जल प्रबंधन इतना कैसे बिगड़ा कि गांवों में सूखा पड़ने लगा!



  कोई यह नहीं कह सकता कि इस वर्ष बारिश कम हुई, इन्द्र देवता खुश थे, खूब लबालब बारिश से नदी नाले सब भर गये, यहां तक कि मनुष्य द्वारा निर्मित बांधों में भी इतना पानी भर गया कि बांधों के गेट खोलकर पानी बहाया गया,इससे कई गांवों में बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई.सवाल यहां अब यही उठ रहा है कि मानसून अनुकूल व सामान्य से अधिक बारिश होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में सूखे के हालात क्यो पैदा हो रहे हैं. क्यों महासमुन्द और अन्य  अनेक  क्षेत्रों में सूखे की नौबत आई?क्यों महानदी का पानी सूख गया और क्यों धरती का जलस्त्रोत नीचे गिरता जा रहा है?क्या यह हमारी प्रबंध व्यवस्था की खामियां थी जिसके कारण अप्रैल महीने से लोगों को सूखे की भयानक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. यह अब स्पष्ट होने लगा है कि शहरी क्षेत्रों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में पेय  जल के साथ निस्तारी की  समस्या भी गंभीर रूप  धारण करती जा रही है. गांव के गाव खाली होना शुरू हो गया है, मवेशियों तक  के लिये पीने का पानी गांवों में नहीं रह गया है. सूखे पर लोग अपना व्यापार चलाने लगे हैं एक एक टेैंकर पानी  की कीमत सोने के भाव चल रहा है.सरकार ग्रामीण व शहरी क्षेत्र  में सिंचाई, पीने व निस्तारी पानी  का प्रबंध करती है.तापमान बयालीस डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंचते ही अचानक यह स्थिति कैसे निर्मित हो गई कि अभी तक लहलहा रहे खेत सूख गये और गांवों में निस्तारी तक के लिये पानी नहीं बचा? लाखों करोड़ो रूपये जलसंसाधन विभाग के कर्मचारियों की तनखाह और स्थापना पर खर्च होता है किन्तु वे जब व्यवस्था नहीं बनाये रख सकते तो इस विभाग का औचित्य क्या है? क्यों नहीं इस विभाग ने अब तक इस छोटे से राज्य में ऐसे गांवों को खोजकर निकाला जहां बाढ की स्थिति पैदा होती है, सूखा पड़ता है और तबाही होती है?इतने वर्षो बाद भी अगर ऐसी छटनी नहीं की गई और पर्याप्त इंतजाम नहीं किये गये तो यह हमारा ही दोष है कि हम जल  प्रबंधन के मामले में असफल हो गये हैं. अगर बारिश के पानी  का समुचित संग्रहण हर तरफ बराबरी से होता तो शायद यह नौबत नहीं आती. नदियों को आपस में जोड़ने की बात भी प्रदेश में हवा- हवा ही है.अगर मध्यप्रदेश की तरह नदियों को एक दूसरे से जोड़ने की एक श्रंखला तेजी से शुरू होती तो ऐसे गांव जहां लोगों को मुसीबत के दिन देखने पड़ रहे हैं खुशहाल हो जाते.

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