म्यांमार की तरह पाक आतंकियों के ठिकानों पर हमला करने से क्यों हिचक रही सरकार?



साड़ी, आम और हाथ मिलाने की कूटनीति! क्या यही नरेन्द्र मोदी की कूटनीति है? विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा, केन्द्र सरकार की विदेश नीति को सही नहीं मानते! नरेन्द्र मोदी को सलाह देते हैं कि वे मेंगो डिप्लोमेसी छोड़ें और पाकिस्तान के खिलाफ स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जैसा साहस दिखाएं! तोगडिय़ा यही नहीं रुकते, वे कहते हैं कि म्यांमार में घुसकर जिस तरह आंतकवादियों को खत्म किया गया था ठीक उसी तरह पाकिस्तान के कब्जे में कश्मीर में घुसकर हमला बोलना चाहिए। वास्तविकता यही है कि आखिर कब तक हम बर्दाश्त करते रहेंगे!- वे दो सैनिकों का गला काटकर ले गये तो जवाबी कार्यवाही करने की जगह हमने उन्हें साड़ी भेज दी. आंतकवादियों को भेजकर हमारी सीमा में हलचल पैदा की तो हमने उन्हें बंदूक से जवाब देने की जगह भारत का प्रसिद्ध आम अल्फांसो भेज दिया। पाकिस्तान लगातार हम पर एक के बाद एक हमले कर रहा, क्यों नहीं हमारा खून उबलता? क्यों हम चुप बैठे हैं? हमारा सारा जोश क्या चुनाव जीतने के लिए है? कभी पाक के प्रधानमंत्री की मां को साड़ी, कभी आम का रस, और कभी हाथ में हाथ देकर कब तक उनके जुल्म को झेलते रहेंगे- क्या हममें हिम्मत नहीं है कि पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आंतकवादियों के ठिकानों को उड़ा दें। हमारी सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय के अभाव का अहम उदाहरण गुरदासपुर मुठभेड़ के दौरान देखने को मिला जब आतंकवादियों से मुकाबला चल रहा था-अगर सेना के पहुंचते ही पुलिस समन्वय स्थापित करतीं तो शायद एसपी को अपनी जान से हाथ धोना नहीं पड़ता, ऐसा कई मामलों में हो रहा है- न केवल हमारी विदेश नीति बल्कि गृह विभाग और सूचना तंत्र पर भी सवाल उठ रहे हैं- इलेक्ट्रानिक मीडिया मुठभेड़ के शुरू से लाइव प्रसारण करता रहा लेकिन जब कहीं से यह कहा गया कि इससे आंतकवादियों और उनके आकाओं को मदद मिलेगी तो ले-देकर लाइव प्रसारण पर थोड़ी बहुत लगाम लगी। क्या यह भारत-पाक किक्रेट मैच है जिसका लाइव प्रसारण किया गया? मुंबई 26/1 हमले में भी इसी प्रकार का लाइव प्रसारण हुआ था। डान दाउद इब्राहिम का मामला अभी भी लंबित पड़ा है। बीच-बीच में उसकी खबर उठती रहती है लेकिन हम उसको लाने के मामले में भी गंभीर नहीं हैं- वह कहां है? किस हालत में है, वह अभी कैसा दिखता है यह तक नहीं मालूम. उसके साथी याकूब मेमन की अभी मिली तस्वीर में बहुत उम्र का दिखाया गया है, जब दाऊद के कथित साथी की उम्र बुढ़ापे की है तो दाऊद का क्या हाल होगा, यह भी अंदाजा लगाया जा सकता है. इससे तो यही कहा जा सकता है कि दाऊद को भारत लाकर उस पर मुकदमा चलाने और सजा दिलाने में शायद युग बीत जाए. अत: हमारी सलाह यही है कि सरकार को जो करना है कि वह तुरंत-फुरंत में करें- सपना दिखाना छोड़ें!

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