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उनका लक्ष्य है हिंसा से 'सत्ता, इनका तो कोई लक्ष्य ही नहीं!

रायपुर दिनांक 29 दिसंबर 2010 उनका लक्ष्य है हिंसा से 'सत्ता, इनका तो कोई लक्ष्य ही नहीं! ट्रेन का अपहरण, ट्रेन को पलटाकर कई लोगों की हत्या, सैकड़ों निर्दोष लोगों की गला रेतकर हत्या, देश के कई नवजवानों का खून बहाने, तथा करोड़ों रूपये की संपत्ति को फूं क देने के बाद भी अगर कोई सरकार सिर्फ कार्रवाही का भरोसा दिखाकर जनता को तसल्ली दे तो इसे क्या कहा जाये? वर्ष दो हजार दस अब खत्म होने को है और इस वर्ष में जिस तेजी से पूरे देश में नक्सलवाद ने अपने पैर जमाये हैं वह प्रजातंत्र पर विश्वास करने वालों के लिये एक कठोर चेतावनी है कि अब भी अगर वे नहीं चेते तो आने वाले वर्षो में उन्हें माओवाद को झेलना पड़ेगा। नक्सली सन् 2050 का टारगेट लेकर चल रहे हैं- उनका मानना है कि वे उस समय सत्ता पर काबिज हो जायेंगे लेकिन हमारी सरकार के पास ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है कि नक्सलियों के वर्तमान आतंक और तोडफ़ोड़ से कैसे निपटा जाये। प्राय: हर रोज किसी न किसी का खून बहता है तो दूसरी ओर करोडा़ रूपये की संपत्ति स्वाहा होती है। अभी दो रोज से लगातार बस्तर में ट्रेनों को पटरी से उतारकर देश का करोड़ों रूपये का नुकसान किया ह

प्याज के आंसू की दरिया बह रही है और सरकार को शर्म नहीं!

रायपुर मंगलवार दिनांक 28 दिसंबर प्याज के आंसू की दरिया बह रही है और सरकार को शर्म नहीं! टमाटर लाल, प्याज ने निकाले आंसू, गैस में लगी है आग- ऐसे शीर्षकों से अखबार भरें पड़े हैं फिर भी हमारी सरकार को शर्म नहीं आ रही। कृषि मंत्री शरद पवार बेशर्मी से कहते हैं-प्याज के लिये अभी और रोना पड़ेगा- वे यह नहीं कहते कि स्थिति शीघ्र नियंत्रण में आ जायेगी। हर बार कृषि मंत्री एक भविष्य वक्ता की तरह कभी गन्ने के भाव बढऩे की तो कभी शक्कर के भाव तो कभी दालों के भाव बढने की बात कहकर कालाबाजारियों व जमाखोरों को मौका देते हैं। प्याज के मामले में गैर जिम्मेदाराना बयान के बाद प्रधानमंत्री को स्वंय संज्ञान लेना पड़ा तब कहीं जाकर विदेशों विशेषकर पाकिस्तान से प्याज पहुंचा और बाजार की स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार आया किंतु यह सारी स्थिति एक तरह से उस समय पैदा होती है जब सत्ता में बैठे लोग गैर जिम्मेदाराना बयान देते हैं। यह भी समझ के बाहर है कि जिसे व्यवस्था करनी है वह व्यवस्था करने की जगह कमी और परेशानी का राग अलापकर सात्वना देता है या अपनी विवशता पर मरहम पट्टी लगाने का काम करता है। आज सामान्य व्यक्ति के लिये

कौन जीता, कौन हारा से ज्यादा महत्वपूर्ण रही दलों की प्रतिष्ठा!

रायपुर दिनांक 27 दिसंबर कौन जीता, कौन हारा से ज्यादा महत्वपूर्ण रही दलों की प्रतिष्ठा! उप चुनाव व नगर निकाय चुनावों में बहुत हद तक सत्तारूढ पार्टी की साख का पता चल जाता है कि उसकी नीतियां व कार्यक्रमों को किस हद तक जनता पसंद करती हैं। हाल ही संपन्न निकाय चुनावों में नीतियां और कार्यक्रमों की जगह 'प्रतिष्ठाÓ ज्यादा महत्वपूर्ण रही चूंकि चुनाव का सारा दारोमदार ही सीटों पर कब्जा जमाना था। हालाकि इन चुनावों में तेरह मे से आठ पर कब्जा कर भाजपा ने अपनी साख तो कायम रखी किंतु प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई के चलते चुनावों में पराजय से पार्टी व सरकार को धक्का लगा है। तेरह नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव में से अगर पार्टी बेस बहुमत देखे तो भाजपा ही आगे रही, उसने आठ पर कब्जा जमाया है तो शेष पर कांग्रेस को सफलता मिली वैसे इससे भाजपा गदगद हो सकती है लेकिन उसके लिये आठ सीटों पर कब्जा करना उतना मायने नहीं रखता जितना प्रतिष्ठापूर्ण सीटों को गंवाना। एक सीट निर्दलीय के हाथ भी लगी है।बैकुंठपुर में तो कमाल ही हो गया जहां निर्दलीय प्रत्याशी ने कांग्रेस की जमानत जब्त कर भाजपा को भी शिकस्त दे पालिका पर कब्

छेडछाड़ करने वाला अधमरा,रोकने वाले को पीट पीटकर मार डाला!

रायपुर दिनांक 26 दिसंबर 2010 छेडछाड़ करने वाला अधमरा,रोकने वाले को पीट पीटकर मार डाला! छेड़छाड़ करने वालों के साथ क्या सलूक किया जाये? क्या वही जो छत्तीसगढ़ में रायपुर के जलविहार कालोनी के एक परिवार ने किया जिसमें एक स्कूली बच्ची के साथ छेड़छाड़ करने वाले को एक बार मना करने के बाद भी नहीं माना तो पीट पीट पीटकर अधमरा कर दिया। दूसरी घटना बलौदाबाजार के पलारी की है जिसमें एक शिक्षक को सिर्फ इसलिये पीट पीटकर मार डाला चूंकि उसने छेडख़ानी का विरोध किया था। अब बताइये कौन आज के जमाने में किसी की मदद के लिये तैयार होगा? मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इस घटना के बाद छेड़छाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का आदेश पुलिस को दिया है। पुलिस इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में मजनुओं के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है यह आने वाला समय बतायेगा लेकिन पलारी की घटना के बाद यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि किसी की परेशानियों में हम कितना भागीदार बन सकते हैं? शिक्षक वाली घटना के संदर्भ में सड़क पर किसी के साथ छीना झपटी, लूट, छेडख़ानी या कोई दुर्घटना में घायल व्यक्ति भी पड़ा है तो उसे उठाकर न अस्पताल पहुंचाया जा सकता है और न

कांग्रेस में बुजुर्गो के दिन लदें! युवा कंधे पर आयेगा भार?

रायपुर बुधवार दिनांक 23 दिसंबर 2010 कांग्रेस में बुजुर्गो के दिन लदें! युवा कंधे पर आयेगा भार? कांगे्रस ने अपने युवराज राहुल गांधी के ताजपोशी की तैयारियां शुरू कर दी है। हाल ही बीता कांग्रेस का अधिवेशन इस बात का गवाह हो गया कि निकट भविष्य में राहुल गांधी को ही आगे कर संपूर्ण राजनीति का ताना बाना बुना जायेगा। इस अधिवेशन में कांग्रेस अपनी संस्था के पूरे ओवरआइलिंग के मूड में भी दिखाई दी। 125 वें वर्ष पर आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जिस प्रकार राहुल गांधी को हाईलाइट किया गया तथा युवा फौज को अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा किया गया। उससे इस बात की संभावना बढ़ गई है, कि बुज़ुर्गो को किनारे कर युवा पीढ़ी को देश चलाने का मौका दिया जायेगा। अगर आगे चलकर ऐसा होता है, तो यह कांग्रेस के लिये पूरे देश में उठ खड़े होने का एक अवसर होगा। वरना आगे आने वाले वर्ष कांग्रेस के लिये दुखदायी होंगे। कांग्रेस के इस अधिवेशन में दिग्विजय सिंह जिस ढंग से मुखर हुए और उन्होंने जो बातें कही- विशेषकर साठ वर्ष से ऊपर के लोगों की राजनीति के बारे में, वह लगता है कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से सिखा- पढ़ाकर दिया गया बयान है। जो

प्रदेश की आम जनता सुरक्षित नहीं, सुरक्षित है तो सिर्फ प्रदेश के मंत्री!

रायपुर दिनांक 21 दिसंबर 2010 प्रदेश की आम जनता सुरक्षित नहीं, सुरक्षित है तो सिर्फ प्रदेश के मंत्री! और अब बारी आई एक बुद्विजीवी की! प्रदेश में किस तेजी से कानून और व्यवस्था का भट्ठा बैठा है, इसका उदाहरण है बिलासपुर के युवा पत्रकार सुशील पाठक की हत्या। अपहरण, चेन स्नेचिगं, बलात्कार, चोरी डकैती, हत्या जैसी वारदातों से लबालब छत्तीसगढ में आम आदमी का जीवन कितना सुरक्षित है? यह अब बताने की जरूरत नहीं। सरगुजा में एक के बाद दो बच्चों की हत्या जहां रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। वहीं बिलासपुर में युवा पत्रकार की गोली मारकर हत्या ने यह बता दिया है कि प्रदेश में जहां बच्चे, महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, वहीं कलमकार की जिंदगी भी अब अपराधियों के रहमोकरम पर है। राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर छत्तीसगढ़ के दो बड़े शहर हैं। इन दो बड़े नगरों में राज्य बनने के बाद से जिस तेजी से अपराध बढ़ा है, उसकी देन हम किसे माने? केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने जब दिल्ली में बढ़ते अपराधों के बारे में यह टिप्पणी की कि- वहां बाहरी लोगों के कारण अपराध बढ़ रहा है, तो लोग उनपर पिल पड़े। यहां तक कि उन्हें अपने शब्द

बात की तीर से निकलती आग में जल रही देश की राजनीति!

रायपुर दिनांक 20 दिसबर। बात की तीर से निकलती आग में जल रही देश की राजनीति! 'बातो से मारोंÓ-राजनीति का एक नया रूप इन दिनों सबके सामने है। बस थोड़ी सी चिन्गारी चाहिये, बात की मार ऐसी आग लगाती है कि पूरी राजनीति में उबाल आ जाता है। इस समय वाक युद्व के सबसे बड़े हीरों हैं राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह। जिनके मुंह से निकले तीर कई लोगों को घायल कर गए हैं। अभी कुछ ही दिन पूर्व देश के वित्त मंत्री प्रणव मुकर्जी ने कहा था कि- राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री हो सकते हैं। उनके इस बयान के तुरन्त बाद आस्ट्रेलिया के जासूसी चैनल ने खुलासा किया कि राहुल गांधी ने अमरीकी राजदूत टिमोथी रोमर के साथ हुई बातचीत में हिन्दू कट्टर पंथ को लश्करें तौयबा के आंतकवाद से ज्यादा खतरनाक बताकर एक नई कान्ट्रोवर्सी खड़ी कर दी। हालंाकि विकीलिक्स का यह खुलासा कोई नई बात नहीं थी। नई बात बस इसलिये थी चूंकि यह बात सोनिया गांधी के पुत्र और कांग्रेस द्वारा भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित राहुल गांधी के मुंह से निकली थी। विकीलिक्स के खुलासे के पूर्व केन्दी्रय गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने जब देश में भगवा आतंकवाद का जिक्र

क्यों देते हैं दिग्गी विवादास्पद बयान? दो साल क्यों चुप रहे?

रायपुर दिनांक 13 दिसंबर 2010 क्यों देते हैं दिग्गी विवादास्पद बयान? दो साल क्यों चुप रहे? यह हमारे पूर्व मुख्यमंत्री को क्या हो गया ? दिग्विजय सिंह आजकल कांग्रेस के महासचिव हैं- उन्होंने बयान दिया है कि मुम्बई 26-11 हमले में शहीद एटीएस चीफ की मौत के पीछे हिन्दू संगठनवादियों का हाथ है। दो साल तक इस घटना पर लगातार चुप्पी साधे रहने के बाद अचानक रहस्योद्घाटन कर चर्चा में आने वाले र्दििग्वजय सिंह के मुंह खोलते ही भाजपा नेता राजनाथ सिंह भड़क गये। उन्होंने भी यही सवाल किया कि दिग्विजय सिंह दो साल तक चुप क्यों थे और अचानक उन्हें यह बयान देने की क्या जरूरत पड़ी? राजनाथ सिंह से पूर्ण सहमत होते हुए हम यह कहना चाहते हैं कि दिग्विजय सिंह के कथन की सच्चाई जानने के लिये उनकी और एटीएस चीफ के बीच यदि कोई बातचीत हुई है, तो उसे सार्वजनिक करना चाहिये। ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये। अगर करकरे ने उनसे ऐसी कोई आशंका जाहिर की तो एक बार नहीं कई बार टेलीफोन पर बातचीत हुई होगी। सवाल यहां यह भी उठता है कि एटीएस चीफ को अगर हिन्दू संगठनवादियों से खतरा था। तो यह बात उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को ब

क्या गलत बोल दिया शिवराज ने ? यह तो आज की आवाज है!

रायपुर दिनांक 14 दिसबर। क्या गलत बोल दिया शिवराज ने ? यह तो आज की आवाज है! खरी बात किसी के गले नहीं उतरती। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब यह कहा कि राज्य सभा अंगे्रजो की देन है, जो अब खरीद फरोख्त की मंडी बनकर रह गई है। तो लोग उनपर पिल पड़े और शिवराज ंिसंह को अपना बयान वापस लेना पड़ा। राज्य सभा ही नहीं आज ऐसी कितनी ही संस्थाएं ऐसी हंै, जिनकी आवश्यकता नहीं है और फिजूल खर्ची बढ़ा रही है। शिवराज ंिसंह जैसे युवा की सोच जब उनकी आवाज बनकर गूंजती है, तो उन लोगों को बुरा लगता है जो परंपरावादी बनकर ऐसी संस्थाओं को बनाकर रखना चाहते हैं। शिवराज ंिसंह ने इस बात की भी वकालत की है कि देश में प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति पध्दति से कराया जाये। चुनावी खर्च कम करने के लिये यह जरूरी है कि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी एक साथ कराया जाना चाहिये। बकौल शिवराज सिंह ''राज्य सभा का कोई औचित्य नहीं है। राज्य सभा के चुनाव विधायकों के खरीद-फरोख्त की मंडी होती हैं जिससे लोकतंत्र शर्मसार होता है। राज्य सभा के औचित्य पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं कि राज्य सभा ऐसे लोगों के लिय

शर्म करो ..अब किया तो किया भविष्य में किया तो कोई तुम्हें माफ नहीं करेगा!

शर्म करो ..अब किया तो किया भविष्य में किया तो कोई तुम्हें माफ नहीं करेगा! यह केक था या देश का दिल जिसे गुरुवार को कांग्रेसियों ने चाकू से काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये? हम बात कर रहे हैं देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी के जन्म दिन पर कांग्रेसियों द्वारा काटे गये केक की। वाराणसी में आंतकी हमले के परिपे्रक्ष्य में सोनिया गांधी ने इस वर्ष अपना जन्म दिन नहीं मनाने का ऐलान किया था लेकिन उनके अति उत्साही कार्यकर्ताओंं ने केक काटा, इसपर किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन केक को राष्ट्रध्वज का प्रतीक बनाकर जिस ढंग से गोदा गया यह कितना उचित था? यह कांग्रेसियों का सोनिया के प्रति पे्रम का प्रदर्शन था या राष्ट्र के प्रतीक का अपमान? जब राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्वयं अपना जन्म दिन नहीं मनाने का ऐलान किया था तब इन कांग्रेसियों को कौनसा भूत सवार हो गया कि वे सारी मर्यादाओं को त्याग कर एक ऐसा केक उठा लाये जो बिल्कुल तिरंगे के आकार का था जिस पर चक्र भी बनाया गया था। अगर केक काटना ही था तो एक सामान्य केक काटकर अपनी खुशी का इजहार कर सकते थे, लेकि न सबसे अलग दिखाने की चाह व होड़ में वे यह भी भूल गये कि य

छेडछाड की बलि चढ़ी नेहा-

रायपुर बुधवार दिनांक 8 दिसबंर 2010 छेडछाड की बलि चढ़ी नेहा- क्या अंतिम उपाय 'मौत ही रह गया ? यह अकेले नेहा भाटिया की कहानी नहीं हैं, संपूर्ण छत्तीसगढ़ में स्कूली छात्राओं से छेडख़ानी और उन्हें प्रताडि़त करना एक आम बात हो गई है। छेड़छाड़ से दुखी नेहा ने अपने शरीर को आग के हवाले कर दिया था। मंगलवार को नेहा ने प्राण त्याग दिये। बहुत सी छात्राएं छेड़छाड़ को बर्दाश्त कर इसकी शिकायत इसलिये नहीं करती। चूंकि उन्हें डर लगा रहता है कि परिवार के लोग इसके पीछे पड़ कर बड़ी मुसीबत में पड़ जायेंगे। पुलिस में जाने से छेड़छाड़ पीडि़त महिला तो डरती ही है, उसका परिवार भी ऐसा नहीं करना चाहता। जबकि नेहा जैसी कई ऐसी छात्राएं भी हैं, जो अपमान को गंभीरता से लेकर उसे मन ही मन बड़ा कृत्य करने के लिये बाध्य हो जाती है। क्या स्कूल प्रबंधन इस मामले में बहुत हद तक दोषी नहीं है, जो ऐसी घटनओं की अनदेखी करता है? क्या छेड़छाड़ पीडि़तों के लिये यही एक अंतिम उपाय है कि वह मौत को गले लगा ले? नेहा कांड से पूर्व छत्तीसगढ़ के छोर सरगुजा से एक खबर आई कि एक युवक की लड़की के भाई और साथियों ने जमकर पिटाई कर दी, चूंकि वह बहन