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सतपथी ने नन दुष्कर्म कांड जांच को नया मोड़ दिया,पुलिस अब आशान्वित भेद खुल जायेगा...!

''मुर्दे भी बोलते हैं और घटना का सुराग छोड़ जाते हैंÓÓ-देश  के विख्यात फ ँारेन्सिक एक्सपर्ट डा.डी.के.सतपथी के इस वाक्ये के साथ हम यह कहना चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ में इस समय मानसून से ज्यादा अपराधी सक्रिय हैं.एक के बाद एक बड़ी वारदातों ने छत्तीसगढ़ पुलिस की नींद हराम कर दी है. इस बीच नन बलात्कार कांड में पुलिस को सतपथी के बयान से जैसे अमृत मिल गया हो.यह सही है कि सतपथी को फारेन्सिक की महारथ हासिल है, उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर इस  मसले को सुलझाने की जो बात कही है वह शतप्रतिशत सही हो सकती है-बहुत दिनों बाद ही सही छत्तीसगढ़ पुलिस ने उनका मार्गदर्शन  लेकर अपने अन्वेषण को पुख्ता करने  में एक अहम भूमिका अदा की है. मुझे डीके सतपथी  के बारे में उनके परिवार के एक  सदस्य ने एक किस्सा सुनाया था कि वे एक बार भोपाल  से घर-बसना आ रहे थे तभी रास्ते में उनको जंगली इलाके में दुर्गन्ध आईर् तो उन्होंने गाड़ी रूकवाकर  कहा कि मुझे यहां किसी मनुष्य के लाश की गंद आ रही है. थोड़ी दूर जाकर  देखा तो एक व्यक्ति की लाश को जलाकर वहां फेका गया था. थोड़ी  ही देर में उन्होंने यह बता दिया कि उसे मारकर यहां जल

आखिर सरकार ने ध्यान दिया, अब धान के साथ फल और ड्राय फ्र्रूट की भी खेती...!

अगर ऐसा होता है तो यह छत्तीसगढ़ की उन्नती और विकास में चार चांद लगा देगा, जी हां! हम बात कर रहे हैं कृषि के क्षेत्र में आने वाली नई नीति के बारे में जिसमेें सरगुजा को फल और बस्तर को फ्रूट उत्पादन के क्षेत्र में बढ़ावा देने का है. यहां हम बता दें कि सरगुजा का क्षेत्र फलों के उत्पादन में अभी से अग्रणी हैं. इस क्षेत्र में नारियल, कटहल जैसे दक्षिण में बहुतायत से होने वाले फलों के वृक्ष खूब फल देते हैं तो लिची का उत्पादन भी यहां भारी तादात में होता है. फलों के उत्पादन की दृष्टि से इस इलाके का मौसम भी अनुकूल है. हम अपने इन्हीं कालमों में पहले ही इस फसल को बढ़ावा देने का अनुरोध करते रहे हैं. उसी प्रकार बस्तर में भी मौसम ड्राय फ्रूट विशेषकर काजू के उत्पादन के लिये अनुकूल है. सरकार किसानों को प्रोत्साहित करें तो हर तरह की फसल छत्तीसगढ़ में ली जा सकती है. काफी-चाय का उत्पादन भी यहां किया जा सकता है. मसालों के लिये भी छत्तीसगढ़ के कई इलाके अनुकूल साबित हो चुके हैं. अनार की खेती के लिये भी इस अंचल का मौसम अनुकूल है. इन सबके लिये मौसम के आधार पर पानी की पर्याप्त व्यवस्था करनी भी जरूरी है क्योंकि इन प

लोग आदत से बाज नहीं आयेंगे ेउनके लिये चाहिये पुलिस एक्ट की धारा 34

कुछ लोगों की आदत है कि वे कहीं भी, कभी भी जगह मिले शुरू हो जाते हैं, फिर वे न आगे देखते हैं और न पीछे-आगरा डिविजन की रेलवे पुलिस ने ऐसे करीब 109 लोगों को पब्लिक प्लेस पर पेशाब करने, गंदगी फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया और सभी को 24 घंटे के लिए जेल भेज दिया. इनपर आरोप था कि उन्होंने रेलवे ट्रैक, पार्किंग प्लेटफॉर्म आदि पर पेशाब किया. हालांकि बाद में उनसे 100 रुपए से 500 रुपए तक का जुर्माना लेकर छोड़ दिया गया लेकिन इससे एक संदेश पूरे देश को गया है कि ऐसा करने का खामियाजा किसी को भी भुगतना पड़ता है चूंकि यह अकेले आगरा या हमारे देश के किसी एक शहर की बात नहीं है, प्राय: हर नगर में ऐसी गंदगी फैलाने वाले आपको मिल जायेंगे. कुछ तो ऐसे भी हैं जो टायलेट होते हुए भी उसमें नहीं जाते बल्कि बाहर ही किसी दीवाल या सड़क के हिस्से को बरबाद कर देते हैं. ऐसे लोगों से निपटने का यह अच्छा तरीका  है. अभी तो आगरा रेल मंडल की पुलिस ने यह कदम उठाया है, पूरे देश को इस मामले में पूरी तरह से सक्रिय होने की जरूरत है. जब तक आप लोगों की छोटी-छोटी गलतियों पर सख्त नहीं होंगे तब तक लोग ऐसी और इससे बड़ी गलतियां करते रहें

पुलिस यूं कब तक अपराध को 'तराजू पर तौलकर देखती रहेगी?

पुलिस यूं कब तक अपराध को 'तराजू पर तौलकर देखती रहेगी? पुलिस अपने लोगों की रक्षा नहीं कर सकती तो आम लोगों की क्या करेगी? सरेआम किसी पुलिस वाले को पीट दे और हमारी बहादुर पुलिस (?) फरियादी से एप्लिकेशन मांगे कि -''भैया तुम लिखकर दे दो तब हम उसपर कार्रवाई कर सकेंगे!, ऐसे में यही कहा जा सकेगा कि अपराधियों को खुली छूट है! इधर एक नन बलात्कार से पीड़ित है, उसे जितनी यातना बलात्कारियों ने दी उससे कई गुना ज्यादा यातना अब पुलिस और मीडिया दे रही है. हम यहां पंडरी नन  दुष्कर्म कांड और भिलाई की घटना जिसमें ओवरटेक करने वाले युवकों और पुलिस की भिड़त के बाद मारपीट होने की घटना पर पुलिस के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं कि क्या पुलिस की व्यवस्था अपराध को तौलकर देखती है कि अपराध का स्तर कितना ऊंचा है? क्या उसी स्तर के आधार पर कार्रवाई होती है? नन बलात्कार की घटना के बहत्तर घंटे बाद भी पुलिस इस बात का सुराग तक हासिल नहीं कर सकी कि आखिर यह घटना कैसे, क्यों घटी और इसमें कौन लोग शामिल रहे होंगे? क्या यह स्थिति किसी मंत्री या वरिष्ठ अधिकारियों के साथ परिवार वालों पर घटित होती तो भी ऐसा ही होता? पुलि

आपातकाल नहीं भी तो मोदी को वादे पूरे करने के लिये कठोर कदम तो उठाने ही होंगे!

देश के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने आपातकाल पर ट्वीट कर कहा है कि मोदी भी इंदिरा की राह पर चल रहे हैं-अगर ऐसा है तो कुछ हद तक तो मुझे व्यक्तिगत रूप से अच्छा ही लगता है- हम स्वयं विश्लेषण कर देखें कि देश के हालात किस ढंग से बदल रहे हैं और देश आज उस समय के हालातों से गुजर रहा है जिसके चलते इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया. यह बात अलग है कि परिस्थितियां उनके पक्ष में भी नहीं थी. घपले-घोटाले, अनुशासनहीनता, समय पर अफसरों व कर्मचारियों का कार्य पर न पहुंचना, ट्रेनों का समय पर न चलना, मीडिया का अंधाधुन्ध गलत-सही प्रचार, यह सब उस समय भी मौजूद था जो आपातकाल लगते ही एक सख्त अनुशासन के रूप में बदल गया. अगर अनुशासन पसंद लोग अपने नजरिये से तत्कालीन आपातकाल को देखे तो वास्तव में आम आदमी का जीवन सही ट्रेक  या सही पटरी पर उतर गया था. मीडिया का अंग होने के नाते हालांकि मुझे आपातकाल का समर्थन नहीं करना चाहिये चूंकि मी़िया भी राजनीतिक  दलों की तरह उस समय सबसे ज्यादा प्रभावित थी- मंै स्वयं भी आपातकाल के दौरान की गई सख्ती की चपेट में आया था लेकिन मुझे वह अनुशासन खूब पसंद आया जो आपातकाल लगाने के बाद द

समान अधिकार के वादे धरे रह गये, व्यक्तिगत धनकुबेरों के चलतेे आम वर्ग को उठने का मौका नहीं मिल रहा!

समान अधिकार के वादे धरे रह गये, व्यक्तिगत धनकुबेरों के चलतेे आम वर्ग को उठने का मौका नहीं मिल रहा! एक तरफ देश में हद पार अमीरी है तो दूसरी तरफ हद से Óयादा गरीबी!- क्या यह सोचने का विषय नहीं कि हद पार गरीब की किस्मत क्या उसके जीवनभर साथ रहेगी या उसमें कोई बदलाव आयेगा? ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रेहुआ लालगंज में धर्मराज सरोज का है जो अपने दो बेटों के एक साथ आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद भी परेशान हंै क्योंकि अब उनको आगे इन ब"ाों को पढ़ाने के लिये, यहां तक कि फीस जमा करने के लिये तक पैसे नहीं है. आगे आईआईटी में दाखिले के लिए एक लाख रुपये की जरूरत है, लेकिन उनके लिए यह दूर की कौड़ी है क्योंकि वह मात्र उतना ही कमा पाते हैं जिससे परिवार का पेट भर सके. धर्मराज गुजरात में सूरत के एक मिल में काम करता है. दो शिफ्टों में काम करके भी 12 हजार रुपये महीना कमाते हैं. उनके परिवार में सात लोग हैं. यह अकेले धर्मराज की कहानी नहीं है, देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो न केवल अपना पेट भरने के साथ ब"ाों के अ'छे भविष्य के लिये यूं ही परेशान हैं. न केवल ब"ाों की

अमीर-गरीब की खाई कौन पैदा कर रहा? कूड़े में खाना डालना और कूड़े से खाने की प्रवृति कब खत्म होगी?

एक नेता छगन भुजबल की संपत्ति 2563 करोड़ और ऐसे छुपे रूस्तम नेताओं की कितनी? एक अधिकारी आलोक अग्रवाल की संपत्ति सौ करोड़! अन्य अधिकारी कितना दबाये बैठे हैं? धनपतियों का एक अलग ही साम्राज्य बन गया है हमारे देश में! ऐसे लोगों की तिजोरियों को टटोला जाये तो स्वर्गिक आनंद में जीवन जीने वाले कई मानवप्राणी मिल जायेंगे जिन्होंने राष्ट्र और इस राष्ट्र की गरीब जनता की जेब में डकैती डालकर अपने व अपने परिवार के जीवन को न केवल सुखद बनाया बल्कि वैभव को भी खरीद लिया है. महाराष्ट्र के एक मंत्री के पास से जब 2563 करोड़ रुपये की संपत्ति का पता लग सकता है तो जांच करने वाली एजेंसियां तो समझ गई होंगी कि देश में छिपे धन का रहस्य क्या है? हिमाचल में वर्षों पूर्व ऐसे ही एक मंत्री के घर पर छापा पड़ा तो उनकी दीवारों से भी नोटों की गड्डियां निकली थी. अधिकारी और नेता दोनों मिलकर किस प्रकार देश को चूना लगा रहे हैं यह भी कई बार साबित हो चुका है. अकेले छत्तीसगढ़ में एक आलोक अग्रवाल नहीं बल्कि डीके दीवान, बीडी वैष्णव, अशोक कुमार नगपुरे, राजेश कुमार गुप्ता जैसे कई लोग हैं जिन्होंने देश की आजादी के बाद के वर्षों में पैदा

सड़क के बॉक्स में भी पुलिस वाट्सअप में भी पुलिस... देखते हैं कैसे बचते हैं क्रिमिनल?

सड़क के बॉक्स में भी पुलिस वाट्सअप में भी पुलिस... देखते हैं कैसे बचते हैं क्रिमिनल? हम हमारे सामने होने वाले कई अपराधों पर आंखें मूंद लेते हैं, इसके पीछे कारण यही है कि हम क्यों पुलिस के लफड़े में पड़ें या क्यों बेकार बैठे-ठाले कोर्ट जाने की मुसीबत मोल लें? होता यही है कि पुलिस पूछताछ के नाम पर आपके घर तक पहुंच जाती है और सारा मोहल्ला ऐसे ताक-झांक करता है जैसे आपने ही कोई अपराध कर डाला हो. बाद में कोर्ट में गवाही के लिये जाने का लफड़ा अलग. असल में किसी को मदद कर देना या अपने नागरिक कर्तव्य को पूरा करना दोनों ही अपराध बन गया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना के मामले में कदम उठाते हुए कानून में लचीलापन लाया है. दुर्घटना पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने के मामले में आपसे कोई यह नहीं पूछेगा कि आप कौन हंै? आपके पिता का नाम क्या है? और आप कहां के रहने वाले हैं? इसके चलते कुछ लोगों की जान तो बचेगी ऐसी आशा हम कर सकते हैं. अब इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ मेंं राजधानी पुलिस ने अपराध से जूझ रहे लोगों को राहत पहुंचाने का फैसला किया है तद्नुसार शहर में कहीं अपराध हो रहा है? या आपको किसी के कारनामों से शिका

सामाजिक व्यवस्था में मां,बेटी, बहन, पत्नी के रिश्तों पर ग्रहण-दुुष्ट कहर ढाने लगे...!

सामाजिक व्यवस्था में मां,बेटी, majosep23@gmail.com बहन, पत्नी के रिश्तों पर ग्रहण-दुुष्ट कहर ढाने लगे...! जगल में रहने वाले जानवर भी वह कृत्य नहीं करते जो आज इंसान करने लगा है. एक उनतीस साल के लड़के ने अपनी साठ वर्षीय मां को भी नहीं बख्शा उसने उनके साथ बलात्कार किया. यह घटना है उस गुजरात की जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ,लौह पुरूष सरदार पटेल जैसी हस्तियों का जन्म हुआ और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हुए.जिस व्यक्ति ने यह कृत्य किया वह हालाकि गिरफतार कर लिया गया है किन्तु यह इंसान कहलाने लायक भी नहीं है. हैवानियत का नंगा खेल अब हमारे देश में एक प्रवृति बनती जा रही है जिसपर  कानून के लचीलेपन व निकम्मेपन ने हिम्मत देने का काम किया है. साठ सत्तर साल की वृद्वा और दो-तीन साल की बच्चियों तक को  इस एक अरब तीस करोड़ की आबादी वाले देश में चंद हवसी राक्षस अपनी वासना का शिकार बना रहे हैं और हमारा कानून बेबस अदालतों में इन राक्षसों के बचाव  में बहस कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है. इस बड़ी आबादी का एक छोटा सा वर्ग अगर अपराधी, दरिन्दा और राक्षसी प्रवृति का है तो उसे फांसी के झूले पर लटका दिया जाये त

पेट्रोल पंपों में ऐसा भी होता है? नोज़ल पर उंगली के जादू से होती है भारी कमाई!

पेट्रोल पंपों में ऐसा भी होता है? नोज़ल पर उंगली के जादू से होती है भारी कमाई! इस समय की सबसे कीमती वस्तुओं में से एक है पेट्रोल-डीजल! देश की अर्थव्यवस्था भी इसी से तय हो रही हैै- पेट्रोल डीजल के भाव बढ़े नहीं कि वस्तुओं के भाव भी बढ़ जाते हैं, यही नहीं यात्रा करना भी महंगा हो जाता है, माल  परिवहन बढ़ जाता है- ऐसे में आम आदमी के जीवन में पेट्रोल-डीजल की क्या अहमियत होती है यह समझाने की जरूरत नहीं है. अगर पेट्रोल-डीजल में पंप से ही डंडी मारने लगे तो मुसीबत सीधे आम जनता के गले पड़़ती है. हाल ही में की गई एक गुप्त जांच-पड़ताल में एक सूत्र ने जो तथ्य एकत्रित किये हैं वह काफी चौंकाने वाले हैं. आप पंप वाले को पेट्रोल-डीजल भराने का पूरा पैसा देते हैं, वह आपके सामने उतना ही पेट्रोल भरता भी है जितना आपने मांगा है, लेकिन क्या ऐसा होता है? वास्तविकता कुछ और है- आपकी गाड़ी में पेट्रोल या डीजल जो भी भरते हैं वह नाप-तौल विभाग और पेट्रोल पंप मालिक के बीच एक एडजस्टमेंट पर चलता है जिसकी जानकारी उपभोक्ता को नहीं रहती. अगर आप सही माप करें तो आपको पता चलेगा कि आप पेट्रोल पंप पर बुरी तरह लुट गये हैं. आपके स

मैगी से ज्यादा खतरनाक है शराब, पूरे देश में प्रतिबंध हो!

मैगी पर पूरे देश भर में बैन लगा दिया- अच्छा किया, चूंकि  सरकार के अनुसार इसमें लेड की मात्रा ज्यादा पाई गई. देश में जगह-जगह छापेमारी की कार्यवाही हो रही है और मैगी को उसके बिल से खोज-खोजकर बाहर निकाला जा रहा है. निकाला भी जाना चाहिये, चूंकि यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये बहुत ही खतरनाक है. ज्यादा लेड मैगी के साथ शरीर के अंदर पहुंच गया तो यह इंसान का बेड़ा गर्क कर देगा. सरकार ने जनता के हित में यह कदम उठाया है, हम इसकी तारीफ करते हैं इसके साथ ही एक सवाल सरकार से करना चाहते हैं कि मैगी पर जिस तरह कार्रवाई की गई ठीक उसी तरह शराब, स्प्रिट, तम्बाकू, गुटखा और अन्य ऐसे ही मादक पदार्थों पर क्यों नहीं की जा रही? शराब पीना स्वास्थ्य के लिये घातक है यह जानते हुए भी उसपर क्यों नहीं प्रतिबंध लगाया जा रहा! चाहे देशी हो या विदेशी दोनों शराब में अल्कोहल की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि किसी के भी लीवर को हानि पहुंचा सकती है और उसे मौत के घाट उतार सकती है. मैगी और शराब दोनों में इस समय कोई अंतर नजर नहीं आ रहा. इतने सालों से लोग मैगी का उपयोग करते आ रहे हैं किसी को उससे तकलीफ नहीं हुई लेकिन शराब पीकर

एक तरफ जंगली जानवर दूसरी तरफ नक्सली, दोनों इंसान की खून के प्यासे!

वैसे इस बार मानसून के पहुंचने में देरी नजरआ रही है लेकिन बारिश के दौरान हर मामले में एहतियात बरतनी जरूरी है विशेषकर मनुष्य के स्वास्थ्य और उनकी जगंली जानवरों व कीड़े -मकोड़े से रक्षा. प्रदेश  में दो महीने के अंदर  जंगली जानवरों के हमले से पन्द्रह से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं.अब आगे आने  वाले समय में एक दूसरी समस्या- सांपों के काटने से हो सकती है. सांप काटने से पीड़ित व्यक्ति के इलाज का क्या एहतियाती प्रबंध सरकार की तरफ से किया गया है यह तो पता नहीं चला लेकिन इस समय एक नजर में छत्तीसगढ़  को देखा जाये तो आम आदमी कहीं भी न सुरक्षित है और न उसे कहीं चैन से जीने दिया जा रहा है.अगर इधर बस्तर तरफ जाओ तो वहां नक्सलवादियों की धूम है वे किसी को चैन  की सांस लेने नहीं दे रहे हैं. सरकार राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान व गला रेतकर हत्या करने वालों के प्रति नरम दिखाई देती है.दूसरी और  कोरबा, जशपुर,रायगढ़,सरगुजा, बिलासपुर और कांकेर में हाथी, भालू, तेन्दुए नक्सलवादियों की भूमिका अदा कर रहे हैं. हाथियों के लिये कोरीडोर जैसी बाते सिर्फ सपना बनकर रह गई है.अप्रैल-मई दो महीने के दौरान वन्य जीवो के हमले

शहर की न प्यास बुझी न स्वच्छ हुआ, हां टैक्स जरूर बढ़ा लोग दुखी जरूर हैं पांच माह में!

शहर प्यासा है, नलों में पानी नहीं है, टैंकर पहुंच नहीं रहे. जहां सार्वजनिक नल लगे हैं वहां लोगों की लाइन लगी हुई है, जहां टैंकर पहुंचना चाहिये वहां नहीं पहुंच रहे हैं. सौदर्य के नाम पर सड़कों पर लगाये गये पौधे पानी नहीं मिलने से सूख रहे हैं. विकास कार्य ठप्प पड़े हैं, कई वार्डों में सफाई नहीं हो रही. आउटर की कालोनियों में तो बुरा हाल है जहां न स्ट्रीट लाइट जलते हैं और न सफाई होती है. अवैध निर्माण का बोलबाला है, निगम का कोई भी  जिम्मेदार कर्मचारी वार्डों में नजर नहीं आता जिससे लोग अपनी शिकायत कर सकें. कचरे के ढेर से निकलने वाली बदबू से लोग परेशान हैं-आखिर इन सब समस्याओं के हल करने की जिम्मेदारी किसकी है? रायपुर में नये नगर निगम का गठन हुए पांच माह बीत गये. महापौर जनता के बीच नजर नहीं आते. पूर्व के कार्यकाल की तुलना कर देखें तो वर्तमान का कार्य पूरी तरह से शून्य नजर आ रहा है. जो घोषणाएं समयबद्ध कार्यक्रमानुसार पूर्ण करने की बात कही जा रही है वह अपनी तिथि छोड़कर काफी आगे निकल जाती है लेकिन उसका संज्ञान लेने वाला कोई नहीं. एक दिलचस्प किन्तु गंभीर स्थिति निर्मित हो गई है. आखिर जनता क्या करें

नान घोटाला कांड के जाल में फंसी बड़ी मछलियां फिसल गई या फिसलाकर बाहर कर दिया?

यूं ही एसीबी  एंटी करप्शन ब्यूरो या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरों के कार्यो पर किसी का विश्वास नहीं रहा अब जब उसने विश्वास जीतने के लिये एक बड़ा मामला अदालत में सौपने की कोशिश की तो उसमें भी सरकार चट्टान बनकर सामने हैं. नान घोटाला छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले की तरह चर्चा में रहा है. नान घोटाले में लिप्त सत्रह आरोपियों के खिलाफ तो छत्तीसगढ़ शासन ने अभियोग पत्र पेश करने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी लेकिन इस करोड़ों  रूपये के घोटाले में लिप्त दो प्रमुख कड़ियों को यह कहते हुए अलग कर दिया कि तकनीकी कारणवश उनपर कार्रवाई की अभी अनुमति नहीं दी जा सकती. सरकार  को आम लोगों के समक्ष यह स्पष्ट करना चाहिये कि इन आईएएस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने  में ऐसे कौन से तकनीकी कारण है जिसके चलते उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. जब देश के प्रधानमंत्री को कटघरे में लाया जा सकता है तो यह कौन से तीस मारखां हैं जिन्हें बख्शने का प्रयास किया जा रहा है? क्यों नहीं और  लोगों के साथ  इन लोगों का चालान भी अदालत मेें पेश नहीं किया जाता ताकि दूध का दूध और पानी का पानी ह हो जाय तथा

गुण्डों को गोद में बिठाकर कब तक पूछताछ करते रहोगे? कुछ तो मप्र पुलिस से सीखो छग पुलिस!

गुण्डों को गोद में बिठाकर कब तक पूछताछ करते रहोगे? कुछ तो मप्र पुलिस से सीखो छग पुलिस! 'लातों के भूत बातों से नहीं मानतेÓ यह बहुत पुरानी कहावत है लेकिन इस कहावत का प्रयोग इन दिनों हम नहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं. सड़क पर पिटते देख किसी को अच्छा नहीं लगता लेकिन अगर यह कोई चोर, लुटेरा, गुण्डागर्दी करने वाला हो तो हर कोई उसे अपनी  ओर से भी दो थप्पड़ देना चाहता है. इन दिनों मध्यप्रदेश पुलिस यही कर रही है. गुण्डागर्दी करने वालों को उनके घर से निकालकर उनके अपने मोहल्ले में ही सरेआम पीट रही है. दया जरूर आती है लेकिन ऐसे लोगों के कृत्य सुने तो कोई ऐसा नहीं जो इनके बचाव में उतरे लेकिन कुछ लोग तो जैसे ऐसे लोगों का भी ठेका ले रखे हैं. उधर पुलिस ने पीटा नहीं तो खड़े हो जाते हैं आपने उन्हें क्यों पीटा? यह तो मनुष्यों के अधिकार का हनन है. शिवराज सिंह ने इन्हीं लोगों को जवाब दिया है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते. हम भी इस अभियान का पूर्ण समर्थन करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार से भी अनुरोध करते हैं कि अपराधियों के साथ किसी प्रकार की दया की जरूरत नहीं, वे अब इस लायक र