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और कितने शरद प्रशंसा, लवकुमार मारे जायेंगे?

घरेलू हिंसा रोकने सरकार शराब बंद करें, मुफत अनाज की जगह काम के बदले राशन बांटे गौतम, शरद, विनय, प्रशंसा, लवकुमार यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कुछ ऐसे मासूम बच्चे थे जिनने कम से कम ग्यारह माह से लेकर छह साल तक की जंदगी जी और बाद में माता पिता के बीच घरेलू कलह के चलते अथवा किसी प्रेम संबन्ध के चलते उन्हें इस दुनिया से रूकसत कर दिया. ऐस और भी बच्चे हैं,जिन्हें पूर्व में मार दिया गया जिनका नाम हमारें पास नहीं हैं. मारने वाले ओर कोई नहीं बल्कि इनकी खुद की मां थी या फिर इनका शराबी पिता. अपना अडियल रवैया या शराब की लत, अथवा जिद छोटे छोटे बच्चों की मृत्यु का कारण बन रहे हैं.प्राय: सभी घटनाओं के पीछे घरेलू हिंसा,आर्थिक तंगी और शराब एक वजह है, जो परिवार की कलह और  मासूम बच्चों की मौत का कारण बन रही है. इन सबमें प्रमुख वजह शराब है.पिछले साल एक शराबी पिता ने वाल्मिकी नगर की गौतम छै साल, शरद चार साल और विनय दो साल को शराब के नशे में मौत के घाट उतार दिया था. इन बेचारों का क्या कसूर था? पति- पत्नी के बीच विवाद इनकी मौत का कारण बना. कोई सामान्य आदमी जो कृत्य नहीं कर सकता वह कृत्य शराब पीने के

अब धरती पर अत्याचार छोड़ आकाश की ओर बढों....! वनों के मामले में हमारी पोजीशन दुनिया में दसवें नम्बर पर है, लेकिन भारत में जिस तेजी से वन कट रहे हैं उससे यह नम्बर कम होने की जगह भविष्य में कई आगे निकल जाये तो आश्चर्य नहीं. वनों के बगैर पर्यावरण नहीं और वन काटे बगैर विकास नहीं. वन नहीं तो कुछ भी नहीं, पीने के पानी से लेकर निस्तारी के पानी तक का संकट पैदा हो जाये तो आश्चर्य नहीं. सरकारें विकास पर तुली हुई है. वन काटकर विकास करना उनके लिये अनिवार्य है. सरकार को कहीं रेल लाइने बिछाना है तो कहीं बांध बनवाना है तो कहीं सड़के निकलवाना है. कई वनों को काटकर वहां कांक्रीट के जंगल खड़े करना ह,ै तो कई जंगल क्षेत्र में कोयले और अन्य खनिज ससंाधनों का भंडार भरा पड़ा है, उन्हें खोदकर निकालना है. विकास की बात जैसे जैसे आगे बढ़ती जायेगी वनों और जंगली जानवरों की मुसीबतें और बढ़ती जायेगी. आखिर क्या किया जाये कि वन कम से कम कटे अर्थात सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे?भारत सरकार का पर्यावरण विभाग, वन विभाग की परमीशन के बगैर राज्य सरकारें वनों के एक भी वृक्ष पर हाथ नहीं लगा सकती. कई राज्यों में तो किसी वृक्ष को काटने की सजा भी कठोर है यहां तक कि निजी भूमि पर लगे वृक्षों को भी नहीं काटा जा सकता. इसे भी काटने से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है.कहने का तात्पर्य सरकार अपनी तरफ से भी वनों की रक्षा के लिये कटिबद्व है लेकिन मजबूरियां ऐसी हैं कि सरकार को बाध्य होकर कुछ निर्णय लेने पड़ते हैं जिसके चलते वृक्षों व वनों का सफाया करना अनिवार्य हो जाता है. बस्तर में बोधघाट परियोजना का ही उदाहरण ले- वृक्षों की भारी कटाई,कई गांवों के डुबान की स्थिति इन सबके चलते आज तक यह परियोजना अस्तित्व में नहीं आई. अब विकास की दौड़ मेंं सरकार के लिये यह मजबूरी है कि वह छत्तीसगढ़ के इस जंगल से आछादित क्षेत्र को नई दुनिया से जोड़ने के लिये यह यातायात की आधुनिकतम सुविधाएं मुहैया करायें.इसी कड़ी में राजधानी रायपुर से बस्तर तक रेल लाइन बिछाने का कार्य हाथ मेें लिया जा रहा र्है इस कड़ी में कई पहाड़, कई वृूक्ष उजडेंगें.तभी जाकर रेललाइन बिछेगी. यह बस्तर सहित पूरे देश की आवश्यकता है. इस परियोजना को अगर हम दूसरे नजरियें से देखें तो यह कुछ आसान है, जिसमें आम लोगों को सुविधा होगी, वन नहीं कटेगें पहाड़ों को नहीं हटाना पड़ेगा और सुविधाएं भी लोगों को मिलेंगी. सरकार रायपुर से बस्तर की दूरी जो करीब साढ़े तीन सौ किलोमीटर तक है धरती को छोडकर मेट्रो की तर्ज पर आकाश की तरफ धरती से ऊपर ट्रेेनें चलाये व सड़को को भी ऊपर ही ऊपर विकसित करें. विश्व के कई विकसित देशों में यह व्यवस्था है जिसके चलते धरती को छुए बगैर सारा यातायात चलता रहता है और किसी को जाम की स्थिति का भी सामना नहीं करना पड़ता. खर्चा इसमें भी होगा उसमें भी होगा लेकिन काम को चरण बद्व शुरू करने से यह काम आसान और कम खर्चीला होगा. अगर रायपुर से धमतरी तक या धमतरी से ये जगदलपुर तक इस योजना पर शुरूआती दौर पर काम किया जाय तो इसके फायदे नजर आने लगेंगे. सपना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी कुछ ऐसा ही है. वे बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे जो सत्तर हजार करोड़ की तो सिर्फ एक बुलेट ट्रेन की है लेकिन यह योजना जो धरती से आकाश की ओर जाती है तो यह शायद उससे कम खर्च में पूरी हो सकती है. यातायात की गंभीर समस्या भविष्य में और पेचीदा होगी इसके लिये हम अब आकाश की ओर ताकना पड़ेगा ही.

वनों के मामले में हमारी पोजीशन दुनिया में दसवें नम्बर पर है, लेकिन भारत में जिस तेजी से वन कट रहे हैं उससे यह नम्बर कम होने की जगह भविष्य में कई आगे निकल जाये तो आश्चर्य नहीं. वनों के बगैर पर्यावरण नहीं और वन काटे बगैर विकास नहीं. वन नहीं तो कुछ भी नहीं, पीने के पानी से लेकर निस्तारी के पानी तक का संकट पैदा हो जाये तो आश्चर्य नहीं. सरकारें विकास पर तुली हुई है. वन काटकर विकास करना उनके लिये अनिवार्य है. सरकार को कहीं रेल लाइने बिछाना है तो कहीं बांध बनवाना है तो कहीं सड़के निकलवाना है. कई वनों को काटकर वहां कांक्रीट के जंगल खड़े करना ह,ै तो कई जंगल क्षेत्र में कोयले और अन्य खनिज ससंाधनों का भंडार भरा पड़ा है, उन्हें खोदकर निकालना है. विकास की बात जैसे जैसे आगे बढ़ती जायेगी वनों और जंगली जानवरों की मुसीबतें और बढ़ती जायेगी. आखिर क्या किया जाये कि वन कम से कम कटे अर्थात सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे?भारत सरकार का पर्यावरण विभाग, वन विभाग की परमीशन के बगैर राज्य सरकारें वनों के एक भी वृक्ष पर हाथ नहीं लगा सकती. कई राज्यों में तो किसी वृक्ष को काटने की सजा भी कठोर है यहां तक कि निजी भूमि

आखिर हम किससे डर रहे हैं-अमरीका, चीन या अपने आप से?सईद ललकार रहा है क्यों न हो जाये आर पार की लड़ाई

अस्सी हजार से ज्यादा लोग अब तक  आतंकवादियों के हाथों मारे जा चुके...हमें मालूम है कि इस नरसंहार के पीछे पाकिस्तानी सेना, भारत से भागे दाउद इब्राहिम और वहां के उग्रवादी संगठन जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद का हाथ है-यह व्यक्ति मुम्बई हमले का भी मास्टर माइण्ड है- इस कुख्यात व्यक्ति के सिर पर अमरीका ने भी एक करोड़ रूपये का इनाम रखा है, फिर भी हम चुप हैं...इस बार उसके पिट्ठू आये तो ए के 47 का जखीरा, खाने पीने के लिये रेडीमेड चिकन आचारी, दाल, रोटी सहित काजू किशमिश, खजूर और अन्य कई किस्म के ड्राय फ्रूट भी लेकर आये-प्लान बनाया था कि भारत के मस्तक पर बैठकर कई दिनों तक आतंक का खेल खेलेंगे लेकिन इन छक्कों के मंसूबों को भारतीय फौज ने सफल होने नहीं दिया लेकिन इस कड़ी में हमारे कम से कम बारह जवानों को भी शहीद होना पड़ा. तीन दशक से ज्यादा का समय हो गया- हम अपने पडौसी की  मनमानी झेल रहे हैं?क्या हमने  चूडियां पहन रखी है कि वह अपनी मनमानी  करता रहे और हम चुप बैठे रहे? क्यों नहीं हम आर या पार की लड़ाई लड़े? हम किससे डर रहे हैं?अमरीका से? चीन से? या फिर अपने आप से?कि अगर हम पाकिस्तान से मुकाबला करेंगे तो

मौत फैक्ट्री से निकली दवा सिप्रोसिन-500

मौत फैक्ट्री से निकली दवा सिप्रोसिन-500 ने अब तक कितने लोगों को मारा, क्या इसका रिकार्ड भी कंगाला जायेगा? छत्तीसगढ़ में नसबंदी मौतों की वजह सिप्रोसिन-500 दवा है तो इस  सामूहिक हत्याकांड के पहले इस दवा ने और कितने लोगों की जान ली? क्या सरकार यह पता लगायेगी? अब तक नसबंदी  कांड में दवा खाने के बाद कम से कम उन्नीस लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन अब सवाल यह उठता है कि दवा तो कई दिनो, महीनों व सालों से बाजार में थी और चिकित्सक इस दवा को सर्दी झुखाम जैसी बीमारियों के लिये लिखते थे तथा कई जोग इसका सेवन भी करते थे इस दवा को खाने के बाद कई लोगों की हालत बिगड़ी भी होगी और उनकी मौत भी हुई होगी लेकिन माना यह ही गया कि स्वाभाविक रूप से ही संबन्धित व्यक्ति बीमारी के बाद चल बसा लेकिन ऐसे लोगों की संख्या तो हजारों में रही होगी क्योकि इस दवा की सप्लाई आज से नहीं वर्षो से हो रही थी.सारा  मामला तभी  उजागर हुआ जब सामूहिक रूप  से एक के बाद एक मौत होने का मामला सामने आया? अब सवाल  यह है कि आखिर इस बात का पता कैसे लगाया जायेगा कि सर्दी झुखाम या अन्य किसी  कारणों से सिप्रोसिन दवा खाने के बाद छत्तीसगढ़ और अन्य

सिर पर सिर का चक्कर,सुरक्षित रोमांचक किन्तु महंगा भी!

सिर पर सिर का चक्कर,सुरक्षित रोमांचक किन्तु महंगा भी! अभी तक लोगों को आंख पर अंाख लगाने का अनुभव था अब प्रशासन और सरकार ने लोगों को सिर पर सिर लगाना सिखाना शुरू कर दिया है. बड़े नगरों में यह बहुत पहले  से है किन्तु छत्तीसगढ़ में कम से कम तीन बार के प्रयोग के बाद पहली दफा है.कुछ लोगों को यह भारी भारी लग रहा है तो कुछ को अटपटा तो कुछ को शर्म आ रही है लेकिन प्रशासन है कि सिर फटने से मौत की लगातार घटनाओं से तंग आकर अब किसी की नहीं सुनने के मूड़ में है. प्रशासन  की सख्ती को देखते हुए कुछ लोगों ने अपने सिर पर सिर लगाने का यंत्र [हेलमेट] बेचने का कारोबार शुरू कर दिया है. इसके लिये वे बाहर से लाद लादकर सिर ला रहे हैं और सड़क पर बैठकर अपना कारोबार शुरू कर  रहे हैं. खूब ऊंचे& ऊंचे दाम  पर सिर की खरीदी बिक्री हो रही हैं. अब हेलमेट लगाने का तरीका देखिये..कुछ लोग अपने परिचित को देखते ही शरमा जाते हैं और तुरंत निकालकर हाथ में पकड़ लेते हैं या फिर अपने बाइक पर टांग देते हैं कहते हैं यार सिर पर सिर लगाने के बाद यह पता ही नहीं चलता कि मैं कौन और तुम कौन..अच्छी बला डाल दी  सरकार न,े मगर यह कोई नहीं कह र

एसीबी के जाल में मछलियां सिर्फ तडपती हैं, मरती नहीं

एक लम्बे अंतराल  के बाद छत्तीसगढ़ का एंटी करप्शन ब्यूरो जागा, शुक्रवार  को उसने  एक बड़ी मछली को अपने जाल में फांसा। छत्तीसगढ़ शासन के वन  विभाग मरवाही में डीएफओ पद पर कार्यरत राजेश चंदेला ने संपूर्ण राज्य में अपना  साम्राज्य फैला  रखा है। छापे  में यह स्पष्ट हुआ कि अधिकारी ने अपनी आय से कई गुना ज्यादा की संपत्ति बना डाली है। एंटी करप्शन विभाग की दो दिनी कार्रवाई में ही करीब पांच करोड़  रूपये की संपत्ति का पता चला है, इससे एक बात तो साफ हुई कि छत्तीसगढ़ के भ्रष्टाचारी जंगल में ऐसे कई भ्रष्टखोर मौजूद है जो सरकार में रहकर सरकार को चूना लगा रहे हैं लेकिन एसीबी यह नहीं बता पा रहा है कि इससे पूर्व की गई कार्रवाहियों पर क्या कार्रवाई की गई इनमें जून सन् 2012 में जांजगीर-चांपा अस्पताल के डा. आर चन्द्रा और रामकुमार थवाइत के ठिकानों से नौ करोड़, 5 अक्ूबर 2012 को प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना के कार्यपालन यंत्री जे.एस जब्बी के ठिकानों से 4.5 करोड़, 22 जनवरी को  डिप्टी सेक्रेटरी एम.डी दीवान के ठिकानों से 47 मिलियन की संपत्ति तथा अंबिकापुर कलेक्ट्रेट लैण्ड रिकार्ड  विभाग के बाबू रिषी कुमार के ठिक

और कितने शरद प्रशंसा, लवकुमार मारे जायेंगे

घरेलू हिंसा रोकने सरकार शराब बंद करें, मुफत अनाज की जगह काम के बदले राशन बांटे गौतम, शरद, विनय, प्रशंसा, लवकुमार यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कुछ ऐसे मासूम बच्चे थे जिनने कम से कम ग्यारह माह से लेकर छह साल तक की जंदगी जी और बाद में माता पिता के बीच घरेलू कलह के चलते अथवा किसी प्रेम संबन्ध के चलते उन्हें इस दुनिया से रूकसत कर दिया. ऐस और भी बच्चे हैं,जिन्हें पूर्व में मार दिया गया जिनका नाम हमारें पास नहीं हैं. मारने वाले ओर कोई नहीं बल्कि इनकी खुद की मां थी या फिर इनका शराबी पिता. अपना अडियल रवैया या शराब की लत, अथवा जिद छोटे छोटे बच्चों की मृत्यु का कारण बन रहे हैं.प्राय: सभी घटनाओं के पीछे घरेलू हिंसा,आर्थिक तंगी और शराब एक वजह है, जो परिवार की कलह और  मासूम बच्चों की मौत का कारण बन रही है. इन सबमें प्रमुख वजह शराब है.पिछले साल एक शराबी पिता ने वाल्मिकी नगर की गौतम छै साल, शरद चार साल और विनय दो साल को शराब के नशे में मौत के घाट उतार दिया था. इन बेचारों का क्या कसूर था? पति- पत्नी के बीच विवाद इनकी मौत का कारण बना. कोई सामान्य आदमी जो कृत्य नहीं कर सकता वह कृत्य शराब पीने के

सवाल स्मृति की शिक्षा का या संवैधानिक त्रुटि का?

सवाल स्मृति की शिक्षा का या संवैधानिक त्रुटि का? ''पढ़ोगे लिखोगे बनागे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब जो बच्चे कभी लिखते पढ़ते नहीं, वो इज्जत की सीड़ी पर चढ़ते नहीं, यही दिन है पढ़ने के पढ़ लो किताब बुराई  के रास्ते से बचके चला कभी न झूठ बोलों न चोरी करोÓÓ हमें बचपन से यही गीत गाकर पढ़ाया लिखाया गया है.हम यही सुनते आये है लेकिन ''अगर काम से ही किसी का मूल्याकंन करना है तो देश के युवाओं को अब डिग्री लेने की जरूरत नहींÓÓ-स्मृति इरानी की माने तो कुछ ऐसा ही संकेत मिलता है. नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल  में मानव संसाधन  मंत्री जैसा महत्वपूर्ण सम्हालने वाली कम उम्र की मंत्री,जिन्हें देश की उच्च शिक्षा, जाँब,शिक्षा में एफडीआई, आईआरटी, आईबाईएम, एम्स, स्किल डेवलपमेंट, युवाओं की उम्मीदो और  बेसिक शिक्षा  के दायित्वों को पूरा करना है,वे सिर्फ बारहवीं कक्षा पास है. उनका कहना हैै कि उनके पास  तजुर्बा है और उसी को रखकर देश की शिक्षा नीति और उससे संबन्धित अन्य कार्यो को तय करेंगी.  स्मृति अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव  हार  गई, राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के बड़े नेता को हराना उनकी

धारा 370 पर कश्मीर गर्म आखिर है क्या यह धारा?

नरेन्द्र मोदी सरकार के एक मंत्री द्वारा भारतीय संविधान की धारा तीन सौ सत्तर पर दिये बयान के बाद बखेड़ा खड़ा हो गया है. सवाल  यह उठ रहा है कि  क्या नरेन्द्र मोदी सरकार इस धारा को खत्म करेगी? इससे पूर्व कि सरकार इसपर  कोई राय बनाये जम्मू कश्मीर  के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा दोनों ने ही इसपर गंभीर रूख अख्तियार करते हुए यहां तक कह दिया कि अगर धारा 370 को हटाया गया तो कश्मीर भी भारत से अलग हो जायेगा. आखिर धारा 370 है क्या बला? आम लोग यह नहीं जानते कि आखिर यह धारा 370 है क्या? -यह भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसे अंग्रेजी में आर्टिकल 370 कहा जाता है. इस धारा के कारण ही जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दज़ार्) प्राप्त है. देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है.भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं.भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष

इच्छा शक्ति, छप्पन इंच का सीना ही जनता का विश्वास जीतेगी

इच्छा शक्ति, छप्पन इंच का सीना ही जनता का विश्वास जीतेगी! नरेन्द्र मोदी के लिये काम आसान लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं बेेरोजगारी, काला धन, आर्थिक विकास/निवेश, आंतरिक सुरक्षा, चौबीस घंटे बिजली, सड़क, फास्ट ट्रेन, नि:शुल्क शिक्षा जैसी बातें जो आम आदमी से जुड़ी हैं जिसे सत्ता में बैठे व्यक्ति के लिये हल करना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसके लिये भी इच्छा शक्ति के साथ छप्पन इंच का सीना भी होना चाहिये. अब तक शासन करने वालों में इसका अभाव था या उनके साथ काम करने वालों ने अपनी जेब भरने के साथ जनता से दूरी बनाई और समस्या को ज्यों का त्यों बनाये रखा लेकिन अब मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही लोगों की वे आशाएं जाग गई हैं जिनका वर्षों से वे सपना देखते रहे हैं? नरेन्द्र मोदी 26 मई को शाम छह बजे भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे और इसी के साथ देश की जनता की वे आशाएं और अपेक्षाएं भी मोदी का पीछा करने लगेंगी जो उन्होंने चुनाव के दौरान लोगों से वादे किए थे. सबसे पहला मुद्दा है महंगाई- कम से कम एक महीने के भीतर नरेन्द्र मोदी को आम लोगों को यह महसूस कराना होगा कि उनके सिंहासन पर बैठते ही मंहगाई कम ह

मौसम पर वैज्ञानिक कितने सटीक,फंसते तो किसान हैं!

मौसम पर वैज्ञानिक कितने सटीक,फंसते तो किसान हैं! मौसम का मिजाज कब बिगड़ जाये यह कोई नहीं जानता.हम बुधवार की रात सोने की तैयारी कर रहे थे तभी धरती अचानक हिल गई. ऐसा छत्तीसगढ़ में करीब तीस साल पहले भी हुआ था किन्तु समय में फरक था, उस समय सुबह चार बजे के आसपास धरती हिली लेकिन इस बार यह शाम को नौ साढ़े नौ बजे के आसपास हुआ. रायपुर में बहुत कम लोगों को इसका अहसास हुआ किन्तु ऐसे किसी भूकम्प की भविष्यवाणी किसी माध्यम से नहीं की गई, हां धरती हिलने के बाद यह बताने में कोई कमी नहीं की गई कि देश में कहीं भी धरती हिले मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा कभी नहीं होगा बहरहाल ऐसे बहुत से मामले हैं जो मौसम विज्ञानियों की भविष्यवाणियों को झुठला देते हैं. सुबह से दोपहर तक खूब गर्मी पड़ती है और शाम होते ही जैसे किसी हंसते खेलते व्यक्ति का मूड बदल जाता है, उसी प्रकार तेज आंधी चलती है तूफान आता है और सब तबाह हो जाता है. अरबों रूपयें के मौसम की जानकारी के लिये संयत्र देश में लगे है लेकिन सटीक जानकारी न भारत के इन संयत्रों और इसमें तैनात विशेषज्ञों के पास है और न ही दूर सात समुन्द्र पार बैैठे महान वैज्ञानिक होने का दावा क

आजाद भारत में पैदा हुआ पहला प्रधानमंत्री!

. युवाओं की अहम भूमिका रही...जाति-धर्म सब सीमाएं लांघी गई मोदी को जिताने के लिये... कांग्रेस के भ्रष्टाचार और दस वर्षो के कुशासन से मुक्त होना चाहते थे लोग  लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को जो ऐतिहासिक जीत मिली है उसे भारतीय लोकतंत्र में किसी एक पार्टी को हासिल जीत में सबसे बड़ी  जीत है. पार्टी ने  दिल्ली, राजस्थान सहित कई राज्यों की सभी सीटें अपने नाम कर ली हैं तो कई राज्यों में दिग्गज क्षेत्रीय पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया है। यह चुनाव  हम सब के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए यह परिणाम अपेक्षित ही माना जा  रहा है क्योंकि 2011 के बाद से ही उन्होंने सुनियोजित रणनीति के तहत इसके लिए आगे बढ़ना शुरू कर दिया था। तब उन्होंने सद्भावना यात्रा शुरू की थी. अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के समय वे जरूर कुछ हाशिये पर आ गए थे मगर 2004 के आम चुनाव में जब भाजपा की हार हुई तो उन्हें लगा कि अब वे केंद्र में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं. यह वह समय था जब लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना की कब्र पर जाकर उनके लिए सराहना के शब्द बोल दिए. वे संघ के निशाने पर आ गए.अब मो

युवा वोटरों की अपेक्षाएं..."जादू की छड़ी घुमायेंगे मोदी"

युवा वोटरों की अपेक्षाएं..."जादू की छड़ी घुमायेंगे मोदी" निशुल्क शिक्षा,चौबीस घंटे बिजली, एकल टैक्स,  जैसे ग्यारह अनुरोध... युवा मतदाताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग, जिनकी संख्या करीब 2.31 करोड होती है, पहली बार मतदान में हिस्सा लिया- भाजपा जनता पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर वे एक तरह से फिदा थे. वर्तमान भ्रष्ट सरकार से उनका विश्वास उठ चुका था. शायद यही कारण था कि उसने नरेन्द्र मोदी पर इतना विश्वास किया कि वोट देने के मामले में उन्होंने अपने अभिावकों तक की नहीं सुनी. इन नये मतदाताओं पर राजनीतिक दलों की पैनी नजर थी और चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले युवाओं का समर्थन अधिक प्राप्त हुआ. मोदी के मोहित करने वाली बातों तथा नये भारत के लिये जो सपने दिखाये उसने पूरे देश में ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि उसके आगे वे सम्मोहित हो गये तथा पुराने युवाओं को, जो एक लम्बे समय से दूसरी  पार्टियों के साथ जुड़े हुए थे उन्हें भी अपने साथ मिलाने  में कामयाब हो गये.एक तरह से युवा मतदाताओं के आगे यह नये मतदाता हावी हो गये तथा सारी बाजी पलट दी. अब चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी से युवा यह आशा कर

बस अब ज्यादा इंतजार नहीं.... आज एक्जिट पोल से कुछ तो स्थिति स्पष्ट होगी

गठजोड़ में मोदी को 'सिंहासन के करीब जाने से रोकने की कोशिशें भी! अब ज्यादा दिन नहीं बचे,सिर्फ चार दिन बाद यह स्पष्ट हो जायेेगा कि देश के सिंहासन पर कौन बैठेगा, लेकिन इससे पूर्व आज शाम एक्जिट पोलक लोगों की जिज्ञासा को बहुत हद तक कम कर देगा. इन पङ्क्षक्तयों के लिखे जाते तक आखिरी दौर का मतदान जारी है.मतदान की प्रक्रिया सोमवार को खत्म हो जायेगी, इस बीच जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला है वह भी कम इंन्टे्रस्टिंग नहीं है. भाजपा जहां स्पष्ट बहुमत का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस जोड़-तोड़ में हैं कि किसी प्रकार केन्द्र में भाजपा की सरकार का उदय न हो. इस जोड़ तोड़ को देख भाजपा भी अपना इंतजाम करने में लगी है उसकी नजर ममता, मोदी और पटनायक पर है, भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि वह किसी प्रकार इन धुरन्धर नेताओं को मनाकर अपने साथ नहीं मिला सकती लेकिन 'साम धाम दण्ड भेदÓ का तरीका अख्तियार करने में भी वह पीछे नहीं है शायद यही वजह है कि सीबीआई को भी सत्ता पाने के लिये अपना मोहरा बनाने की बात चल रही है.  इधर आम आदमी पार्टी की क्या भूमिका होगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका दावा

कब तक यात्री रेलवे के अत्याचारों को सहेगा?

कब तक यात्री रेलवे के  अत्याचारों को सहेगा? प्लेन में खराबी आ जाये तो संबन्धित एयर लाइंस अपने यात्रियों को किसी बड़े होटल में ठहराकर उनकी सेवा में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती लेकिन क्या देश की सबसे ज्यादा कमाऊपूत रेलवे अपने यात्रियों की सेवा इसी प्रकार करती है? इस प्रकार नहीं तो भी क्या वह अपने उन यात्रियों की कोई खैर खबर लेती है जिनसे वह लम्बी यात्रा के नाम पर अनाप शनाप रेट वसूल करती है. शुक्रवार और शनिवार की दरम्यिानी रात बैतूल के समीप एक मालगाड़ी दुर्घटना के बाद जो अनुभव इस रूट के लाखों यात्रियों को करना पड़ा वह अभूतपूर्व था हालाकि ऐसी दुर्घटनाएं अक्सर होती है तथा यात्री इस तरह की मुसीबतें झेलते हैं लेकिन गर्मी के दिनों में जो कठिनाई होती है वह किसी जेल में एक दिन की सजा से कम नहीं है. शुक्रवार रात करीब 10-11  बजे के आसपास  बेतूल के पास घोडाडोगरी रेलवे स्टेशन के बिल्कुल करीब एक कोयले से भरी मालगाड़ी जो सारिणी संयत्र के लिये कोयले लेकर जा रही थी खूब तेज गति से पटरी से उतरकर विद्युत खम्बों को तोडते हुए बुरी तरह दुर्घटनग्रस्त हो गई.संपूर्ण रेलवे लाइन पर चलने वाले इलेक्ट्रिक इंजन की रेलगाड़य

एक्जिट पोल 'अच्छे दिन आने वाले हैं!

दुनिया के प्राय: सभी लोकताङ्क्षत् देशों में एक्जिट पोल का बोलबाला है,यह मतदाताओं व प्रत्याशियों को कुछ समय तक टेंशन से दूर रखने की कोशिश तो करता है किन्तु हकीकत में यह असल पोल के नतीजे नहीं बन पाते.भारत में लोकसभा चुनाव के बाद पिछले कुछ वर्षो से एक्जिट पोल का ्रचलन शुरू हुआ है.मतदान के दौरान भी एक्जिट पोल दिखाये जा रहे थे किन्तु चुनाव आयोग ने  इसपर रोक लगा दी.चुनाव खत्म होते ही इसकी अनुमति दे दी और आननफानन में टीवी चैनलों ने एक्जिट पोल दिखा भी दिया. देश की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टी के नेताओं ने एक्जिट पोल के नतीजे को स्वीकार करने की जगह यही कहा है कि मतगणना के दिन का  इंतजार कीजिये. वास्तव में एक्जिट पोल बहुत सीमित लोगों के बीच से होता है, भारत जैसे एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी वाले देश में जिसमें  आधे  से ज्यादा अर्थात करीब  सत्तर प्रतिशत लोग मतदान में हिस्सा लेते हैं में से यह खोज निकालना किसी के लिये भी कठिन हो जाता है कि मतगणना के बाद क्या स्थिति होने वाली है. करीब एक महीने के चुनाव अभियान के दौरान चुनाव प्रचार के समय एक्जिट पोल में लगे लोगों ने कर

शास्त्री चौक ही सब कुछ क्यों? जयस्तभं-शारदा चौक भी तो है!

 रायपुर का ट्रेफिक सुधार कार्यक्रम शास्त्री चौक तक ही सिमटा हुआ क्यों है?पिछले कई दिनों से पूरा प्रशासन शास्त्री चौक को ही पूरा शहर मान बैठा है और उसकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ रहा शायद इसलिये भी कि यहां से इस प्रदेश के कर्ताधर्ता दिन में कई बार गुजरते हैं जबकि जयस्तंभ चौक जो शहर का दिल है उसे विकसित करने का कार्य ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया है. इधर रायपुर के टैफिक को बुरी तरह प्रभावित करने वाले शारदा चौक से लेकर तात्यापारा तक के रोड़ पर ट्रेैफिक की बुरी हालत पर रायपुर का प्रशासन चाहे वह नगर निगम हो या जिला प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन सब खामोश है. इस मार्ग को आमापारा से तात्यापारा चौड़ीकरण के साथ- साथ पूरा किया जाना था लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कार्रवाही नहीं की गई. संबन्धित लोगों को मुआवजा देकर उसी समय हटा दिया जाता तो शायद यह नौबत नहीं आती  कि अब यहां से हटाने के लिये लोगों को दा से तीन गुना ज्यादा मुआवजा देना पड़ेगा. रायपुर नगर निगम, जिला प्रशासन  और सरकार के बीच  के झगड़े का खामियाजा रायपुर सहित पूरे देश के नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. पीक हावर्स में इस रोड़ से गुजरना कठिन हो

बस अब ज्यादा इंतजार नहीं.... आज एक्जिट पोल से कुछ तो स्थिति स्पष्ट होगी? गठजोड़ में मोदी को 'सिंहासनÓ के करीब जाने से रोकने की कोशिशें भी!

अब ज्यादा दिन नहीं बचे,सिर्फ चार दिन बाद यह स्पष्ट हो जायेेगा कि देश के सिंहासन पर कौन बैठेगा, लेकिन इससे पूर्व आज शाम एक्जिट पोल लोगों की जिज्ञासा को बहुत हद तक कम कर देगा. इस बीच जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला है वह भी कम इंन्टे्रस्टिंग नहीं है. भाजपा जहां स्पष्ट बहुमत का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस जोड़-तोड़ में हैं कि किसी प्रकार केन्द्र में भाजपा की सरकार का उदय न हो. इस जोड़ तोड़ को देख भाजपा भी अपना इंतजाम करने में लगी है उसकी नजर ममता, मोदी और पटनायक पर है, भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि वह किसी प्रकार इन धुरन्धर नेताओं को मनाकर अपने साथ नहीं मिला सकती लेकिन 'साम धाम दण्ड भेदÓ का तरीका अख्तियार करने में भी वह पीछे नहीं है शायद यही वजह है कि सीबीआई को भी सत्ता पाने के लिये अपना मोहरा बनाने की बात चल रही है. इधर आम आदमी पार्टी की क्या भूमिका होगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका दावा है कि वह मोदी और राहुल को सत्ता में आने से रोकने के लिये तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में मदद करेगी हालाकि इस मामले में आप के बीच मतभेद है किन्तु राजनीति में सबकुछ हो सकता है.कांग

'इनमे से कोई नहीं के बाद भी एक आप्शन है,सरकार को चिंता नहीं

आप अपना वोट जरूर दे कि अपील आसान लेकिन वोट किसे दें? हालाकि अगला चुनाव शायद जल्द आ जाय या फिर पांच साल पूरे करे लेकिन इस चुनाव ने फिर कई सवालों को यूं ही छोड़ दिया है?सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, सुपर स्टार आमिर खान सहित कई प्रमुख हस्तियों और सरकारी विज्ञापनों ने जनता को इस चुनाव में जागृत करने का प्रयास किया लेकिन वोटों का प्रतिशत कहीं शत प्रतिशत नहीं रहा. लगातार वोट के प्रतिशत में कमी या लोगों मे वोट न देने की प्रवृत्ति पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो यहां तक कह दिया कि जो वोट न दे उसपर कानूनी कार्रवाही करनी चाहिये. चुनाव आयोग की सिफारिश पर जिस नोटा को संवैधानिक अधिकार में शामिल कराने में राजनीतिज्ञों और सरकार की अडगेंबाजी के कारण ग्यारह साल का समय लग गया वे वोट न डालने पर सजा की बात किस मुंह से करते हैं? भारत का नागरिक होने का हमें गर्व है और एक सच्चे नागरिक के तौर पर हम भी वोट देना चाहते हैं लेकिन किसे? वे जिन्हें पार्टियां चुनाव मैदान में उतारती हैं?जिनके खिलाफ कई किस्म के अपराध,आरोप और मामले दर्ज हैं या उन्हें जो चुनकर जाने के बाद संसद का समय बर्बाद क रते हैं य

कौन जिम्मेदार है शहर में पीलिया फैलाने के लिये?

जब प्यास लगती है, तब हम कुआं खोदते हें और जब बीमारी से मौते होने लगती है तब हमें याद आती है सफाइ!र् स्वास्थ्य कार्यक्रम! और दुनियाभर के एहतियाती कदम! राजधानी रायपुर के मोहल्लों में कम से कम तीन महीनों से पीलिया महामारी का रूप धारण किये हुए हैैं और हमने अपने इन्हीें  कालमों में यह भी बताया था कि इसके पीछे कौन से प्रमुख कारण है किन्तु किसी ने इसपर संज्ञान नहीं लिया, अब जब आज यह बीमारी संक्रामक रूप ले चुकी है और एक साथ दो-दो मौते हो चुकी है तब प्रशासन को याद आ रहा है कि हां कुछ तो करना पड़ेगा नहीं तो लोग कीड़े मकोडा़ें की तरह मरने लगेंगे. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को भी आनन फानन में बीमारी की गंभीरता से अवगत करा दिया गया.लगातार लोगों के बीमार पड़ने के दौरान इसकी गंभीरता से अवगत कराने की जगह दो मौतों के बाद खबर उनके उत्तर प्रदेश दौरे के दौरान ही पहुंचाई गई.रविवार को एक एनआईटी छात्र और बाद में एक महिला की मौत ने संपूर्ण प्रशासन को हिलाकर रख दिया और शहर  में सनसनी व दहशत का माहौल निर्मित हो गया.अफसरों ने बीमारी की गंभीरता से तो मुख्यमंत्री को अवगत करा दिया पैसे भी स्वीकृत करा लिया लेकिन क्या

जल प्रबंधन इतना कैसे बिगड़ा कि गांवों में सूखा पड़ने लगा!

  कोई यह नहीं कह सकता कि इस वर्ष बारिश कम हुई, इन्द्र देवता खुश थे, खूब लबालब बारिश से नदी नाले सब भर गये, यहां तक कि मनुष्य द्वारा निर्मित बांधों में भी इतना पानी भर गया कि बांधों के गेट खोलकर पानी बहाया गया,इससे कई गांवों में बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई.सवाल यहां अब यही उठ रहा है कि मानसून अनुकूल व सामान्य से अधिक बारिश होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में सूखे के हालात क्यो पैदा हो रहे हैं. क्यों महासमुन्द और अन्य  अनेक  क्षेत्रों में सूखे की नौबत आई?क्यों महानदी का पानी सूख गया और क्यों धरती का जलस्त्रोत नीचे गिरता जा रहा है?क्या यह हमारी प्रबंध व्यवस्था की खामियां थी जिसके कारण अप्रैल महीने से लोगों को सूखे की भयानक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. यह अब स्पष्ट होने लगा है कि शहरी क्षेत्रों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में पेय  जल के साथ निस्तारी की  समस्या भी गंभीर रूप  धारण करती जा रही है. गांव के गाव खाली होना शुरू हो गया है, मवेशियों तक  के लिये पीने का पानी गांवों में नहीं रह गया है. सूखे पर लोग अपना व्यापार चलाने लगे हैं एक एक टेैंकर पानी  की कीमत सोने के भाव चल रहा है.सरकार ग्रामीण व श

क्या देश लहर पर लहरा रहा

          सिर्फ 22 दिन..प्रतीक्षा कीजिये... अच्छे या पुराने दिन का! - क्या देश में किसी एक पार्टी की लहर है? -क्या इस बार देश में सत्ता का परिवर्तन होगा?  -क्या सौ साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस की ऐसी स्थिति हो जायेगी जो आज तक कभी नहीं हुई? -क्या आज देश में वैसी लहर बह रही है जो कभी इमेरजेंसी के बाद थी या वैसी लहर,जो इंदिरा  गांंधी के पुन: सत्ता में आने के समय थी?  -क्या भाजपा आज अटल बिहारी बाजपेयी के समय से ज्यादा लोकप्रिय हो चुकी है?अथवा यह नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता है जिसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने सिर पर ले रखा है   नरेन्द्र मोदी की सभाओं में जनसैलाब को अगर लहर मान लिया जाये तो देश के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में यह लहर है. हिन्दी चैनलों में भी यह लहर है, मगर क्या यह लहर पूरे देश की फिजा को ही बदलकर रख देगा? यह गंभीर किन्तु कठिन प्रन है जिसका जवाब 16 मई के बाद ही प्राप्त होगा लेकिन इससे पहले देश का आधे से अधिक भाग मोदी और सुषमा स्वराज के साथ यही कह रहा है कि ''अच्छे दिन आने वाले हैं.ÓÓ 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ इ

मानसिक अस्वस्थों की जिंदगी सड़क पर..जिम्मेदार कौन

एक व्यक्ति तीन दिन तक एक बड़े घराने की गेट के सामने भीषण गर्मी आंधी बारिश में पड़ा रहा. घर के लोगों ने भी उसे देखा, किन्तु पुलिस को खबर करने की जगह उसे अपने नौकरों के मार्फत सरकाकर गली तरफ डाल दिया. आते जाते लोगों ने भी देखा किन्तु किसी को उसपर दया नहीं आई आखिर तीसरे दिन आसपास के लोगों को लगा कि यह शख्स अब मरने वाला है और यहीं पड़ा-पड़ा सड़ जायेगा तो इसकी सूचना पुलिस को देने के लिये दौड़ धूप शुरू हुई और अंतत: पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया.जब पुलिस से यह पूछा गया कि शहर में ऐसे घूमने वाले मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के पास आपके पास क्या व्यवस्था है तो पुुलिस का जवाब था कि हमको सूचना मिलती है तो हम पहुंचते हैं गाड़ी बुलावते हैं, गाड़ी नहीं तो अपने खर्चे पर ही किसी गाड़ी में डालकर मानवता के नाते उन्हें सरकारी अस्पताल पहुंचा देते हैं अस्पताल में ऐसे लोगों के साथ कौनसा ट्रीटमेंंट होता होगा यह सब जानते हैं.  ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचाने वाले पुलिस के लोगों का ही यह कहना है कि थोड़ा बहुत ठीक होने के बाद फिर वैसे ही यह सड़क पर नजर आते हैं. कहीं कूड़ेे के ढेर के पास तो कहीं उस स्थान पर जहां कोई शादी ब्

गांवों में बिजली-पानी नहीं होने का दर्द...!

यह सन् 1950 के बाद के वर्षो की बात है जब हम भोपाल में रहा करते थे, एक ऐसी कालोनी जहां बिजली होते हुए भी हमारे पास पंखा नहीं था, प्रकृति की हवा मे जीना ही हमारी दिनचर्या थी.गर्मी में सारे शरीर पर घमोरियां परेशान  करती थी,हमें इंतजार रहता था बारिश का कि बारिश होगी तो इस समस्या से मुक्ति मिलेगी लेकिन आगे के वर्षो में हम भाइयों ने गुल्लाख में जेब खर्च इकट्ठा करके एक टेबिल फेन लिया तो लगा कि इसके नीचे सोने वालों को कितना मजा आता रहा होगा.हमें पानी   सार्वजनिक नल या कुए से भरना पड़ता था जहां अलग अलग राज्यों से आये लोगो से झगड़ा भी करना पड़ता था चूंकि कोई एक दूसरे की भाषा नहीं समझते थे. बहरहाल इस दुखड़े के पीछे छिपा है वही दर्द जो आजादी के पैसठ वर्षो बाद भी हमारे देश के करोड़ों लोगों को झेलना पड़ रहा है जो बिना बिजली-पानी के दूरदराज गंावों में निवास करते हैं.उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं. वातानुकूलित कमरों में बैठकर विकास की बात करने वाले हमारे मंत्री नेता सिर्फ बाते ही करते हैं.जनता की सेवा के नाम पर  वोट मांगते हैं लेकिन उस गरीब, आदिवासी, हरिजन या सामान्य वर्ग की जनता की कुटिया की तरफ पांच वर्षो

मायावी चक्रब्यूह खूनी पंजों का, जो फंसा वह मरा

शहीदों की बोली कब तक लगेगी?कितने और लोगों को यूं ही जीवन गंवाना होगा-सरकार बताये? &''एक ब्लास्ट... कई जवान शहीद, &प्रत्येक के परिवार को तयशुदा बीस लाख का मुआवजा- &श्रद्वांजलि, निंदा, तोपों की सलामी और उसके बाद सब भूल जाओं... मुआवजा लेेने के लिये परिजन चक्रब्यूह में फंस जाते हैं, उन्हेें कभी दस्तावेज के लिये प्रताड़ित होना पड़ता है तो कभी किसी अन्य कारण सेÓÓ इसके बाद  फिर वही विस्फोट...नौजवानों का एक नया बेच मायावी नक्सली गुफा में शहीद हो जाता है.आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा?क्या सरकार बस्तर सहित देश के कतिपय राज्यों में इस प्रकार के नक्सली संयत्र खोलकर रखे हुए हैं जो देश के नौजवानों और सरकारी अफसरों को मौत के घाट उतारने के लिये बना रखा है?या नेताओं व सरकार के संरक्षण में इस प्रकार के मायावी संयत्र चल रहे हैं?संदेह इस बात को लेकर भी उठता है कि क्यों नहीं सख्त कदम उठाये जाते?देश के नौजवानों को जानबूझकर मौत के सौदागरों के हाथ सौंपा जा रहा है.एक जवान मरता है तो उसके साथ- साथ उसका पूरा परिवार मरता है. ऐसे गुमराह लोग इस खूनी ताण्डव में लगे हैं जो यह भी नहीं बता

यह चुनाव है या जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर मारकाट का ऐलान

'''मार डालेंगे, काट डालेंगें , टुकड़े टुकड़े कर देंंगें- हमें सत्ता में आ जाने दो तब हम बतायेंगेÓं- ÓÓऐसे कुछ बयान  हैं जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व में उम्मीदवारों व उनके समर्थकों के मुख से निकल रहे हंै.आखिर हम किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भविष्य क्या यही है जो हमारे नेताओं के श्रीमुख से सुनाई दे रहा है. सिंहासन पाने के लिये कोई मुस्लिमों को रिझा रहा है तो कोई हिन्दुओं को तो कोई दलितो को रिझाकर आगे बढ़ रहा है. युवाओं को दिग्भ्रमित करने की कोशिशे भी की जा रही है. मुद्दे, जनता तथा देश हित को लेकर बात करने की जगह नेता ये कहां एक दूसरे को लड़ाने वाले मुद्दे लेकर सामने आ गये? दिलचस्प तथ्य तो यह है कि कोई यह नहीं कह रहा कि वह अगर सिहासन पर काबिज होता है तो देश और देश की जनता के लिये क्या करेगा? उसकी विदेश नीति क्या होगी? आतंकवाद, नक्सलवाद जैसे मुद्दों पर बनने वाली सरकार क्या करने वाली है? पडौसी राष्ट्रों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान के प्रति उसका रवैया क्या होगा? ऐसे अनेक मद्दों के अलावा यह भी कोई नहीं बता रहा कि देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के

शहरों में आबादी का बोझ

शहरों में आबादी का बोझ अब चिंता का सबब बनता जा रहा है। सरकार इसपर चिंतित हैं किंतु क्या सिर्फ ङ्क्षचंता करने से इस समस्या का समाधान निकल जायेगा? बढ़ते बोझ से कई प्रकार की समस्याएं जन्म ले रही हैं। शहरों के ट्रैफिक में वूद्वि हो रही है, तो अपराध बढ़ रहे हैं। अलग- अलग गांवों से लोग रोजगार की तलाश में शहरों में पहुंचते हैं। जब रोजगार नहीं मिलता तो अपराध का रास्ता ढूंढ लेते हैं। जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण योजना के पांच वर्ष पूरे होने के बाद शहरीकरण संबंधी योजनाओं-परियोजनाओं को थोड़ी गति मिलने के आधार पर सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है, लेकिन इतने मात्र से संतुष्ट होने का मतलब है, सामने खड़ी चुनौतियों से मुंह मोडऩा। शहरों के आसपास पड़ी कृषि भूमि जहां कांक्रीट के जंगलों में तब्दील हो रही हैं। वहीं गांव के अपने खेतों को जोतने के लिये आदमी नहीं मिल पा रहे हैं। धीरे- धीरेे हमारे नीति-निर्धारकों को उन विशेषज्ञों के सुझावों पर तत्काल प्रभाव से गंभीरता प्रदर्शित करनी ही होगी। जिन्होंने शहरों की परिवहन व्यवस्था और अन्य समस्याओं का उल्लेख करते हुए एक निराशाजनक तस्वीर पेश की है। यह ठीक नहीं कि शहरो