शहर की न प्यास बुझी न स्वच्छ हुआ, हां टैक्स जरूर बढ़ा लोग दुखी जरूर हैं पांच माह में!


शहर प्यासा है, नलों में पानी नहीं है, टैंकर पहुंच नहीं रहे. जहां सार्वजनिक नल लगे हैं वहां लोगों की लाइन लगी हुई है, जहां टैंकर पहुंचना चाहिये वहां नहीं पहुंच रहे हैं. सौदर्य के नाम पर सड़कों पर लगाये गये पौधे पानी नहीं मिलने से सूख रहे हैं. विकास कार्य ठप्प पड़े हैं, कई वार्डों में सफाई नहीं हो रही. आउटर की कालोनियों में तो बुरा हाल है जहां न स्ट्रीट लाइट जलते हैं और न सफाई होती है. अवैध निर्माण का बोलबाला है, निगम का कोई भी  जिम्मेदार कर्मचारी वार्डों में नजर नहीं आता जिससे लोग अपनी शिकायत कर सकें. कचरे के ढेर से निकलने वाली बदबू से लोग परेशान हैं-आखिर इन सब समस्याओं के हल करने की जिम्मेदारी किसकी है? रायपुर में नये नगर निगम का गठन हुए पांच माह बीत गये. महापौर जनता के बीच नजर नहीं आते. पूर्व के कार्यकाल की तुलना कर देखें तो वर्तमान का कार्य पूरी तरह से शून्य नजर आ रहा है. जो घोषणाएं समयबद्ध कार्यक्रमानुसार पूर्ण करने की बात कही जा रही है वह अपनी तिथि छोड़कर काफी आगे निकल जाती है लेकिन उसका संज्ञान लेने वाला कोई नहीं. एक दिलचस्प किन्तु गंभीर स्थिति निर्मित हो गई है. आखिर जनता क्या करें? कुछ ही समय में बरसात शुरू हो जायेेगी लेकिन शहर व आसपास के क्षेत्रों में नालियां बजबजा रही है. आगे जब बारिश होगी तब इस शहर का हाल क्या होगा, कोई नहीं जानता. रायपुर की जनता की अपेक्षाएं नये पदाधिकारियों के कार्यकाल के शुरूआती दौर में ही खरी नहीं उतर रही है. पुराने बस स्टैण्ड में बन रहे पार्किंग को कब से शुरू हो जाना था लेकिन अब तक शुरू नहीं हुआ जबकि आज खबर है कि निगम रेलवे स्टेशन में एक पार्किंग और बनाने की तैयारी में है. निगम कम से कम जो कार्य पहले से चल रहे हैं उसे पूर्ण करें फिर आगे बढ़ें. लेकिन ऐसी कोई परिस्थितियां निगम के लोग निर्मित नहीं कर रहे हैं. आम जनता के भारी बहुमत से जीते महापौर अब तक के अपने कार्यों से जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं बल्कि अपने कार्यकाल के दौरान लोगों पर टैक्स में वृद्धि कर उन्हें और मुसीबत में डाल रहे हंै. उद्यानों के रखरखाव व उनके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. कई जगह लोग मनमानी कर रहे हैं किन्तु निगम का अमला इसे रोकने में नाकाम है. सड़कों पर आवारा मवेशियों का डेरा है, महापौर के अपने मोहल्ले में ही मवेशी पैर पसारे सड़क पर पड़े रहते हैं, कोई देखने वाला नहीं. निगम का कुत्तों की नसबंदी का कार्यक्रम भी ठप्प है जबकि आवारा कुत्तों का आतंक अब भी कई मोहल्लों में छाया हुआ है. पांच महीने के कार्यकाल का विश्लेषण यही कहता है कि निगम ने अभी कोई काम न शहर के लिये किया और न आम लोगों के लिये.

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