बोलने की आजादी का जबरदस्त दुरूपयोग अब समस्या बन रही !


देश की राजनीति का संतुलन क्यों बिगड़ रहा? शायद इसलिये भी कि देश में बोलने की आजादी का दुरूपयोग इससे पहले कभी नहीं हुआ. लोग अपना काम छोड़कर कभी सहिष्णुता-असहिष्णुता पर तो कभी व्यक्तिगत आक्षेपों को लेकर  एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में आपे से बाहर हो रहे हैं.दुख इस बात का है कि बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बड़े लोग भी इन लफड़ो में पड़कर अपने छबि पर दाग लगवाने लगे हैं. कुछ तो एकदम अति कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो सात समुन्दर पार बैठे लोगों को कोसने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे.बात अगर चुनाव तक सीमित रह जाती तो भी समझ में आता लेकिन चुनावों के निपटने के बाद भी यह सिलसिला बना हुआ है. पिछले  चुनावों के बाद से कुछ ऐसा हो गया कि लोग मुंंह से बाण चलाने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं. संविधान में प्रदत्त अधिकारों का जिस प्रकार अभी दुरूपयोग हो रहा है वह इससे पहले कभी नहीं हुआ. यह अब विचार करने का विषय है कि क्या लोगों को इतनी आजादी दी जानी चाहये कि वह अपनी बातों से देश की अस्मिता पर ही सवाल उठा दे. सरकार की नीितयों के खिलाफ अगर विपक्ष का हल्ला हो तो बात समझ में आती है यहां तो सीधे-सीधे व्यक्तिगत मामलों में भी प्रहार हो रहे हैं जिसका कोई अंत भी नजर नहीं आता. इसका सारा असर देश के विकास और देश की एकता व अखंडता पर भी पड़ रहा है.पूर्व के बयानों को छोड़ हाल के कुछ बयानों पर नजर डाले तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि पाॢटयां किस तरफ जा रही हैं जैसे यूपी के मंत्री समाजवादी नेता आजम खान के सुपर पावर पर दिये बयान के बाद कांग्रेस के पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर का बयान- जिसे कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने आतंक को संप्रदाय से जोड़कर कांग्रेस को ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है जहां चुप्पी भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए भारी पड़ सकती है। भाजपा के खिलाफ संसद में मजबूत मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस से इस मुद्दे पर साथी भी दूर-दूर हो गये.उप्र के मंत्री व सपा नेता आजम खान ने पेरिस की आतंकी घटना को यह कहकर परोक्ष रूप से सही ठहरा दिया था कि पश्चिमी देशों ने जो कुछ किया है यह उसी का नतीजा है.दो दिन बाद ही कांग्रेस के पूर्व मंत्री अय्यर ने पाकिस्तान में मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया. पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी पाकिस्तान में जाकर मोदी सरकार की आलोचना की. कांग्रेस ने उसे उनकी व्यक्तिगत राय बताकर पल्ला झाड़ लिया था लेकिन केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू और जावडेकर ने इसे देशद्रोह करार दिया.अब शकील का  ट्वीट भी देखिये वे उसमें कह रहे हैं कि शुक्र है कि छोटा राजन और अनूप चेतिया मुस्लिम नहीं हैं वरना मोदी सरकार कुछ और कहानी कह रही होती. इसपर भाजपा का आक्रोशित होना स्वाभाविक था. उसने कहा आतंक की घटना पर भी कांग्रेस राजनीति कर रही है वह आतंकियों को भी हिंदू और मुस्लिम के चश्मे से देख रही है। यह तुच्छ राजनीति है. इधर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद कैसे चुप रहते कह दिया- भाजपा लोगों को बांटने का काम कर रही है। चुनावों में हार के बाद कांग्र्रेस इस चिंतन में लगी है कि क्या पार्टी की छबि हिंदू विरोधी होती जा रही है? वाक युद्व में नेता ही नहीं. सन्यास लेकर राजनीति में आये कई ऐसे विद्वान भी कूद पड़े हैं जिनका हम यहां जिक्र करने लगे तो यह कालम पुरेगा नहीं इसलिये इसे यहीं विराम देते हुए यह कहना चाहेंगे कि देश में चला वाक युद्ध चाहे वह सहिष्णुता पर हो धर्म और राजनीति से संबन्धित हो अथवा  आंतकवाद अथवा अन्य मुद्दों पर वह शालीन नहीं रहा तो हमारी एकता, अखंडता और संप्रभुता सभी के लिये खतरा पैदा कर देगा.




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