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कब मिलेगा हर आदमी को समान अधिकार, कब अंत होगा अंग्रेजों की बनाई गई परंपरागत व्यवस्था का?

हम जानते हैं कि संविधान में लिखे गये कुछ अंशों को आसानी से बदला नहीं जा सकता लेकिन यह भी तो सत्य है कि हमने जिस संविधान की रचना की है उसमें लिखी बातों को जो हमें अच्छी नहीं लगती बदल देना चाहिये. स्वतंत्रता के सडसठ सालों बाद भी हम अंग्रेजों के बनाये नियमों और उनकी गलतियों को न केवल अंगीकार कर रहे हैं बल्कि कुछ लोगों को देश के गरीब, मध्यमवर्ग और अमीर की माली हालत के विपरीत अंग्रेजों के समय के ठाठ बाट और ऐशोआराम की जिंदगी में जीने का मौका भी प्रदान कर रहे हैं. बात अगर देश में लोकतांत्रिक प्रणाली से शुरू करें तो यहंा जनता द्वारा निर्वाचित प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल को कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के पूरे अधिकार है. इसी प्रकार राज्यों में मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल को भी उसी प्रकार के अधिकार है जैसा केन्द्र में प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल को हैं.देश की न्यायव्यवस्था को चलाने के लिये उसकी न्यायपालिका है जो संपूर्ण देश व प्रदेश में न्यायिक मामलों का समय पर निर्वहन करती है. अब सवाल उठता है इस गरीब देश में मौजूद व हमारे द्वारा अंग्रेेजों के समय प्रदत्त उन संवैधानिक पदों के बारे में