अब आयेगा मजा! साहब और माननीयों के बच्चों को भी सरकारी स्कूलों का थोड़ा आनंद लेना होगा....!




आजकल के बच्चे क्या जाने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का मजा! लेकिन जो बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं उन बच्चों से पूछो- सरकारी स्कूलों में पढऩे में कैसा मजा आता है? वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि निजी स्कूलों की बनिस्बत इन स्कूलों में पढऩे का अपना अलग ही मजा है. खूब स्वतंत्रता है-जब मर्जी आए तब स्कूल जाओ और जब मर्जी आए तब स्कूल से भाग जाओ, बारिश हो तो छुट्टी, मास्टर जी नहीं आये तो छुट्टी! जब चाहे तब किसी पेड़ के नीचे बैठकर गप्प मारो, दोस्तों के साथ कभी भी फिल्म देखने चले जाओ. कभी-कभी तो एक ही मास्टर पूरे स्कूल को पढ़ा देता है. ऐसे हालात में सरकारी स्कूल बच्चों के लिये बहुत ही मजेदार हैं लेकिन पालकों को यह पसंद नहीं, वे तो प्रायवेट स्कलों की तरफ दौड़ते हैं- अब लेकिन उनकी नहीं चलने वाली. हाईकोर्ट ने भी मान लिया है कि सरकारी कर्मचारियों, नेताओं, जनप्रतिनिधियों, जजों आदि को भी अपने बच्चों की बुनियादी शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही देनी होगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक ऐसा आदेश सुनाया है जो स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. कोर्ट ने कहा है कि सभी एमपी-एमएलए और सरकारी कर्मचारियों व जजों के बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाया जाए. कोर्ट का मानना है कि ऐसा करने से ही सरकारी प्राइमरी स्कूलों की हालत में सुधार आयेगा. कोर्ट का मानना है कि एमपी, एमएलए, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी और सरकार से सहायता प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चों को प्राइमरी शिक्षा सरकारी स्कूलों में दिलाई जाए. जबतक ऐसे लोगों के बच्चे सरकारी प्राइमरी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तबतक सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी. कोर्ट का मानना बिल्कुल सही है, चूंकि जब तक सरकारी स्कूलों में बड़े लोगों के बच्चे नहीं पढ़ेंगें तब तक किसी को कैसे पता चलेगा कि स्कूल किन हालतों में चल रहे हैं. कहीं छत चू रहा है तो कहीं मास्टर और मास्टरनियां नहीं हंै तो कहीं टायलेट नहीं है और कहीं प्रयोगशालाएं और लायबे्ररी नहीं है. सरकारी स्कूलों में पीटी टीचर आौर प्ले ग्राउण्ड भी नहीं है. शिक्षा का स्तर भी गिरा हुआ है. स्कूलों में पंखे नहीं है, पीने का पानी नहीं, यहां तक कि ब्लेक बोर्ड और चाक-डस्टर भी नहीं. हाई कोर्ट ने इन सारी परिस्थतियों पर संज्ञान लिया है तथा कहा है कि सरकार इस बारे में 6 महीने में कानून बनाए. इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश फिलहाल यूपी के लिये है लेकिन यह नियम आगे आने वाले वर्षों में पूरे देश में लागू हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये. कोर्ट का फैसला है कि यूपी सरकार अगले साल शुरू होने वाले नये सेशन से ये आदेश लागू करे और जो लोग इस आदेश का पालन नहीं करते उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो. इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से यूपी के सरकारी स्कूलों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता क्योंकि जब राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के बच्चे खस्ताहाल सरकारी स्कूलों में जाने के लिए विवश होंगे तब वाकई सरकारी स्कूलों की सूरत और सीरत बदल सकती है. हाईकोर्ट के मुताबिक, यदि सरकारी कर्मचारियों ने अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाया तो उन्हें फीस के बराबर की रकम हर महीने सरकारी खजाने में जमा करानी होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट और प्रमोशन कुछ वक्त के लिए रोकने की व्यवस्था की जाए। देश के प्राय: सभी राज्यों के जूनियर और सीनियर स्कूलों में पढ़ाई की बुरी हालत है. हाई कोर्ट मानता है कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, टॉप लेबल पर बैठे अधिकारियों और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी। एक आंकलन के अनुसार अकेले यूपी में एक लाख 40 हजार जूनियर और सीनियर बेसिक स्कूलों में टीचर्स के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं है।

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