'इनमे से कोई नहीं के बाद भी एक आप्शन है,सरकार को चिंता नहीं


आप अपना वोट जरूर दे कि अपील आसान लेकिन वोट किसे दें?



हालाकि अगला चुनाव शायद जल्द आ जाय या फिर पांच साल पूरे करे लेकिन इस चुनाव ने फिर कई सवालों को यूं ही छोड़ दिया है?सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, सुपर स्टार आमिर खान सहित कई प्रमुख हस्तियों और सरकारी विज्ञापनों ने जनता को इस चुनाव में जागृत करने का प्रयास किया लेकिन वोटों का प्रतिशत कहीं शत प्रतिशत नहीं रहा. लगातार वोट के प्रतिशत में कमी या लोगों मे वोट न देने की प्रवृत्ति पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो यहां तक कह दिया कि जो वोट न दे उसपर कानूनी कार्रवाही करनी चाहिये. चुनाव आयोग की सिफारिश पर जिस नोटा को संवैधानिक अधिकार में शामिल कराने में राजनीतिज्ञों और सरकार की अडगेंबाजी के कारण ग्यारह साल का समय लग गया वे वोट न डालने पर सजा की बात किस मुंह से करते हैं? भारत का नागरिक होने का हमें गर्व है और एक सच्चे नागरिक के तौर पर हम भी वोट देना चाहते हैं लेकिन किसे? वे जिन्हें पार्टियां चुनाव मैदान में उतारती हैं?जिनके खिलाफ कई किस्म के अपराध,आरोप और मामले दर्ज हैं या उन्हें जो चुनकर जाने के बाद संसद का समय बर्बाद क रते हैं या उन्हें जो चाकू लहराते हैं,गर्भग्रह तक पहुंच जाते हैं, तोड़फोड़ करते हैं या उन्हें वे जो ससंद में जाकर अपने क्षेत्र के बारे में एक शब्द नहीं बोलते अथवा वे जो मंहगाई, भ्रष्ष्टाचार,आर्थिक अपराध ,सामाजिक अपराध और अन्य बुराइयों के लिये जिम्मेदार हैं.क्यों हमारे जमीर को हर पांच साल में यूं ही ललकारा जाता है? वोट देना मजबूरी बना दिया गया लेकिन कोई विकल्प अच्छे व्यक्ति का नहीं दिया. क्यो नहीं मतदाताओं को भी प्रत्याशी बनने की पात्रता की तरह का नियम बनाया जाता? मतदान को अगर लोकतंत्र के मंदिर की पूजा समझा जाता है तो उस मंदिर में चढ़ने वाले फूल भी उतने ही पवित्र होनेे चाहिये.यह नहीं कि कोई शराब पाकर वोट डालने जा रहा है, तो कोई कम्बल, व पैसे खाकर मंदिर को अपवित्र कर रहा है.वोट डालने की वकालत करने वाले हमे बताये अगर अस्सी प्रतिशत वोट पडता है तो वह वोट कैसे पड़ते है? उसे पाने के लिये प्रत्याशी प्रचार- संपर्क के साथ क्या क्या जतन करता है?मसलन शराब, पैसा,कंबल, बाहुबल के बाद जब जीतता है तो स्वाभाविक है कि वह मतदाताओ की जेब से अपने खर्च को सूद समेत वसूल भी लेता है?वोट के प्रतिशत में बढौत्तरी उन नौजवानों की ह,ै जो अभी देश की राजनीति को पूरी तरह समझ नहीं पाये हैं और जिज्ञासा कर वोट डाल रहे हैं.हकीकत यह है कि एक हबहुत बड़ा समुदाय आज भी इस स्थिति में वोट डालना ही नहीं चाहता.सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में उम्मीदवारों को रिजेक्ट करने का अधिकार दिया है कोर्ट ने चुनाव आयोग को वोटरों को ईवीएम में 'इनमें से कोई नहींÓ का विकल्प देने का निर्देश दिया. चुनाव सुधार की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मील का पत्थर माना जा रहा है लेकिन इसमें भी गड़बड़ी की संभावना बनी हुई है.ऐसे वोट को सत्तारूढ़ पार्टियों द्वारा अपने खाते में करने की शिकायतें मिल रही है. सभी को रिजेक्ट का अधिकार पिछले विधानसभा चुनाव से लागू हो चुका है.गौरतलब है कि चुनाव आयोग 2001 मे ही यह प्रस्ताव सरकार को भेज चुका था लेकिन सरकारें इसे दबाये बैठी रही, ईवीएम मेल से कोई नहीं विकल्प के बाद वोटर अब कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आने पर उन्हें रिजक्ट कर सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वोटिगं का अधिकार संवैधानिक अधिकार है तो उम्मीदवारों को नकारने का अधिकार भी संवैधानिक के तहत अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है.  निगेटिव वोटिंग से चुनाव में सुचिता और जीवन्तता को बढावा मिलेगा और राजनैतिक दल साफ छवि वाले प्रत्याशियों को टिकिट देने के लिये मजबूर होंगे.दरअसल वोटरों के पास रूल नम्बर 49-0 ओ के तहत किसी भी उम्मीदवार  को वोट न देने का अधिकार पहले से ही था, इसके तहत वेाटर को फार्म भरकर पोलिंग बूथ पर चुनाव अधिकारी और एजेंट को अपनी पहचान दिखाकर वोट डालना होता था. इस प्रक्रिया में खामी यह थी कि  पैचीदा होने के साथ इसमें वोटर की पहचान गुप्त नहीं रह जाती. चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को गोपनीय और सुविधाजनक बनाने के लिये दस दिसंबर 2001 को ही ईवीएम में उम्मीदवारों का नाम के बाद इनमें से कोई नहीं का विकल्प देने का प्रस्ताव सरकार को भेजा था लेकिन 12 सालो में इस पर कोई कदम नहीं उठाये गये .आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने वोटरों को विधानसभा चुनावों से यह अधिकार दे दिया.चुनाव सुधारों  की मांग कर रहे कार्यकर्ताओं का यह कहना है कि किसी क्षेत्र में यदि पचास प्रतिशत से ज्यादा वोटर 'इनमें से कोई नहीÓ के आप्शन पर पडता है तो वहां दुबारा चुनाव करवाना चाहिये.अभी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है,चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया था और सुझाव दिया था कि सरकार को ऐसा प्रावधान करने के लिये कानून में संशोधन करना चाहिये. सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की.




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