सामान्य से लेकर नौकरशाही और राजनीति तक सब जगह टांग खींचने की प्रवृति!



हम अपना काम छोड़कर बाकी सब करते हैं-वह चाहे किसी की आलोचना करना हो, टांग खींचना हो या फिर किसी के काम में अडंग़ा डालना- यह बात अकेले सामान्य लोगों पर लागू नहीं होती, देश की राजनीतिक व्यवस्था में लगे लोगों का भी यही हाल है. इससे जो काम होना है वह या तो ढंग से नहीं होता या फिर उस काम की गति कमजोर पड़ जाती है. देश में सामान्यजन से यह बात निकलक र नौकरशाही और राजनीति में भी पहुंच गई है, इसका हश्र आज सभी के सामने है. लोग अपना काम छोड़कर परनिंदा, आरोप-प्रत्यारोप, भत्र्सना और ऐसी ही कई फिजूल की बातों में उलझकर रह गये हैं। व्यवस्था और राजनीति में इस बुराई के प्रवेश ने सारे माहौल को ही बिगाड़ दिया है, जबकि इससे नुकसान आम लोगों का ही हो रहा है. माननीयों को भी अब जनता-देश को छोड़  दूसरों की चिंता ज्यादा सताने लगी है. वह क्या कर रहा है, उसने क्या किया इसी में समय गुजर रहा है- यहां तक कि देश का सबसे बड़े तंत्र को भी आज अखाड़ा बना दिया गया है- किसी को इस बात की कतई परवाह नहीं कि उसने क्या किया? वह क्या कर रहा है? इस पूरे एपीसोड में हर आदमी अपने काम को छोड़कर दूसरे की बुराई निकालने में ही अपना बड़प्पन समझने लगा है। जनता के काम का दायित्व जिन लोगों को सौंपा गया है उसपर नजर दौड़ाएं तो साफ नजर आता है कि एक छोटे कार्यालय का चपरासी अपना काम छोड़कर बाबू या साहब की चापलूसी करने में लगा है या फिर इधर-उधर मटरगश्ती में अपना समय बर्बाद कर रहा है. उधर ब्यूरोक्रेट्स का यह हाल है कि वह अपने अन्य साथी या किसी अपने बास या अधिनस्थ दुश्मन की कब्र खोदने में लगा है। मंत्री जिन्हें जनता ने उम्मीदों के साथ देश को चलने का दायित्व सौंपा है वह या तो विपक्ष के पीछे पड़ा है या विपक्ष सत्ता पक्ष के पीछे पड़ा है, कोई किसी को कालिया नाग कह अपनी भड़ास निकाल रहा है तो कोई सत्ता में पहुंचकर पुरानी कब्र खोदने में लगा है. इसका एक ही उपाय है कि जिसे जो काम सौंपा गया है वह अपना काम करें दूसरों के काम में टांग अड़ाने की आदत छोड़ें। जनता के प्रतिनिधि विशेषकर जो देश के बड़े ओहदे पर पहुंचते हैं उनके लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह उच्च पद पर बैठने के पांच साल तक भारत के राष्ट्रपति की तरह किसी भी राजनीतिक दल से ताल्लुक न रखें और सिर्फ देश के लिए काम करें. आजादी के बाद के दशकों में स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि लोग सिर्फ अपने जेब के लिये काम करते हैं, देश के लिये कोई काम नहीं करता!

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