिरामी हैं लेकिल जब पूर्व चीफ जस्टिस मार्कंडे काटजू और पूर्व रेलमंत्री व बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद बोलते हैं तो इसका रंग ही अलग होता है.यह दोनों हस्तियां अपने विवादास्पद बयानों से तत्काल चर्चा में आ जाते हैं.उनके बयानों की या तो तीव्र प्रतिक्रिया होती है या फिर उन्हें स्वंय अपने बयान का खंडन करना पड़ता है. कुछ में उन्हें इसके लिये माफी मांगनी पड़ती है. काटजू हाल ही बिहार पर दिये गये एक बयान के बाद फिर चर्चा में आये थे जिसमें उनके खिलाफ कोर्ट में याचिका भी दायर की है अब उनका ताजा बयान आया है तामिलनाडृ की मुख्यमंत्री जयललिता पर-वे कहते हैं तामिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता  शेरनी है और उनके विरोधी  लंगूर. .काटजू फेस बुक में भी हैं उसी में उन्होंने एक पोस्ट में  लिखा है कि जब वो जवान थे तो उन्हें जयललिता से प्यार हो गया था उन्होंने लिखा, उस वक्त मुझे जयललिता काफी मनमोहक लगती थीं. मैं उनके प्यार में पड़ गया था.लेकिन जयललिता को इस बारे में नहीं पता था, यह एकतरफा प्यार था काटजू ने लिखा, मुझे वह अब भी अच्

हमारी सेना बहादुर थी, बहादुर हैै और रहेगी.....कोई शक?

उड़ी हमले में हमारे अठारह जवानों के मारे जाने के बाद हमारी सेना ने पीओके में पाक ठिकानों पर जाकर जो सर्जिकल स्ट्राइक किया या 2011 में जिंजर आपरेशन को अंजाम दिया वह हमारी सेना की वीरगाथाओं में से एक है इसका श्रेय किसी पालिटिकल पार्टी का नहीं जाता और न  इस पर सेना के सिवा किसी का  इसको लेकर राजनीति करके लोग क्यों अपना समय गंवा रहे हैं?. देश पर दुश्मनों के हमले होते हैं तो मैदान में नेता नहीं सेना जाती है. सेना की वीरता पर ही जीत और हार का सारा दारोमदार टिका होता है. देश ने आजादी के बाद सेे अब तक कम से तीन से चार युद्व देखे हैं इसमें से कभी  हमारी लड़ाई चीन से हुई तो कभी पाकिस्तान से तो कभी बंगलादेश आजाद कराने के लिये. हर लड़ाई में हमारी फोज ने दुश्मनों के छक्के छुड़ायें हैं. पाकिस्तान से हमारी दुश्मनी पुरानी है पहले वह हमसे फैाज भेजकर मुकाबला करता था लेकिन अब उसकी स्ट्रेटजी बदल गई है उसने देख लिया कि हमसे वह अपनी फौज से टक्कर नहीं ले सकता तो उसने परमाणु अस्त्रो को एकत्र किया और साथ ही अपने ऐसे तत्वों को पालना शुरू किया जो आतंक पर विश्वास करते हैं- उन्हें हमारी सीमा में आतंक फैलाने के ल

सब में मिलावट....लोग खाये तो क्या?और पिये तो क्या?

आज लोगों के समक्ष यह स्थिति बनती जा रही है कि वे क्या खाये क्या न खाये और क्या  पिये और क्या न पिये. खाने पीने की हर वस्तु या तो मिलावटी हो गई अथवा इसमें इतने केमिकल मिले होते हैं कि यह इंसान के स्वास्थ्य को बुरी तरह झकझोर रही है.देश में हर किस्म के रोगों के लिये अब खानपान जिम्मेदार होता जा रहा है. पिछले कुछ समय से सरकार ने इंसानों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया है उसकी एजेंंसियां बाजार में मौजूद ऐसे कई खाद्य पदार्थो को खोज -खोजकर उनकी जांच कर रही है जिसका बाजार काफी गर्म है अर्थात काफी मात्रा में इसका उपयोग लोग करते हैं.मिलावट से निपटने में सरकार और उपभोक्ता मंचों की जिम्मेदारी तो है ही, कंपनियां भी इस मामले में अपनी भूमिका से मुकर नहीं सकती- होता यह है कि कई कंपनियां अपने ब्रांड की नकल पर ज्यादा शोर नहीं मचातीं, क्योंकि उन्हें नकारात्मक प्रचार का डर रहता है. इस संकोच के साथ मिलावटखोरों व नक्कालों से नहीं निपटा जा सकता. नूडल्स मैगी विवाद ने खाने-पीने की चीजों में मिलावट के मामले को चर्चा का विषय बना दिया था उसके  बाद अब सरकारी जांच में स्प्राइट, कोका कोला, ड्यू, पेप्सी और 7अप में

रेलवे में रिकार्ड अपराध.....और अब स्पर्म के लुटेरे भी!

यह रेलवे में पनप रहे एक नए अपराध की कहानी है जो एक ऐसे गिरोह द्वारा संचालित है जो पैसा कमाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं गिरोह ट्रेनों में सफर करने वाले युवकों सेजबर्दस्तीकर उनके स्पर्म निकालकर बेचने का धंधा करता हैं हालाकि इस मामले की पूर्ण सत्यता सामने नहीं आई है  लेकिन एक पीडि़त ने देश के एक प्रमुख अंग्रेजी-हिन्दी चैनल में अपनी आप बीती पोस्ट करने के बाद इस गिरोह का रहस्योद्घाटन किया है. वेबसाइट में छपी खबर के अनुसार 2 अगस्त 2016 को विशाखापटनम से पटना के लिये एर्नाकलम एक्सप्रेस से रवाना हुए इस शख्स को रात गिरोह के दो सदस्यों ने उसके बर्थ में ही पिस्तौल की नौक पर स्पर्म निकालकर एक पोलीथीन में डालकर चलते बने.उस व्यक्ति ने पहले तो यह बात किसी को नहीं बताई लेकिन बाद में उसने न केवल पूरे कम्पार्टमेंंट को बताया बल्कि एसएमएस के जरिये भी उसने लोगों को सावधान किया है.युवक ने जो एसएमएस भेजा है उसे ज्यों का त्यों चैनल ने अपने वेबसाइट में डाला है ताकि अगर कोई अन्य ऐसा पीडित है तो उसे भी यह बताना चाहिये. पुलिस को भी चाहिये कि वह इसकी सच्चाई का पता लगाये और इस किस्म के अपराधियों को अपने ज

अपराध की तपिश से क्यों झुलस रहा छत्तीसगढ़?

 छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित बड़े शहर इन दिनों गंभीर किस्म के अपराधों से झुलस रहे हैं वहीं पुलिस की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. एक के बाद एक अपराध और उसमें पुलिस की विफलता ने यह सोचने के लिये विवश कर दिया है कि आखिर यह शांत राज्य अपराधों से कैसे झुलसने लगा?. एक के बाद एक होने वाले अपराधों से पुलिस से ज्यादा छत्तीसगढ़, विशेषकर राजधानी रायपुर में बाहर से आने वाले नागरिक ज्यादा परेशान हो रहे हैं-घटना के तुरन्त बाद पुलिस की कार्रवाही नाकेबंदी होती है इसमें अपराधी तो पतली गली से निकल जाते हैं लेकिन सड़क पर चलने वाले आम आदमी की फजीहत हो जाती है जैसे उसी ने सारा जुर्म किया हो.हाल ही कई वाहनों को रोककर जबर्दस्त तलाशी ली गई. किसी से कुछ नहीं मिला,उलटे अपराधियों को भागने का मौका मिल गया. बड़ी बड़ी घटनाओं ने शहरों में दहशत की स्थिति पैदा कर रखी है. आम आदमी को अपनी सुरक्षा पर संदेह है.असल में छत्तीसगढ़ बाहरी उन अपराधियों का पनाहस्थल बन गया है जिनकी दूसरे राज्यों की पुलिस को तलाश है. अपराधी कतिपय स्थानीय लोगों की मदद से दूसरे राज्यों से आने वाली ट्रेनों व बसों से यहां पहुंचते हैं तथा

पैसठ हजार लोग 'काले से 'गोरे हो गये, बाकी कब?

काला धन एक समानान्तर अर्थ व्यवस्था को पैदा करता है इससे देश का विकास रूक जाता है और उपभोक्ता वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं में कमी होती है. ब्लेक मनी अर्थात् गैर कानूनी धन जीवन का एक धु्र्रव सत्य बन चुका है जो पिछले कुछ वर्षो के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचा रहा है. लोकसभा चुनाव में कालाधन एक अहम मुद्दा था, जिसके बल  पर भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला. नरेन्द्र मोदी ने वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो विदेशों में जो काला धन जमा है वे उसे भारत लायेगे और प्रत्येक व्यक्ति में खाते में पन्द्रह पन्द्रह लाख रूपये डालेंगे-यह वादा कब पूरा होगा यह तो पता नहीं लेकिन देश से कालाधन बाहर लाने के मामले में सरकार को एक विशेष सफलता हाल के महीनों में मिली- सरकार ने घरेलू आय घोषणा योजना (इनकम डिक्लेरेशन स्कीम) आईडीएस लागू की जिसके तहत देश के 64,275 लोगों ने  4 महीनों के दौरान 65,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बेनामी संपत्ति का खुलासा किया. घरेलू आय घोषणा योजना के तहत लोग अपने काले धन का खुलासा तय समय के भीतर करने पर से टैक्स और पेनाल्टी से बच गये. इसके तहत उन्हें काला धन को

सेना ने वादा निभाया-चुनी हुई जगह और समय पर जवाब दिया!

  इस सर्जिकल स्ट्राइक्स को भले ही कुछ लोग उत्तर प्रदेश चुनाव से पूर्व मोदी की छवि सुधारने का प्रयास या और कुछ कहें लेकिन हम मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी का यह कदम उडी हमले के बाद पाक को सबक सिखाने के लिये उठाया गया अब तक का सबसे बेहतरीन कदम है जो पूरे सोच समझकर और पूरी ब्यूह रचना के साथ किया गया. ठीक वैसा ही जैसा अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ओसामा बिन लादेन के साथ किया था. पाकिस्तान में छिपे इस कुख्यात आंतकवादी को बिल से निकालकर अमरीकियो ने समुन्द्र में फेक दिया था.हमारी सेना ने उनके अनुयायिों को वहीं दफनाने के लिये छोड़ दिया. पाक आतंकवादी ठिकाने पिछले कई समय से भारत के लिये सरदर्द बने हुए हैं. म्यामार में हमारी सेना की कार्यवाही के बाद से लगातार यह मांग उठती आ रही थी कि पाक अधिकृत कश्मीर में छिपे बैठे आतंकवादियों पर भी इसी प्रकार की कार्यवाही की जाये.उड़ी हमले के बाद पाक को उसकी औकात दिखाने का समय आ गया और कहना चाहिये कि नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के समय जिस छप्पन इंच के सीने की बात कही थी वह हकीकत में दिखा दी. ऐसे मामलों में तत्काल निर्णय लेने की जरूरत होती है जो हर किसी के बस की बात न

बिना खून खराबे के ही हमने अपने दुश्मन की रीढ़ तोड़ दी!

किसी को अगर सजा देना है तो इससे अच्छी बात ओर क्या हो सकती है कि उससे बात करना ही बंद कर दे. यह सजा उसे मारने- पीटने से भी ज्यादा कठोर होती है. पीएम नरेन्द्र मोदी यह नुस्खा अच्छी तरह जानते हैं.उन्होंने उत्पाती पडौसी को सबक सिखाने के लिये जो रास्ता चुना वह युद्व का न होकर कुछ इसी तरह का है जिसने आंंतक फैलाने वाले पडौसी को संसार में हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया. उड़ी में हमारे अठारह जवानों को शहीद बनाकर वह यह सोचने लगा था कि उसने इस आतंक के बल पर भारत की एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या को सबक सिखा देगा लेकिन उसने यह नहीं समझा कि उसके इस हथियार से बड़ा हथियार लेकर हमारे प्रधानमंत्री मैदान में है. पाक ने लुका -छिपी के खेल में हमारे देश में खून बहाया तो हमने बस इतना कहा कि तुम पानी -पानी के लिये तरसोगे तो उसके होश उड गये.पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर दुनिया से अलग-थलग करने की रणनीति ने अब अपना असल रूप दिखाना शुरू कर दिया है. केंद्र सरकार ने जहां सिन्धु जल समझौते पर कड़ा रूख अपनाया वहीं मंगलवार को यह  बड़ा फैसला लिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवंबर में इस्लामाबाद में होने वाल

इंसान की ताकत- बहादुरी(?) के कारनामें इंसानों पर ही

 लोग धीेरे धीरे काफी बहादुर(?) होते चले जा रहे हैं वे कभी अपनी मर्दानगीे सड़कों पर दिखाते हैं तो कभी घरों पर!... और इस  मर्दानगी का शिकार कहीं कोई अबला बनती है तो कभी कोई मासूम सी बच्ची! जबलपुर के एक संभ्रान्त परिवार की महिला ने पिछले दिनों अपनी मासूम बेटी का इसलिये कत्ल कर दिया चूंकि वह बेटी नहीं बेटा चाहती थी- उसने अपनी मासूम बच्ची को मारकर एसी के अंदर छिपा दिया. एक बहादुर(?) प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को दिल्ली में सरे आम चौबीस बार चाकू मारकर अपनी बहादुरी(?) का प्रदर्शन किया. हाल ही चेन्नई की एक अदालत ने दिलचस्प बात कही- पत्नी ने अदालत को बताया था कि उसका बहादुर? पति उसे पीटता है. अदालत ने पति महोदय को फटकार लगाते हुुए कहा कि अगर पीटना ही है तो सरहद पर जाओं वहां आतंकवादी खूब उत्पात मचा रहे हैं, उनको पीटो. ऐसे बहादुर(?) लोगो के लिये कोर्ट का ऐसा ही आदेश शोभा देता है.पता नहीं कितने लोग इसका पालन करेंगे, बहरहाल असल मुद्दा आज यही है कि देशभर में बलवान पुरूष एक  दो या तीन मिलकर किसी  भी अबला के साथ कहीं भी अत्याचार कर रहे हैं,हमारे कानून के लचीलेपन के कारण या तो ऐसे लोगो को कोर्ट से जमा

थानों में पिटाई...यह तो होता आ रहा है!

थानों में पुलिस पिटाई कोई नई बात नहीं है-यहां जात पात,ऊंच-नीच या धर्म  देखकर कार्रवाही नहीं होती बल्कि सबकुछ होता है पुलिस या खाकी की दबंगता के नाम पर...चोरी,लूट,अपहरण,हत्या जैसे मामले में थर्ड डिग्री का उपयोग जहां आम बात है वहीं पालिटिकल बदला लेने और पैसे देकर पिटाई कराने के भी कई उदाहरण हैं. इसके पीछे बहुत हद तक हमारी वर्तमान व्यवस्था स्वंय जिम्मेदार हैं जिसने थानों को कई मायनों में छुट्टा छोड़ रखा है जिसपर अक्सर किसी का कोई नियंत्रण ही नहीं रहता. बड़े अफसर कभी  कबार दूर दराज के थानों  में पहुंच गये तो ठीक वरना सारा थाना वहां के हवलदार और सिपाहियों के भरोसे चलता हैॅ. छत्तीसगढ़ के जांजगीर में एक शिक्षक  के बेटे सतीश के साथ जो कुछ हुआ वह कई थानों में आम लोगों के साथ होता है. कुछ लोग झेल जाते हैं और कुछ यूं ही सतीश की तरह प्राण त्याग देते हैं. सन् 2003 में पूरे पुलिस महकमें में अंबरीश शर्मा कांड की चर्चा रही.टीआई रेंक के इस अधिकारी और उसके साथियों की पिटाई से बलदाऊ कौशिक की पुलिस कस्टड़ी में मौत हो गई. अम्बरीश और साथी पुलिस वालों पर हत्या का मुकदमा चला.अतिरिक्त सेशन जज दीपक तिवारी की

फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर कब तक?

फिर वही -ढाक के तीन पात! आखिर  कब तक? सोमवार को दिनभर चले घटनाक्रम के बाद अब यह लगभग निश्चित हो चला है कि उरी हमला भी पिछले अन्य हमलों की ही तरह जुबानी जंग के बाद भुला दी जाएगी लेकिन 17 जवानों की शहादत को देश सदैव याद रखेगा.जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के ब्रिगेड कैंप पर हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है. 17 जवानों के एक साथ शहीदी हो जाने की खबर ने चारों तरफ दुख और सनसनी फैला दी लेकिन यह खबर भी अब पूर्व की घटनाओं की तरह अतीत की बात लगने लगी. वैसे इस बार का  आक्रोश इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला चूंकि इतना बड़ा संहार एकसाथ दुश्मन इससे पहले एक ही दिन में चंद घंटो में शायद इससे पूर्व (मुम्बई हमलों को छोड़कर) कभी नहीं कर पाया.  राजनेता से लेकर अभिनेता, सांसद से लेकर आम आदमी तक, सबने एक सुर में सैनिकों की शहादत को सलाम किया और आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की जरूरत बताई, इन बयानों में से ज्यादातर बयान पुरानी लीक पर थे, कोई नई बात नहीं -आजादी के बाद से ही आतंकवाद का नासूर लेकर पल रहे हमारे देश में हर आतंकी हमले के बाद कमोबेश एक जैसे बयान आते हैं 'हम हमलों की कड़ी निंदा करते हैं, आतंकि

अब समय आ गया पाकिस्तान से फिर दो दो हाथ करने का!

अब समय आ गया पाकिस्तान से फिर दो दो हाथ करने का! हकीकत यह है कि आज पूरा देश गुस्से में हैं कि सिर्फ चार आंतकवादी पडौस से आकर हमारे सत्रह जवानों को मारकर चले गये और हमारी सरकार हमेशा की तरह सिर्फ और सिर्फ निंदा करके वही पहली बाते दोहरा कर रह गई. जम्मू-कश्मीर में सेना की एक बटालियन के मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को सोचने के लिये मजबूर कर दिया कि हम इतने कमजोर कैसे हो गये? रविवार (18 सितंबर) को पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने हमारे सब्र को तोड़कर रख दिया हैं,सबूत हमारे पास है कि उसने जो अस्त्र इस्तेमाल किए उन उपकरणों पाकिस्तान निर्मित होने के निशान  हैं क्या यह सबूत काफी नहीं  कि हम इस देश का नामोनिशान मिटा दें? सेना के शीर्ष अधिकारियों ने इस हमले को 'गंभीर झटकाÓ करार दिया। 17 जवान मारे गये और कम से कम 20 सैनिक घायल भी हो गए जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.यह बात भी स्पष्ट हो गई हैं कि मारे गए आतंकवादियों का ताल्लुक जैश-ए-मोहम्मद संगठन से हैÓ पठानकोट हमले के बाद हमें उसी समय पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन में आ जाना चाहिये था लेकिन क्यों हम बार बार ऐसा सोच रहे हैं कि अब मारा तो

एक देश,एक चुनाव: अब इसमें देरी किस बात की!

एक देश,एक चुनाव: अब इसमें देरी किस बात की! पहले प्रधानमंत्री बोले, फिर राष्ट्रपति ने मोहर लगा दी, अब  बीजेपी भी कह रही है कि एक देश एक चुनाव में हमें भी कोई आपत्ति नहीं..तो फिर देरी किस बात की- देश में पांच साल मे सिर्फ एक ही बार चुनाव होना चाहिये-बार बार के चुनाव से जनता ऊब चुकी है-चुनावी खर्च भी बहुत बढ रहा है. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति दोनों की चिंता इस विषय में स्वाभाविक है. आखिर चुनाव के लिये पैसा भी तो जनता की जेब से निकलकर ही लगता है. देश में बढ़ती हुई मंहगाई की जड़ में भी बार बार होने वाले चुनाव है.आजादी के शुरूआती दौर में सब ठीक चल रहा था लेकिन आगे आने वाले समय में यह व्यवस्था गडबडाती चली गई. देश में 26 अक्टूबर 1962 को पहली इमरजेंसी का ऐलान उस समय हुआ जब चीन ने भारत पर हमला किया इसके बाद 3 दिसंबर 1971 को भी इमरजेंसी का ऐलान हुआ जब पाकिस्तान के साथ तीसरा युद्ध हुआ तीसरी और आखिरी बार 25 जून 1975 की रात में इमरजेंसी का ऐलान हुआ और वजह बताई गई देश के अंदरूनी हालात का बेकाबू होना. तीसरी और आखिरी इमरजेंसी करीब दो साल तक लगी, इस दौरान सारे चुनाव और अन्य कई किस्म की गतिविधियों पर ल

ं शिक्षा के मंदिर में बड़े पुजारी की तानाशाही...क्यों सिस्टम फैल है यहां?

ं शिक्षा के मंदिर में बड़े पुजारी की तानाशाही...क्यों सिस्टम फैल है यहां? बहुमत नहीं तो सरकार नहीं चल सकती- डेमोक्रेटिक कंट्री में ऐसा होता है लेकिन डेमोके्रेटिक कंट्री के सिस्टम में ऐसा नहीं हो रहा. सिस्टम को चला रहे कतिपय लोगों के खिलाफ सारी प्रजा एक भी हो जाये तो सिस्टम उसे बनाये रखने में ही अपनी शेखी समझता है. अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कुछ किलोमीटर दूर आदिवासी कांकेर जिले के गढ़ पिछवाड़ी सरस्वती शिशु मंदिर को ही लीजिये यहां का पूरा जनसमुदाय अर्थात इस शैक्षणिक मंदिर में पढऩे वाले बच्चे वहां का स्टाफ और शिक्षक सभी एक स्वर से मांग कर रहे हैं कि इस शिक्षा मंदिर के बड़े पुजारी अर्थात प्राचार्य को हटाया जाये लेकिन प्रशासन और सरकार दोनों कान में रूई डालकर छात्र-शिक्षकों और स्टाफ को मजबूर कर रहा है कि वे आंदोलन करें. कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे एक व्यक्ति को किसी पद से हटा देने से वहां पहाड़ टूटकर गिर जायेगा. अगर बहुमत यह मांग कर रहा है तो उसे हटाने में क्यों देरी की जाती है. एक व्यक्ति अगर सारी व्यवस्था के लिये बोझ बनता है तो क्या हमारे देश में दूसरा कोई नौजवान नहीं है जो इस

आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई!

आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई! कहतेे है न 'बेटर लेट देन नेवरÓ अर्थात देर आये दुरूस्त आये- सरकार ने देर से ही सही  डिब्बा बंद सामग्रियों के बारे में संज्ञान तो लिया. डिब्बा बंद सामग्रियों की मनमर्जी अब बंद होनी चाहिये यह आम लोगों की मांग है. जिस प्रकार खाद्य सामग्रियों व अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर कं पनिया मनमर्जी चलाती है उसपर रोक लागने के लिये सरकार ने अब अपना पंजा फैला दिया है. डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों पर ब्योरा पढऩे लायक हो- पहली बार इसपर गौर किया गया है. दूसरा और तीसरा कदम इसके बाद उठ सकता है, जिसमें डिब्बा बंद सामग्रियों की  क्वालिटी कैसी है, सही बजन है या नहीं इसको बनाने में कौन कौन सी  सामग्रियों का उपयोग किया गया है. इसकी कीमत अन्य प्रोडक्टस की  तुलना में कितना बेहतर है आदि तय करने की जिम्मेदारी भी सरकार को तय करना है.फिलहाल सरकार की योजना है कि 2011 के पैकेजिंग नियमों में संशोधन किया जाये इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का पूरा ब्योरा स्पष्ट और पढऩे लायक हो साथ ही सरकार नकली सामानों से ग्राहकों के हितों के संरक्षण के लिये

इतना पैसा रखकर भी हम अपने खिलाडियों को क्यों नहीं सवार पाते?

इतना पैसा रखकर भी हम अपने खिलाडियों को क्यों  नहीं सवार पाते? किसी को इस बात पर कोई जलन या अफसोस नहीं होना चािहये कि रियो ओलंपिक में जीतने वाली  सिंधु और साक्षी पर इनामों की बौछार हो रही है,किसी को इस बात का भी अफसोस नहीं होना चािहये कि पीवी सिंधु को तेलंगाना सरकार ने पांच करोड़, आंध्र प्रदेश सरकार ने तीन करोड़, दिल्ली सरकार ने दो करोड़, मध्यप्रदेश सरकार ने पचास लाख के अलावा तीन करोड़ रुपये और अन्य खेल संगठनों ने भी पैसा देने का ऐलान किया है. किसी को इस बात का भी कोई मलेह नहीं होना चाहिये कि आंध्र सरकार ने भी उन्हें एक हजार वर्ग गज जमीन और ए-ग्रेड सरकारी नौकरी  देने का फैसला किया है. दूसरी रेसलर साक्षी मलिक जिसने कुश्ती में एक पदक जीत हासिल की  को भी  हरियाणा सरकार ने 2.5 करोड़, दिल्ली सरकार ने एक करोड़ और तेलंगाना सरकार ने  एक करोड़  रुपये देने का फैसला लिया-साक्षी को रेलवे 50 लाख और पदोन्नति देगा जबकि उनके पिता का भी प्रमोशन होगा.ऐसा होना चाहिये लेकिन यह प्रोत्साहन जीतने के बाद ही क्यों? उससे पहले प्रतिभाओं को क्येंा दबोचकर रखा जाता है? काश! खिलाडिय़ों को संवारने पर भी देश की संस्

मंहगाई के दौर में नई आशाओं के साथ आये उर्जित पटेल!

उर्जित पटेल होंगे रिजर्व बैंक आफ इंडिया के नये गवर्नर. रघुराम राजन  के बाद नया गवर्नर  कौन होगा इसकी चर्चा उसी समय शुरू हो गया थी जब स्वामी विवाद के बाद रघुराम राजन ने आगे अपना कार्यकाल जारी रखने से अनिच्छा प्रकट कर दी थी. भारी ऊहापोह के बाद अंतत: भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल को आरबीआई का 24वां गवर्नर घोषित कर दिया गया. रघुराम राजन  चार सितंबर को पदमुक्त होंगे इसके बाद पटेल उनका  स्थान लेंगे. भारतीय रिजर्व बैंक में गवर्नर  नियुक्ति को  लेेकर इतनी ऊहा पोह शायद इससे पहले कभी देखने को नहीं मिली. शायद रिजर्व बैंक के इतिहास  में यह पहला अवसर भी है जब इसमें गवर्नर की नियुक्ति को लेकर राजनीति ने भी अपना असर दिखाया. बहरहाल  52 वर्षीय उर्जित पटेल का अनुभव रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली से पूर्व से रहा है इसलि येभी इस पद पर नियुक्ति मामले में कोई नये विवाद की गुंजाइश नहीं दिखती.पटेल 11 जनवरी 2013 को रिजर्व बैंक में डिप्टी गवर्नर नियुक्त किये गये थे और इस साल जनवरी में उन्हें सेवा विस्तार दिया गया अर्थात यह भी कहा जा सकता है कि उन्हें अपने कामों के लिये प्रमोशन मिला हैं. रिजर्व

जनता के बीच के लोग...लेकिन जनता से कई आगे!

राजा महाराजाओं के दिन लद गये लेकिन हमारी व्यवस्था ने कई ऐसे महाराजा तैयार कर दिये जिनकी लाइफ स्टाइल किसी भी आम आदमी से कही ऊंची है-येह लोग अब भी प्राप्त सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं उन्हेें जनता की सेवा के लिये और पैसे चाहिये. यह चाहे वेतन में बढौत्तरी के रूप में हो, चाहे भत्ते के रूप में जबकि भारत की गरीब जनता जिनकी बदौलत यह सेवक बनकर ऊंची कुर्सियों पर विराजमान हैं उनमें से कइयों को तो कपड़े लत्ते और मकान की बात छोडिय़ें एक समय का खाना भी मुश्किल से नसीब होता है.उनके बच्चों की शिक्षा  के लिये कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं? और उनके बीमार पडऩे पर उन्हें क्या  क्या बेचना पड़ता है यह किसी  से छिपा नहीं है- आप  मौजूदा उच्च सदन की बात को ही ले लीजिये -442 माननीय करोड़पति बताए जाते हैं. एक माननीय की संपत्ति 683 करोड़ भी है. वहीं एक माननीय ऐसे भी है जिसकी संपत्ति मात्र 34 हजार रुपये है. ठीक हैं यह कम वेतन पाने वाले माननीय अपने वेतन और सुविधाओं में और वृद्वि की मांग कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है- सभी मांग कर रहे हैं कि वेतन बढ़ाया जाये. निचले सदन में इसी जून में 57 नए माननीय और जुड गये,

ओलंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति..साई कितना सही?

ओलंंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति के लिये आखिर हम किसे दोष दें.?खिलाडिय़ों को, व्यवस्था को हमारी परंपरा को,हमारी राजनीतिक व्यवस्था को या खेलों के प्रति युवाओं में उत्साह की कमी को? कारण इससे भी ज्यादा हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर  जो कारण दिखाई देते हैं वह यह ही है जिसके चलते हम अपने दावे पर खरे नहीं उतर सके. 19 मेडल जीतने का था दावा, दस दिनों  बाद भी खाली हाथ हाकी की टीम सहित 37 से ज्यादा एथलीटस बाहर हो गये हैं. रही सही उम्मीद जिमनास्ट दीपा की पराजय के साथ पूरी हो गई. मेडल जीतने में वह भी कामयाब नहीं रही.भारतीय हाकी टीम  बेलजियम के हाथो पराजित होने के बाद ओलंपिक खेलों से बाहर हो गई. भारत से 119 प्लेयर्स 15 गेम्स में हिस्सा लेने गए थे आधे  से ज्यादा  का सफर बिना मेडल जीते खत्म हो गया,जबकि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) ने ओलिंपिक की शुरुआत से पहले सरकार को भेजी रिपोर्ट में दावा किया था कि 19 मेडल जीते जा सकते हैं. भारत के खराब परफॉर्मेंस पर हालकि अधिकारिक तौर पर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन चीन ने हमारी आलंपिक खेलों में शर्मनाक स्थिति पर अपने सरकारी मीडिया के जरिए जो