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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुर्खियों का एक दिन-'मरे चौदह सौ , 'नक्सलियों पर नहीं होगा सेना का हमला... और गले मिले 'मूणत-बृज!

सुर्खियों का एक दिन-'मरे चौदह सौ , 'नक्सलियों पर नहीं होगा सेना का हमला... और गले मिले 'मूणत-बृज! देश का पारा इस समय सातवें आसमान पर है- अब तक भीषण गर्मी से करीब 1400 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. यह मुसीबत भी किसी भूकंप से कम नहीं है. दो चार दिन बाद अच्छे दिन आने की भी खबर है. मानसून तीस मई को केरल पहुंच जायेगा, ऐसा मौसम विभाग वाले ताल ठोककर कह रहे हैं. वैसे यह भी कहा जा रहा है कि अल नीनो की सक्रियता के कारण मानसून आने में देरी हो सकती है. बहरहाल भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर बुधवार को रायपुर में थे उनने यहां आने के बाद प्रमुख बात यह कही कि नक्सलियों से निपटने के लिये सेना का उपयोग नहीं किया जायेगा. यह बात पूर्व रक्षा मंत्री व अब मंत्री वीपी सिंह भी कह चुके हैं. जबकि यूपीए सरकार में रक्षा मंत्री ए. के. एंटोनी ने भी यह स्पष्ट किया था कि सेना का उपयोग नहीं किया जायेगा. सवाल अब यहां यह उठ रहा है कि सरकार किस फार्मूर्ले से इस समस्या का समाधान निकालने जा रही है? यह भी  सवाल है कि क्या समस्या सदैव ऐसी ही बनी रहेगी? मुख्यमंत्री  डा. रमन सिंह भी नक्सलियों को माटी प

बुरे और अच्छे के पीछे पिसते 'हम,आखिर कब तक इंतजार करना होगा?

अ च्छे और बुरे की लड़ाई के बीच आज एक और खबर आई कि अगले महीने से बिजली भी सरकार की मर्जी पर चलेगी अर्थात बिजली का बिल भी ग्यारह प्रतिशत बढ़ाकर देना होगा. पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने के बाद फिर दाम पुराने ढर्रे पर याने  यूपीए सरकार के लेवल तक पहुंच गया है जबकि रसोई से दाल गायब हो चुकी है फिर यह चाहे तुअर  की दाल हो या चने की दाल, सबका भाव आसमान  छू रहा है. हम एक आम आदमी की तरह किसी पार्टी पालिटिक्स को छोड़कर देखें तो क्या हमें उस और इसमें कोई फर्क पिछले एक साल में दिखा? दोनों लगभग एक जैसे हैं. एक कम बोलता था दूसरा ज्यादा बोलता है-ऐसे माहौल में हमने आजादी के एक साल और काट दिये. इस वर्ष के शुरूआती दौर मेें पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए तो लगा वास्तव में अच्छे दिन आने  शुरू हो गये, बुरे दिन वालों की बोलती बंद हो गई  लेकिन बजट आते तक सारी आशाओं पर पानी फिरने लगे फिर जहां सपने दिखाने की झडी  लग गई तो यहां से वहां जाने का किराया  बढाकर हमारे आने जाने  को भी सीमित कर दिया. रेल,बस,प्लेन के किराये में तो बढौत्तरी हुई ही साथ ही खाना खाने नहाने धोने तक में सर्विस टैक्स बढ़ा दिया गया. अच्छे या बुरे दिन

एक भीषण सड़क हादसा, जिसने पूरे राजधानी की आंखों को छलछला दिया!

क्या हमारी सड़कें इस लायक है कि यहां एसयूवी जैसी गाड़ियां सडकों पर 130 से 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकें?. टेड़ी-मेड़ी, उलझी और गड्ढेनुमा सड़कों पर कभी कुत्ता तो कभी अन्य पशु जहां टपक पड़ते हैं. ऐसे में गाड़ी अच्छे से अच्छे ड्रायवर के हाथों से नियंत्रण खोए बिना नहीं रह सकती. राजधानी रायपुर में शनिवार रात हुए दर्दनाक हादसे ने शहर के चार नौजवानों को जहां हमसे छीन लिया वहीं करीब पांच अभी भी मौत से संघर्ष कर रहे हैं. दुर्घटना का कारण अभी पुलिस जांच में है फिर भी जो प्राथमिक तौर  पर अनुमान लगाया जा सकता है वह यह कि एसयूवी गाड़ी जो तेज रफ्तार गाड़ियों में से एक है, हादसे के वक्त 130 से 160 किलोमीटर की रफ्तार पर रही होगी. वैसे भी लम्बे रूट पर ऐसे कारों के लिये कोई बड़ी रफ्तार नहीं है, आम तौर पर आजकल छोटी-मोटी गाड़ियां ही सौ किलोमीटर से ऊपर की रफ्तार पर दौड़ना आम बात है फिर अगर खाली सड़क मिल जाये तो रफ्तार किसी भी हद तक जा सकती है-इस बीच गाड़ी में सफर करने वाले युवा हो तो फिर क्या? मस्ती- गाने, हंसी, ठिठौली में लोग यह भी भूल जाते हैं कि सड़क पर हालात क्या हैं. खाली मिलने पर रफ्तार और भी तेज हो स

पठारीडीह की घटना के लिये कौन जिम्मेदार?पुलिस की सक्रियता घटना के बाद ही क्यों?

पठारीडीह की घटना के लिये कौन जिम्मेदार?पुलिस की सक्रियता घटना के बाद ही क्यों? एस पी ओ.पी.पाल उरला के पठारीडीह की घटना के बाद अब भले ही यह कहें कि कानून हाथ में लेने की कोई भी कार्रवाही पुलिस बर्दाश्त नहीं करेगी लेकिन सवाल यह उठता है कि उरला के लोगों को कानून हाथ में लेने प्रेरित  किसने किया? घटना के सबंन्ध  में बताया जाता है कि पिछले कम से कम तीन सप्ताह से उरला और राजधानी रायपुर के आसपास आउटर में कुछ अज्ञात लोग बच्चा पकड़ने  में लगे हुए हैं-निवासियों का आरोप है कि यह बाहरी  लोग हैं जो घ्रेकी कर बच्चों को पकड़़़ रहे हैं.पुलिस से कई बार शिकायत करने के बाद भी कोईर् संज्ञान इस मामले में नहीं लिया गया यहां तक कि इस घटना के पूर्व भी कुछ संदिग्ध लोगों की पिटाई नागरिकों ने संदेह के आधार पर की लेकिन इसके बाद भी जब पुलिस ने किसी को गिरफतार नहीं किया तो आम लोगों ने अपनी सुरक्षा का दायित्व खुद सम्हाला. वे डंडे लेकर गली- गली में घूमने लगे. संंदिग्ध लोगों से पूछताछ भी की गई और संदिग्ध माने जाने पर उसकी पिटाई भी की गई.यह स्वाभाविक प्रक्रिया थी. जो काम पुलिस को घटना या अफवाह की खबर मिलते ही खुद ह

अरूणा की सांसें बयालीस साल बाद रूकीं... आज सड़क पर चलने वाली हर महिला उसी की तरह मुसीबत में!

अरूणा की सांसें बयालीस साल बाद रूकीं... आज सड़क पर चलने वाली हर महिला उसी की तरह मुसीबत में! 'दुबई भी हमारे जैसा एक देश है, वहां एक तो चोरी नहीं होती दूसरी महिलाएं बेधड़क होकर किसी भी समय सड़कों पर घूमती हैं, उन्हें किसी प्रकार का कोई खतरा नहींÓ अगर किसी ने महिला से छेड़छाड़ की तो उसकी सजा भी इतनी कठोर होती है कि लोगों की रूह कांप जाये. हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान महिलाओं की सुरक्षा के बहुत से वादे किये थे-कुछ कानूनों में बदलाव भी हुए लेकिन अभी भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. सड़कों पर एक खौफ बना रहता है कि कब किसके साथ क्या हो जाये. कानून इतना लचीला है कि अपराध करने वाला पांच-सात साल की सजा भुगतने के बाद छुट्टा घूमता है और पीड़िता जिंदगीभर का दर्द झेलती है. मुम्बई की नर्स अरूणा शानबाग बयालीस वर्षों तक ऐसे ही मंजर से गुजरकर इस सोमवार को दुनिया से रूखसत कर गईं. लेकिन उसको इस हालत में पहुंचाने वाला वार्ड ब्वॉय सिर्फ सात साल सलाखों के पीछे रहने के बाद आज किसी छद्म नाम से हंसी-खुशी की जिंदगी बसर कर रहा होगा. अरूणा की कहानी जो भी सुनता है उसकी रूह कांप जाती हैं, आंखो

ब्लड पे्रशर बढ़ाने वाला बिजली बिल अब लोगों के हार्ट पर भी आघात करने लगा!

ब्लड पे्रशर बढ़ाने वाला बिजली बिल अब लोगों के हार्ट पर भी आघात करने लगा! एक फुट दो इंच लम्बा होता है छत्तीसगढ़ के सीपीडीसीएल (छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड) का बिल! जो हर महीने उपभोक्ताओं को आन द स्पॉट परोसा जाता है. इसको देखने के बाद कइयों का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है तो कइयों के दिल की धड़कन रूक जाती है. कई इस चिंता में खो जाते हैं कि आखिर इस बिल को पटाने के बाद मेरे परिवार का क्या होगा? कैसे बच्चे की फीस पटाई जायेगी, कैसे घर का किराया अदा किया जायेगा और कैसे बाबूजी के लिये दवा का प्रबंध किया जायेगा? क्या आप उपभोक्ताओं में से कोई सीपीडीसीएल द्वारा जारी किये जाने वाले बिल में से शुद्ध देयक और सकल देयक के अलावा आपसे वसूल किये जा रहे किसी बिन्दू का सही विश्लेषण कर सकता है? बिल उपभोक्ता को देने का पूरा तरीका तानाशाही, लालफीताशाही से भरपूर और त्रुटिपूर्ण रहता है जिसको विद्युत कंपनी का कोई अधिकारी अथवा इसे बनाने वाला कर्मचारी ही समझ सकता है. आम उपभोक्ताओं के लिये मुसीबत बना यह बिल आगे के दिनों में और आप सभी के लिये और मुसीबत बन सकता है, चूंकि कंपनी ने तय कर लिया है कि वह अपने उपभोक्त

छेडछाड की बलि चढ़ी नेहा-

रायपुर बुधवार दिनांक 8 दिसबंर 2010 छेडछाड की बलि चढ़ी नेहा- क्या अंतिम उपाय 'मौत ही रह गया ? यह अकेले नेहा भाटिया की कहानी नहीं हैं, संपूर्ण छत्तीसगढ़ में स्कूली छात्राओं से छेडख़ानी और उन्हें प्रताडि़त करना एक आम बात हो गई है। छेड़छाड़ से दुखी नेहा ने अपने शरीर को आग के हवाले कर दिया था। मंगलवार को नेहा ने प्राण त्याग दिये। बहुत सी छात्राएं छेड़छाड़ को बर्दाश्त कर इसकी शिकायत इसलिये नहीं करती। चूंकि उन्हें डर लगा रहता है कि परिवार के लोग इसके पीछे पड़ कर बड़ी मुसीबत में पड़ जायेंगे। पुलिस में जाने से छेड़छाड़ पीडि़त महिला तो डरती ही है, उसका परिवार भी ऐसा नहीं करना चाहता। जबकि नेहा जैसी कई ऐसी छात्राएं भी हैं, जो अपमान को गंभीरता से लेकर उसे मन ही मन बड़ा कृत्य करने के लिये बाध्य हो जाती है। क्या स्कूल प्रबंधन इस मामले में बहुत हद तक दोषी नहीं है, जो ऐसी घटनओं की अनदेखी करता है? क्या छेड़छाड़ पीडि़तों के लिये यही एक अंतिम उपाय है कि वह मौत को गले लगा ले? नेहा कांड से पूर्व छत्तीसगढ़ के छोर सरगुजा से एक खबर आई कि एक युवक की लड़की के भाई और साथियों ने जमकर पिटाई कर दी, चूंकि वह

आरटीओं की आग में भूतो का काम था तो यहां कहीं जिंदा भ्रष्ट भूत तो सक्रिय नहीं हो गये?

आरटीओं की आग में भूतो का काम था तो यहां कहीं जिंदा भ्रष्ट भूत तो सक्रिय नहीं हो गये? क्या राख से सबूत निकल पायेगा? जिस तरह से सिंचाई  विभाग की  फाइले  जली  है उसको देखने से तो  ऐसा लगता नहीं कि अब कोई सबूत बचा होगा.राजधानी रायपुर में महानदी गोदावरी कछार परियोजना का एक पूरा हाल इस विभाग की पुरानी फाइलों से अटा पड़ा था, मंगलवार-बुधवार को यह गोदाम धू -धू कर जलने लगा जिसने देखा वह यही कहता रहा कि घोटालेबाजो ने सबूत मिटाने के लिये जला दिया. लोगों के संदेह की पुष्टि इसी से होती है कि कुछ लोगों ने इस दफतर के पास से आते जाते समय धुआं उठते देख यहां आकर इस हाल को जलते देखा था,यह हाल आफिस के काफी पीछे एकांत स्थान पर स्थित है. बताते हैं वहां लोगों ने देखा कि आग लगने के बाद भी मौजूद कर्मचारियों में कोई ऐसी प्रतिक्रिया नहीं थी जो आग लगने के बाद अक्सर देखने को मिलती है अर्थात पानी लेकर दौड़ना, रेत से बुझाने का प्रयास -इधर उधर दौड़ लगाना, फायर ब्रिगेड को फोन करके बुलाना आदि बल्कि वहां तैनात कुछ कर्मचारी तो ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसा उन्हें मालूम है कि आग लग गई है ठीक वैसे ही जैसे हम कचरे के ढेर में आ

कोई बड़़ा अपराधी तो कोईछोटा, किसी को ऊंची सजा के साथ ऊंवी सुविधा भी.क्यों है ऐसा?

कोई बड़़ा अपराधी तो कोईछोटा, किसी को ऊंची सजा के साथ ऊंवी सुविधा भी.क्यों है ऐसा? अपराध घटित हुआ सन् 2002 में! फैसला आया सन् 2015 में! फैसले की घोषणा हुई सवेरे 11.15 पर! सजा सुनाई गई शाम 1.15 पर ! अभियोजन पक्ष जमानत लेने हाई कोर्ट की तरफ दौड़ा  दोपहर बाद 3 बजकर पन्द्रह मिनिट पर! जमानत पर सुनवाई हुई शाम चार बजे! जमानत की घोषणा हुई शाम 4.50 बजे! कौन कहता है भारतीय न्यायव्यवस्था काबिल नहीं है? लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सामान्य व्यक्ति इस ढंग का न्याय प्राप्त कर सकता है? न्यायपालिका का पूर्ण सम्मान करते हुए हम अपनी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कुछ सवाल उठाना चाहते हैं कि दोहरी व्यवस्था को क्यों कायम किये हुए हैं?क्या आज हमारी व्यवस्था-सामान्य व्यक्ति और प्रभावशाली, धनवान, बाहुबलियो के बीच अलग अलग बट नहीं गई है? कानून में विभिन्नता क्यों हैं? एक सामान्य व्यक्ति अगर किसी ऐसे मामले में फंसता है तो उसका फैसला आने में देरी नहीं होती उसे तत्काल काल कोठरी के पीछे भेज दिया जाता किन्तु बड़े व पैसे लोग इस स्वतंत्र भारत में अपने  प्रभाव का भरूपूर  उपयोग करने लगे हैं.संविधान प्रदत्त समाजवा

ऐसी है हमारी शिक्षा नीति-प्रथम वर्ग, इंजीनियर,डाक्टर,द्वितीय वर्ग प्रशासक, तृतीय वर्ग राजनीति और चौथा-पांचवा....?

ऐसी है हमारी शिक्षा नीति-प्रथम वर्ग, इंजीनियर,डाक्टर,द्वितीय वर्ग प्रशासक, तृतीय वर्ग राजनीति और चौथा-पांचवा....? ''तेरे पिताजी क्या करते हेैं? मैरे पिताजी तो डाक्टर हैं और तेरे-मैरे पिता तो सरकारी कार्यालय में बाबू हैं....तो तूू बड़ा होकर बाबू बनेगा और मैं डाक्टर.ÓÓ-बच्चों के बीच स्कूली शिक्षा के दौरान अक्सर इस तरह की बात होती रहती है जिसमें पढ़ते पढ़ते ही भविष्य को तय कर दिया जाता है कि कौन बड़ा होकर क्या बनेगा और कौन किस व्यवसाय में लगेगा. सड़सठ साल की शिक्षा नीति में आज तक कोई बदलाव नहीं आ रहा है. कहीं यह प्रयास नहीं किया गया कि जो नीचे है या मध्यम स्तर पर है उसे ऐसा बनाया जाये कि समानता स्थापित हो सके.अगर रिक्शा चलाने वाले का लड़का या किसी बर्तन मांजने वाली बाई का बेटा  अथवा बेटी भी अच्छे नम्बरों  से पास हो तो उसे भी ऐसी परिस्थिति मिलनी चाहिये कि वह आईएएस आईपीएस बनजाये किन्तु ऐसे बच्चों के सामने सबसे बड़ी बाधा उनकी आर्थिक स्थिति आती है जिसके चलते पूरी योग्यता धरे रह जाती हे ओर वे या तो किसी संस्थान  में बाबूगिरी करते नजर आते  है या फिर शिक्षक बन किसी स्कूल में छड़ी लेकर खड़े

शाबाश बेटियों...तुम्हारी जागृता ही समाज को राह दिखायेगी, शराब, जुएं से मुक्ति दिलाने अभी और कठोर बनना होगा!

शाबाश बेटियों...तुम्हारी जागृता ही समाज को राह दिखायेगी, शराब, जुएं से मुक्ति दिलाने अभी और कठोर बनना होगा! कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई देने लगते हैं- इस कहावत में जहां हकीकत है वहीं अब आजकल की बेटियों को कपूत के पांव शादी की दहलीज पर ही दिखाई देने लगे हैं- इससे एक अ'छी बात यह होगी कि भविष्य में गृह कलह, तलाक, दहेज हत्या, आत्महत्या और अन्य बुराइयों से बेटियां बच सकें गी. छत्तीसगढ़ की उर्मिला, रेखा जैसी बेटियों ने जो मिसाल कायम की है वह अन्य उन लड़कियों के लिये भी प्रेरणादायक है जो किसी युवक के साथ अपना जीवन संवारने की तैयारी में हैं. छत्तीसगढ़ में इस दो महीने के अंतराल में चार बेटियों ने अपने घर की दहलीज तक पहुंचे दुल्हे को शराब के कारण वापस भेज चुकी हैं. यह उस समाज के लिये एक संदेश है जो खुशियां मनाने के लिये शराब को अपना साथी चुनते हैं. वैवाहिक जीवन का शुरूआती दौर आनंददायक है, लेकिन उसमें दरार तब पड़ जाती है जब पता चलता है कि युवक या युवती दोनों में से कोई एक आशा, प्रत्याशा के अनुरूप नहीं बैठता, मसलन पुरुष शराबी है, गे है अथवा लड़की के चरित्र में खामियां है, सारी बात