बस अब ज्यादा इंतजार नहीं.... आज एक्जिट पोल से कुछ तो स्थिति स्पष्ट होगी? गठजोड़ में मोदी को 'सिंहासनÓ के करीब जाने से रोकने की कोशिशें भी!


अब ज्यादा दिन नहीं बचे,सिर्फ चार दिन बाद यह स्पष्ट हो जायेेगा कि देश के सिंहासन पर कौन बैठेगा, लेकिन इससे पूर्व आज शाम एक्जिट पोल लोगों की जिज्ञासा को बहुत हद तक कम कर देगा. इस बीच जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला है वह भी कम इंन्टे्रस्टिंग नहीं है. भाजपा जहां स्पष्ट बहुमत का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस जोड़-तोड़ में हैं कि किसी प्रकार केन्द्र में भाजपा की सरकार का उदय न हो. इस जोड़ तोड़ को देख भाजपा भी अपना इंतजाम करने में लगी है उसकी नजर ममता, मोदी और पटनायक पर है, भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि वह किसी प्रकार इन धुरन्धर नेताओं को मनाकर अपने साथ नहीं मिला सकती लेकिन 'साम धाम दण्ड भेदÓ का तरीका अख्तियार करने में भी वह पीछे नहीं है शायद यही वजह है कि सीबीआई को भी सत्ता पाने के लिये अपना मोहरा बनाने की बात चल रही है. इधर आम आदमी पार्टी की क्या भूमिका होगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका दावा है कि वह मोदी और राहुल को सत्ता में आने से रोकने के लिये तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में मदद करेगी हालाकि इस मामले में आप के बीच मतभेद है किन्तु राजनीति में सबकुछ हो सकता है.कांग्रेस अभी इस हाल में भी दावे तो बहुत कर रही है लेकिन अंदर ही अंदर वह भी भाजपा की तरह ही डरी हुई है, शायद यही कारण है कि उसने बहुमत न आने की स्थिति में तीसरे मोर्चे का साथ देने की बात कही है लेकिन यहां भी पेच है कांग्रेस का समर्थन लेने के लिये कुछ विपक्षी नेता तैयार नहीं हैं.
आम आदमी पार्टी [आप] भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए तीसरे मोर्चे को समर्थन दे सकती हैं. आप के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कहा कि अगर 16 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद तीसरे मोर्चे की सरकार के लिए पहल होती है तो पार्टी उसे मुद्दों पर आधारित समर्थन की पेशकश पर विचार कर सकती है.इस बयान का अरविन्द केजरीवाल ने खण्डन किया है. पूर्व में आये सर्वेेक्षणों में चौकाने वाली बात यही थी कि विपक्ष या तीसरा मोर्चा जो भी बनेगा वह अहम भूमिका निभाने की स्थिति में है तथा वह भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाली ताकतों के साथ में आने की संभावना पर बातचीत तेज कर सकती है. सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और अन्य कई नेताओं ने इस तरह की संभावना जताई थी।  सोलहवीं लोकसभा में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में सरकार बनाने के लिए नए साथियों की तलाश में सीबीआई अहम भूमिका अदा कर सकती है। मायावती, ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे तीन बड़े क्षत्रप सीबीआई के निशाने पर हैं और उनके लिए सत्ताधारी दल के साथ टकराव आसान नहीं होगा।
ममता बनर्जी की तमाम कोशिशों के बावजूद शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिटफंड घोटाले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी. इस घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेता फंसे हुए हैं और जांच की आंच मुख्यमंत्री तक पहुंचने की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता.इस घोटाले का दायरा पश्चिम बंगाल की सीमा से बाहर असम और ओडिशा तक फैला हुआ है. अब तक घोटाले की जांच बीजू जनता दल के नेताओं तक भले ही नहीं पहुंची हो, लेकिन सीबीआई जांच की स्थिति में इसकी सारी परते खुल सकती है. जाहिर है ममता और नवीन पटनायक के लिए घोटाले की आंच से अपने कुनबे को सुरक्षित बचाने की मजबूरी होगी. मोदी के खिलाफ ममता बनर्जी की तमाम तल्ख टिप्पणियों के बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों  का मानना है कि केंद्र सरकार से सीधा टकराव लेना उनके लिए संभव नहीं होगा. इसी प्रकार पिछले साल सुप्रीम कोर्ट से एफआईआर निरस्त होने के बाद मायावती एक तरह से सीबीआई के चंगुल से बाहर निकल आई हैं, लेकिन आय से अधिक संपत्ति मामले को दोबारा खोलने की सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका नए सिरे से उनकी मुश्किलें बढ़ा सकती है। इस मामले पर 15 जुलाई को सुनवाई होनी है. फिलहाल सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को एफआइआर निरस्त होने के बाद पुरानेे सबूतों और बयानों के अप्रासंगिक होने का तर्क दिया, लेकिन अदालत के आदेश के बाद उसके पास जांच के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा.यहां यह भी इंगित करना होगा कि कि सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट में लगातार मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के पुख्ता सबूत होने और इस सिलसिले में चार्जशीट तैयार होने का दावा करती रही है कि हमारा आंदोलन आम आदमी के लिए है और निश्चित रूप से मुद्दा आधारित समर्थन होगा. हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा कि ईमानदार राजनीति की आवाज संसद में पहुंचे फिर यह मायने नहीं रखता कि हमें 10 सीटें मिलती हैं या 30 सीटें। आप ने 422 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और केजरीवाल ने दावा किया था कि उनकी पार्टी कम से कम 100 सीटों पर जीत दर्ज करेगी.
छह चरणों के मतदान के बाद कांग्रेस ने यह मत बनाया था कि देश की सत्ता उसके हाथ से जा रही है. सत्ता का फायदा भाजपा को न मिले इसके लिए उसने चुनाव बाद देश में तीसरे मोर्चे की सरकार बनवाने के संकेत भी दिये. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण के बाद विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि बहुमत न मिलने पर कांग्रेस तीसरे मोर्चे की सरकार का समर्थन करने पर विचार कर सकती है. मोदी को भाजपा के लिए ही बड़ी समस्या करार देते हुए खुर्शीद ने कहा था कि जब भगवान (राम मंदिर आंदोलन) की लहर कांग्रेस को नहीं रोक पाई तो मोदी की लहर क्या चीज है. इसलिए केंद्र में भाजपा की सरकार बनने की संभावना नहीं है. चुनाव बाद कांग्रेस सरकार बनाने के लिए तीसरे मोर्चे का समर्थन कर सकती है. इतना ही नहीं वह सरकार बनाने के लिए तीसरे मोर्चे के दलों का समर्थन भी ले सकती है. माकपा ने भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए चुनाव बाद सेक्युलर फ्रंट बनाने के संकेत दिए हैं.माकपा महासचिव प्रकाश कारत की माने तो  चुनाव के बाद सेक्युलर फ्रंट बन सकता है.  इसके लिए उन्हें कांग्रेस के समर्थन से कोई ऐतराज नहीं जबकि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और रक्षा मंत्री ए.के एंटनी ने केरल की सभा में वामदलों को कांग्रेस के नेतृत्व में सेक्युलर फ्रंट के तहत एकजुट होने की अपील की थी.कारत का दावा है कि चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी. एंटनी के बयान पर उनका मत है कि चुनाव के बाद एंटनी और कांग्रेस के सामने एक ही रास्ता होगा कि वह सेक्युलर मोर्चे को समर्थन दें, भाजपा को सरकार से दूर रखने के लिए सेक्युलर मोर्चे में कांग्रेस के समर्थन से कोई आपत्ति नहीं है.मोर्चे के नेतृत्व का फैसला चुनाव के बाद तय किया जा सकता है। 1996 में ऐसे ही हालात में संयुक्त मोर्चा बना था और नेता चुना गया था।

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